रांची. सनातन धर्म का इतिहास रहा है कि ना ही हम अन्याय करते हैं और ना ही हम अन्याय सहन करते हैं. न्याय के लिए हम सदा सतत प्रयास करते हैं और वर्षों तक संघर्ष करते हैं. न्याय और धर्म की स्थापना के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटते. इसका प्रमाण श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन है. आज श्रीराम मंदिर का स्वप्न साकार होने जा रहा है. निधि समर्पण अभियान के अनेक उदाहरण इतिहास में दर्ज होने वाले हैं. राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक प्रभु श्रीराम के प्रति आस्था का सागर देखने को मिल रहा है. निधि समर्पण के दौरान ऐसे उदाहरण देखने को मिले कि किसी की भी आंखें नम हो जाएं.
बिहार शरीफ नालंदा के 90 वर्षीय भागवत प्रसाद जी, करीब एक वर्ष से आईसीयू में भर्ती हैं. समाज हित में अनेक कामों में उनका योगदान रहा है. हालत गंभीर होने के कारण उन्हें निधि समर्पण के बारे में किसी ने कुछ भी नहीं बताया था. दो कंपाउंडर आपस में बात कर रहे थे कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर चर्चा कर रहे थे, इसी से उन्हें (भागवत प्रसाद जी) पता चला कि श्रीराम मंदिर के लिए निधि समर्पण का अंतिम दिन है. जैसे ही उन्होंने सुना तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगे और इशारे से अपने पुत्र को बुलाने को कहा. पुत्र को बुलाकर उन्होंने भी निधि समर्पण की इच्छा व्यक्त की.
इनके पुत्र डॉ. सुनील कुमार प्रारंभिक दौर से ही निधि समर्पण के कार्य में अपना योगदान दे रहे हैं. पिता की स्थिति के कारण अभियान के बारे में नहीं बताया था. भागवत जी श्रीराम मंदिर आंदोलन से जुड़ी कई घटनाओं के साक्षी रहे हैं….और अब पीछे कैसे रह जाते.
भागवत प्रसाद जी की इच्छा पर उनके पुत्र डॉ. टोली को निधि समर्पण के लिए अपने आवास पर बुलाया. एक वर्ष से आईसीयू में भर्ती भागवत प्रसाद जी ने ₹25,000 की सहयोग राशि श्रीराम मंदिर के लिए समर्पित की. उन्हें देख परिवार के सदस्यों ने भी अलग-अलग समर्पण किया.