करंट टॉपिक्स

3 दिसम्बर/जन्म-दिवस; आत्मविश्वास के धनी राजेन्द्र बाबू

Spread the love

Dr. Rajendra Prasadबिहार के एक विद्यालय में परीक्षा समाप्ति के बाद कक्षाध्यापक महोदय सबको परीक्षाफल सुना रहे थे. उनमें एक प्रतिभाशाली छात्र राजेन्द्र भी था. उसका नाम जब उत्तीर्ण हुये छात्रों की सूची में नहीं आया, तो वह अध्यापक से बोला – गुरुजी, आपने मेरा नाम तो पढ़ा ही नहीं.

अध्यापक ने हँसकर कहा – तुम्हारा नाम नहीं है, इसका साफ अर्थ है तुम इस वर्ष फेल हो गये हो. ऐसे में, मैं तुम्हारा नाम कैसे पढ़ता ? अध्यापक को मालूम था कि वह छात्र कई महीने मलेरिया बुखार के कारण बीमार रहा था. इस कारण वह लम्बे समय तक विद्यालय भी नहीं आ पाया था. ऐसे में छात्र का अनुत्तीर्ण हो जाना स्वाभाविक ही था. लेकिन वह छात्र हिम्मत से बोला – नहीं गुरुजी, कृपया आप सूची को दुबारा देख लें. मेरा नाम इसमें अवश्य होगा.

अध्यापक ने कहा – नहीं राजेन्द्र, तुम्हारा नाम सूची में नहीं है. तुम इस बार उत्तीर्ण नहीं हो सके हो. राजेन्द्र ने खड़े होकर ऊँचे स्वर में कहा – ऐसा नहीं हो सकता कि मैं उत्तीर्ण न होऊँ. अब अध्यापक को भी क्रोध आ गया. वे बोले – बको मत, नीचे बैठ जाओ. अगले वर्ष और परिश्रम करो. पर राजेन्द्र चुप नहीं हुआ – नहीं गुरुजी, आप अपनी सूची एक बार और जाँच लें. मेरा नाम अवश्य होगा. अध्यापक ने झुंझलाकर कहा – यदि तुम नीचे नहीं बैठे तो मैं तुम पर जुर्माना कर दूँगा. पर वह छात्र भी अपनी बात से पीछे हटने को तैयार नहीं था. अतः अध्यापक ने उस पर एक रु. जुर्माना कर दिया. लेकिन राजेन्द्र बार-बार यही कहता रहा – मैं अनुत्तीर्ण नहीं हो सकता.

अध्यापक ने अब जुर्माना दो रु. कर दिया. बात बढ़ती गयी. धीरे-धीरे जुर्माने की राशि पाँच रु. तक पहुँच गयी. उन दिनों पाँच रु. की कीमत बहुत थी. सरकारी अध्यापकों के वेतन भी 15-20 रु. से अधिक नहीं होते थे; लेकिन आत्मविश्वास का धनी वह छात्र किसी भी तरह दबने का नाम नहीं ले रहा था. तभी एक चपरासी दौड़ता हुआ प्राचार्य जी के पास से कोई कागज लेकर आया. जब वह कागज अध्यापक ने देखा, तो वे चकित रह गये. परीक्षा में सर्वाधिक अंक उस छात्र ने ही पाये थे. उसका अंकपत्र फाइल में सबसे ऊपर रखा था; पर भूल से वह प्राचार्य जी के कमरे में ही रह गया.

अब तो अध्यापक ने उस छात्र की पीठ थपथपाई. सब छात्रों ने भी ताली बजाकर उसका अभिनन्दन किया. यही बालक आगे चलकर भारत का पहला राष्ट्रपति बना. उनका जन्म ग्राम जीरादेई( जिला छपरा, बिहार) में 3 दिसम्बर, 1884 को श्री महादेव सहाय के घर में हुआ था. छात्र जीवन से ही मेधावी राजेन्द्र बाबू ने कानून की परीक्षा उत्तीर्णकर कुछ समय वकालत की; पर 33 वर्ष की अवस्था में गांधी जी के आह्वान पर वे वकालत छोड़कर देश की स्वतन्त्रता के लिये हो रहे चम्पारण आन्दोलन में कूद पड़े.

सादा जीवन, उच्च विचार के धनी डा. राजेन्द्र प्रसाद को ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया. राष्ट्रपति पद से मुक्ति के बाद वे दिल्ली के सरकारी आवास की बजाय पटना में अपने निजी आवास ‘सदाकत आश्रम’ में ही जाकर रहे. 28 फरवरी, 1963 को वहीं उनका देहान्त हुआ. उनके जन्म दिवस तीन दिसम्बर देश में अधिवक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है. राष्ट्रपति के रूप में वे प्रधानमन्त्री नेहरू जी के विरोध के बाद भी सोमनाथ मन्दिर की पुनर्प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुये.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *