नई दिल्ली. सूर्यप्रकाश जी मूलतः पंजाब के स्वयंसेवक थे. विभाजन के बाद उनके परिजन दिल्ली आ गये. वर्ष 1949 में वे राजस्थान में प्रचारक के रूप में आये. वर्ष 1949 से 1959 तक वे बीकानेर विभाग तथा फिर वर्ष 1971 तक कोटा विभाग में प्रचारक रहे. सब लोग उन्हें ‘सूरज जी भाई साहब’ कहते थे.
जब वे कोटा में प्रचारक होकर आये, तो वहां केवल 25 शाखाएं थीं, पर उनके परिश्रम से कोटा देश में सर्वाधिक 300 शाखाओं वाला जिला हो गया. उन्होंने काम के लिए अध्यापकों तथा छात्रावासों को आधार बनाया. इन छात्रों को वे छुट्टियों में निकटवर्ती गांवों में शाखा विस्तार के लिए भेजते थे. उन्होंने कोटा में रात्रि शाखाएं प्रारम्भ कीं. कार्यकर्ता ध्वज और ध्वज दंड के साथ लालटेन भी लेकर जाते थे. बाद में रात्रि शाखा का यह प्रयोग पूरे देश में प्रचलित हुआ. उन्होंने मिल के मजदूरों में भी शाखाएं लगाईं. उन दिनों संघ के पास साधनों का अभाव था. ऐसे में पैदल या साइकिल से प्रवास कर उन्होंने शाखाओं का जाल बिछाया. वे जहां रहे, वहां की स्थानीय भाषा-बोली में ही बोलते थे. इससे कार्यकर्ताओं में वे शीघ्र ही लोकप्रिय हो जाते थे. आम लोग भी उन्हें अपने बीच का ही व्यक्ति समझते थे. वे अति परिश्रमी, तेजस्वी वक्ता तथा हिसाब-किताब के मामले में बहुत कठोर थे. उन दिनों कार्यकर्ताओं से संपर्क का माध्यम पत्राचार ही था. रात में पत्र लिखते-लिखते जब हाथ से कलम गिरने लगती थी, तभी वे सोते थे.
जिस समय सूरज जी राजस्थान आये, तो अनेक स्थानों पर मुसलमानों का आतंक व्याप्त था. कोटा में हिन्दुओं की डोल यात्राओं पर प्रायः मुसलमान हमला करते थे. मथुराधीश मंदिर में जाने वाली महिलाओं को वे छेड़ते थे. सूरज जी बहुत दिलेर और साहसी व्यक्ति थे. उन्होंने अखाड़े में व्यायाम तथा शस्त्राभ्यास करने वाले सभी जाति के हिन्दू युवकों से संपर्क कर गुंडों की खूब ठुकाई की. इससे डोल यात्रा तथा कोटा के दशहरे मेले की व्यवस्था ठीक हो गयी. कोटा के गुंडे उनके नाम से ही डरने लगे.
सूरज जी ने संघ कार्य के साथ ही अन्य कार्यों को भी ऊर्जा प्रदान की. वर्ष 1966 में प्रयाग में हुए प्रथम ‘विश्व हिन्दू सम्मेलन’ में कोटा से बड़ी संख्या में कार्यकर्ता गये. इसी वर्ष दिल्ली में गोरक्षा के लिए हुए प्रदर्शन में भी कोटा की अच्छी सहभागिता रही. इसके बाद उन्होंने कोटा में विश्व हिन्दू परिषद का सम्मेलन करवाया. इसमें पूज्य स्वामी सत्यमित्रानंद जी, हाड़ोती के राणा, कोटा के महाराज कुमार ब्रजराज सिंह जैसे प्रसिद्ध लोग आये. उन्होंने ‘भारतीय किसान संघ’ का पहला प्रांतीय अधिवेशन भी कोटा में करवाया. विद्यार्थी परिषद’ और ‘भारतीय मजदूर संघ’ के लिए भी उनके प्रयास उल्लेखनीय हैं. उनके तैयार किये हुए अनेक कार्यकर्ता आगे चलकर संघ, राजनीति तथा समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रसिद्ध हुए.
ऐसे श्रेष्ठ कार्यकर्ता सूरज जी गले के कैंसर से पीड़ित हो गये. इससे उन्हें बोलने में बहुत कष्ट होने लगा. मुंबई में अंग्रेजी तथा फिर जयपुर के पास चोमू ग्राम में एक प्रसिद्ध वैद्य से आयुर्वेदिक उपचार करवाया गया, पर विधि के विधान के अनुसार 29 जुलाई, 1973 में उनका देहांत हो गया. सूरज जी ने कोटा में एक भूमि ली थी. उनके देहांत के बाद वहां संघ कार्यालय का निर्माण करवाया गया. उसका नाम ‘सूरज भवन’ रखा गया है. वह भवन उनके कर्तृत्व, साहस एवं शौर्य की याद दिलाता है.