नई दिल्ली. देश को अंग्रेजों की परतंत्रता से मुक्त करवाने के लिये 1857 में ज्वाला को धधकाने वाले क्रांतिवीर थे……..मंगल पांडे. अंग्रेजी शासन के विरुद्ध चले लम्बे संग्राम का बिगुल बजाने वाले पहले क्रान्तिवीर मंगल पांडे का जन्म 30 जनवरी, 1831 को ग्राम नगवा (बलिया, उत्तर प्रदेश) में हुआ था. कुछ लोग इनका जन्म ग्राम सहरपुर (जिला साकेत, उत्तर प्रदेश) तथा जन्मतिथि 19 जुलाई, 1827 भी मानते हैं. युवावस्था में ही वे सेना में भर्ती हो गये थे. उन दिनों सैनिक छावनियों में गुलामी के विरुद्ध आग सुलग रही थी. अंग्रेज जानते थे कि हिन्दू गाय को पवित्र मानते हैं, जबकि मुसलमान सूअर से घृणा करते हैं. फिर भी वे सैनिकों को जो कारतूस देते थे, उनमें गाय और सूअर की चर्बी मिली होती थी. इन्हें सैनिक अपने मुंह से खोलते थे. ऐसा बहुत समय से चल रहा था, पर सैनिकों को इनका सच मालूम नहीं था.
मंगल पांडे उस समय बैरकपुर में 34वीं हिन्दुस्तानी बटालियन में तैनात थे. वहां पानी पिलाने वाले एक हिन्दू ने इसकी जानकारी सैनिकों को दी. इससे सैनिकों में आक्रोश फैल गया. मंगल पांडे से रहा नहीं गया. 29 मार्च, 1857 को उन्होंने विद्रोह कर दिया. एक भारतीय हवलदार मेजर ने जाकर सार्जेण्ट मेजर ह्यूसन को यह सब बताया. इस पर मेजर घोड़े पर बैठकर छावनी की ओर चल दिया. वहां मंगल पांडे सैनिकों से कह रहे थे कि अंग्रेज हमारे धर्म को भ्रष्ट कर रहे हैं. हमें उसकी नौकरी छोड़ देनी चाहिए. मैंने प्रतिज्ञा की है कि जो भी अंग्रेज मेरे सामने आएगा, मैं उसे मार दूंगा.
सार्जेण्ट मेजर ह्यूसन ने सैनिकों को मंगल पांडे को पकड़ने को कहा, पर तब तक मंगल पांडे की गोली ने उसका सीना छलनी कर दिया. उसकी लाश घोड़े से नीचे आ गिरी. गोली की आवाज सुनकर एक अंग्रेज लेफ्टिनेंट वहां आ पहुंचा. मंगल पांडे ने उस पर भी गोली चलाई, पर वह बचकर घोड़े से कूद गया. इस पर मंगल पांडे उस पर झपट पड़े और तलवार से उसका काम तमाम कर दिया. लेफ्टिनेंट की सहायता के लिए एक अन्य सार्जेण्ट मेजर आया, पर वह भी मंगल पांडे के हाथों मारा गया.
तब तक चारों ओर शोर मच गया. 34वीं पल्टन के कर्नल हीलट ने भारतीय सैनिकों को मंगल पांडे को पकड़ने का आदेश दिया, पर वे इसके लिए तैयार नहीं हुए. इस पर अंग्रेज सैनिकों को बुलाया गया. मंगल पांडे चारों ओर से घिर गये. वे समझ गये कि अब बचना असम्भव है. अतः उन्होंने अपनी बन्दूक से स्वयं को ही गोली मार ली, पर उससे वे मरे नहीं, अपितु घायल होकर गिर पड़े. इस पर अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया. जिसके बाद मंगल पांडे पर सैनिक न्यायालय में मुकदमा चलाया गया. उन्होंने कहा, ‘‘मैं अंग्रेजों को अपने देश का भाग्य विधाता नहीं मानता. देश को आजाद कराना यदि अपराध है, तो मैं हर दण्ड भुगतने को तैयार हूं.’’
न्यायाधीश ने उन्हें फांसी की सजा दी और इसके लिए 18 अप्रैल का दिन निर्धारित किया, पर अंग्रेजों ने देश भर में विद्रोह फैलने के डर से घायल अवस्था में ही 08 अप्रैल, 1857 को उन्हें फांसी दे दी. बैरकपुर छावनी में कोई उन्हें फांसी देने को तैयार नहीं हुआ. अतः कोलकाता से चार जल्लाद जबरन बुलाने पड़े. मंगल पांडे ने क्रांति की जो मशाल जलाई, उसने आगे चलकर 1857 के व्यापक स्वाधीनता संग्राम का रूप लिया. यद्यपि भारत 1947 में स्वतन्त्र हुआ, पर उस प्रथम क्रान्तिकारी मंगल पांडे के बलिदान को सदा श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है.