कर्णावती (गुजरात). वनवासी कल्याण आश्रम, सभ्यता अध्ययन केंद्र और स्वामी नारायण रिसर्च इंस्टीट्यूट के संयुक्त तत्वाधान में ‘जनजातीय समाज के उत्थान हेतु संतों का योगदान’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान उपस्थित रहे. मुख्य अतिथि ने कहा कि भगवान श्रीराम ने शबरी से मिलने के समय जो रास्ता दिखाया था, उसमें से बहुत कुछ रह गया है. शबरी और राम के मिलन में जो बराबरी का व्यवहार था, वह राह भगवान राम ने दिखाई है. 14 वर्ष के वनवास काल में भगवान राम ने संकेत दिए हैं कि जनजाति समाज के बाहरी व्यवहार को देखकर और अपने मापदंड से निर्णय मत करो.
जनजाति विषय पर शोध को लेकर आज जो यह कार्यशाला रखी गई है, शबरी की वही इच्छा है, जो इस माध्यम से पूरी हो सकती है. जनजाति समाज की आध्यात्मिकता की बात करें तो मैं एक उदाहरण देना चाहूंगा कि बहुत पहले पूर्वोत्तर में प्रवास के दौरान गांव के मुखिया ने आत्मा और परमात्मा में अंतर बताते हुए कहा था कि जो अंदर है वह आत्मा और बाहर निकल गई तो वह परमात्मा है. इस छोटे से वाक्य से समझा जा सकता है कि जनजाति समाज का अध्यात्म से कितना गहरा नाता है.
जनजाति समाज में ईश्वर से खुद के लिए मांगने की अवधारणा है ही नहीं. जनजातीय समाज की अस्मिता को समझे बगैर आप काम नहीं कर सकते. हमने झाबुआ में हलमा परंपरा को जागृत कर मिलकर काम करने का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया है. संत समाज, सामाजिक संस्थाएं शासन को दिशा निर्देश देने के लिए हैं. आज प्रमुख स्वामी जी महाराज के शताब्दी समारोह में यह सत्र रखा गया. मुझे आशा है कि हम जनजातीय समाज के बारे में अच्छे शोध करेंगे एवं उनके साथ काम करने के नए आयामों को रखेंगे.
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