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देश के विभिन्न राज्यों में विशेषकर जनजातीय क्षेत्रों में दशकों तक आतंक मचाने वाले खूनी नक्सलियों का साम्राज्य अब ढह रहा है। नक्सली आतंक के खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई लगातार चल रही है।
हाल ही में, तेलंगाना में 64 नक्सलियों ने सुरक्षा बलों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इनमें 16 महिलाएं भी शामिल हैं। आत्मसमर्पण उन कायर आतंकियों की हताशा का प्रमाण है, जो अब अपनी ही माओवादी विचारधारा से त्रस्त हो चुके हैं।
भद्राद्री कोठागुडेम के पुलिस अधीक्षक बी रोहित राजू ने बताया कि पिछले ढाई महीनों में इन 64 सदस्यों सहित कुल 122 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को एहसास हो गया है कि प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) पुरानी विचारधारा का पालन करती है और उसने आदिवासी लोगों का विश्वास और समर्थन खो दिया है।
छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर सक्रिय इन खूंखार नक्सलियों को अब समझ में आ गया है कि उनका तथाकथित ‘लाल क्रांतिकारी सपना’ महज एक खूनी जाल था। आम जनता को शोषण, लूट, हत्या और जबरन भर्ती के जरिए गुलाम बनाने वाले आतंकी अब अपनी ही जाल में फंस चुके हैं।
सुरक्षा बलों के अभियान और नक्सली आतंक के खिलाफ सरकार की कठोर नीति के कारण इन्हें आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।
‘निया नेल्लनार’ जैसी योजनाओं ने जंगलों में बसे जनजातियों को यह एहसास दिलाया कि सरकार ही असली रक्षक है, न कि माओवादी।
पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने का मौका दिया जा रहा है, ताकि वे समाज का हिस्सा बन सकें।
माओवादियों ने वर्षों तक मासूम और गरीब जनजातियों को छलने और उनके नाम पर हिंसा व आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने का काम किया।
“इनका असली मकसद सिर्फ खून बहाना और सत्ता हथियाना था। लेकिन अब उनकी झूठी क्रांति की पोल खुल चुकी है।”
माओवाद का सूरज अब अस्त होने को है, और उसके साथ खत्म होगा खून, हिंसा और आतंक का वह दौर, जिसने वर्षों तक भारत के निर्दोष नागरिकों को दर्द और पीड़ा दी।