नई दिल्ली, 10 मार्च 2025। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन तथा श्रम और रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव ने नई दिल्ली में ‘स्वदेशी ज्ञान परंपरा और धारणक्षम विकास’ पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। शैक्षिक फाउंडेशन, शिवाजी कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय), और राष्ट्रीय सिंधी भाषा संवर्धन परिषद (NCPSL) के सहयोग से दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन में शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिसमें ‘स्वदेशी ज्ञान के धारणक्षम विकास में योगदान’ पर विस्तृत चर्चा की।
समापन सत्र में विशिष्ट अतिथि प्रो. आर.के. मित्तल, कुलपति, डॉ. बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ, एवं प्रो. अशोक के. नागावत, दिल्ली स्किल और एंटरप्रेन्योरशिप विश्वविद्यालय की गरिमामयी उपस्थिति रही। शैक्षिक महासंघ के अध्यक्ष प्रो. नारायण लाल गुप्ता ने समापन सत्र की अध्यक्षता की।
मुख्य अतिथि, भूपेंद्र यादव ने जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध आवश्यक उपायों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ऊर्जा, जल, और खाद्य संरक्षण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, ई-कचरे का प्रबंधन, एकल उपयोग प्लास्टिक का उन्मूलन और स्वस्थ जीवनशैली तकनीकी विकास के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने “एक पेड़ मां के नाम” के प्रधानमंत्री के संकल्प को दोहराया और पृथ्वी के प्रति आभार और सेवा की भावना जागृत करने का आह्वान किया।
विशिष्ट अतिथि, प्रो. आर.के. मित्तल ने विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को केवल आर्थिक उन्नति से नहीं, बल्कि पर्यावरण और स्वरोजगार से संबंधित समग्र दृष्टिकोण से प्राप्त करने की बात कही। उन्होंने विकेंद्रीकरण प्रणाली को सशक्त बनाने और भारत की युवा शक्ति को सही दिशा देने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रो. अशोक नागावत ने भारत की विचारशील परंपरा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के योगदान पर प्रकाश डालते हुए, आधुनिक तकनीकी माध्यमों का उपयोग कर भारत को विकसित और समृद्ध बनाने का आह्वान किया।
प्रो. नारायण लाल गुप्ता ने भारतीय ज्ञान परंपरा की निरंतरता को बनाए रखने और सर्व-सुख की कल्पना पर आधारित विकसित भारत की दिशा में काम करने की बात कही। शैलेश मिश्रा ने आयोजन समिति, अतिथियों, और उपस्थित श्रोताओं का धन्यवाद किया। दो दिवसीय सम्मेलन में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, प्रोफेसर, शिक्षकों सहित बड़ी संख्या में प्रतिभागी उपस्थित रहे। कुल 9 तकनीकी सत्रों में 340 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।