लोकेन्द्र सिंह
“खेल में दुनिया को बदलने की शक्ति है, प्रेरणा देने की शक्ति है. यह लोगों को एकजुट रखने की शक्ति रखता है, जो बहुत कम लोग करते हैं. यह युवाओं के लिए एक ऐसी भाषा में बात करता है, जिसे वे समझते हैं. खेल वहाँ भी आशा पैदा कर सकता है, जहाँ सिर्फ निराशा हो. यह नस्लीय बाधाओं को तोड़ने में सरकार की तुलना में अधिक शक्तिशाली है”.
अफ्रीका के गांधी कहे जाने वाले प्रसिद्ध राजनेता नेल्सन मंडेला के इस लोकप्रिय कथन के साथ मीडिया गुरु डॉ. आशीष द्विवेदी अपनी पुस्तक ‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ की शुरुआत करते हैं. या कहें कि पुस्तक के पहले ही पृष्ठ पर इस कथन के साथ लेखक खेल की महत्ता को रेखांकित कर देते हैं और फिर विस्तार से खेल और पत्रकारिता के विविध पहलुओं पर बात करते हैं. डॉ. द्विवेदी की इस पुस्तक ने बहुत कम समय में अकादमिक क्षेत्र में अपना स्थान बना लिया है. दरअसल, इस पुस्तक से पहले हिन्दी की किसी अन्य पुस्तक में खेल पत्रकारिता पर समग्रता से बातचीत नहीं की गई.
‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ पाँच खण्डों में विभाजित है. पहले खण्ड में भारत में प्रचलित खेलों की स्थिति का अवलोकन किया गया है. इस खण्ड में 28 अध्याय हैं, जिनके अंतर्गत भारत में खेलों को लेकर जागरूकता की स्थिति, शिक्षा व्यवस्था में खेल, खेलों में राजनीति, खेलों से सामाजिक बदलाव, खेलों में लैंगिक भेदभाव, खेल में नस्लवाद, खेल के स्याह पहलू और राष्ट्रीय खेल नीति सहित अनेक मुद्दों पर चर्चा की गई. लेखक ने रीयल लाइफ से लेकर रील लाइफ तक में खेल की उपस्थिति पर चर्चा की है. यहाँ तक कि डॉ. द्विवेदी ने आज के सबसे सामयिक मुद्दे ‘ऑनलाइन गेम्स का खेलों पर दुष्पप्रभाव’ पर भी अपनी कलम चलाई है. इस अध्याय में उन्होंने बताया है कि ऑनलाइन गेम्स की लत के कारण नयी पीढ़ी मैदानी खेलों से दूर हो रही है और अनेक प्रकार के मनोरोगों का शिकार भी हो रही है. उन्होंने ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन के एक आंकड़े का उल्लेख करते हुए रेखांकित किया है कि देश में लगभग 12 करोड़ से अधिक लोग ऑनलाइन गेम्स में डूबे हुए हैं. जैसा कि अनुमान है, यह आंकड़ा अब और बढ़ गया होगा. ऑनलाइन गेम्स के भविष्य की ओर संकेत करते हुए उन्होंने बताया है कि वह दिन भी आ सकता है, जब ऑनलाइन गेम्स भी प्रतिष्ठित खेल प्रतियोगिताओं का हिस्सा हो जाएंगे.
खेलों की दुनिया से परिचित कराने के बाद लेखक डॉ. आशीष द्विवेदी अपने पाठकों को पुस्तक के दूसरे खण्ड में खेल पत्रकारिता की बारीकियों से रूबरू कराते हैं. इस खण्ड में शामिल 23 अध्यायों में खेल पत्रकारिता की अवधारणा, उसके उद्देश्य एवं महत्व पर विस्तार से बात की गई है. दुनिया के विभिन्न हिस्सों में खेल पत्रकारिता के विकासक्रम की चर्चा करते हुए डॉ. द्विवेदी लिखते हैं कि “भारत में पत्रकारिता की शुरुआत भले ही 1780 में ‘हिक्की गजट’ से मानी जाती है, लेकिन खेलों को विषय बनाकर लिखने का काम लंबे अरसे तक शुरू नहीं हो पाया था. 1877 में ‘हिन्दी प्रदीप’ ने खेल पत्रकारिता को स्थान देना शुरू किया. लेकिन प्रकाशित समाचार महज सूचनात्मक होते थे. खेलों के प्रति रुचि रखने वाले विद्या भास्कर का जब उत्तरप्रदेश के लोकप्रिय हिन्दी दैनिक ‘आज’ से जुड़ाव हुआ, तब खेल को एक विषय के रूप में मान्यता मिलना शुरू हुई और उसके कवरेज के लिए अलग से एक रिपोर्टर की नियुक्ति की. खेल पत्रकारिता में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिला जब भारत ने ओलिंपिक में हॉकी के लिए गोल्ड मेडल जीता”. बाद में विभिन्न समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं ने खेल पत्रकारिता को बढ़ावा देना शुरू किया.
साथ ही इस खण्ड में व्यावहारिक उदाहरणों के साथ समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं के लिए खेल समाचार लिखने एवं टेलीविजन के लिए खेल समाचार की स्क्रिप्ट लिखने का प्रशिक्षण दिया गया है. खेल पर संपादकीय, स्तम्भ और रूपक लिखने का कौशल भी सिखाने का कार्य यह पुस्तक करती है. देश के प्रमुख खेल पत्रकारों, खेल आधारित प्रमुख चैनल्स, पत्र-पत्रिकाओं एवं वेबसाइट का उल्लेखन इस खण्ड में आता है. इसके साथ ही यहाँ यह भी बताया गया है कि खेल पत्रकारिता में किस प्रकार एक सफल करियर बनाया जा सकता है. यह खण्ड खेल पत्रकारिता के व्यावहारिक प्रशिक्षण की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. यह अध्याय विशेष तौर पर खेल पत्रकारिता के प्रति लेखक के समर्पण को भी रेखांकित करता है. खेल समाचारों के शीर्षक, उसकी भाषा-शैली, संरचना, समाचार के साथ प्रकाशित फोटो एवं कार्टून किस तरह होने चाहिए, यह समझाने के लिए लेखक ने समाचारपत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों की कतरनों का उपयोग किया है.
पुस्तक के तीसरे खण्ड में प्रमुख खेल संस्थाओं एवं उनके संक्षिप्त परिचय को प्रस्तुत किया गया है. संस्थाओं को भी उनकी प्रकृति के आधार पर वर्गीकृत किया गया है – खेल संबंधी आयोजन एवं संस्थाएं, खेल प्राधिकरण, खेल की शिक्षा देने वाले विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय और भारत के प्रमुख खेल स्टेडियम की जानकारी इस अध्याय में मिलती है. वहीं, चौथे खण्ड में खेल पत्रकारों के साथ हुए संवाद को प्रस्तुत किया गया है. यह खण्ड खेल पत्रकारिता की बहुत-सी रोचक एवं आवश्यक बातों को सामने लाता है. खेल पत्रकारिता में लंबा समय बिता चुके पत्रकारों ने खेल पत्रकारिता की बारीकियों पर अपने विचार यहाँ प्रस्तुत किए हैं. विक्रांत गुप्ता, चंद्रशेखर लूथरा, राजेश राय, विमल कुमार, बीपी श्रीवास्तव और उमेश राजपूत सहित अन्य पत्रकारों की टिप्पणियों का एक-एक टुकड़ा खेल पत्रकारिता के विविध आयामों पर गंभीर विमर्श खड़ा करता है. पाँचवा खण्ड ‘परिशिष्ट’ है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण सबसे पहले दिखाई देता है. प्रधानमंत्री मोदी का यह भाषण खेलों पर हमारे दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है. इसके अलावा इस खण्ड में खेल के प्रति रुचि रखने वाले प्रसिद्ध संपादक प्रभाष जोशी, एथलीट पीटी ऊषा, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा और हॉकी खिलाड़ी रानी रामपाल के विचारोत्तेजक आलेखों को शामिल किया गया है.
खेल पत्रकारिता के जितने आयाम हो सकते थे, सबको समेटने का प्रयास डॉ. आशीष द्विवेदी ने ‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ में किया है. इसलिए इस पुस्तक को खेल पत्रकारिता की एन्साइक्लोपीडिया कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा. यह पुस्तक सिर्फ खेल पत्रकारिता में रुचि रखने वाले लोगों के लिए ही उपयोगी, पठनीय एवं संग्रहणीय नहीं है, अपितु जिनकी किंचित भी रुचि खेलों में है, उनके लिए भी पुस्तक में जानकारियों का भण्डार है. विशेष तौर पर खेल पत्रकारिता में करियर बनाने की चाह रखने वाले और खेल पत्रकारिता में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले लोगों के लिए यह पुस्तक बहुत महत्व एवं उपयोग की है. पुस्तक का प्रकाशन हिन्दी बुक सेंटर, नई दिल्ली ने किया है.
(समीक्षक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं.)