कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही राजनीतिक यात्रा ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान उनकी कुछ गतिविधियां कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति को उजागर करती हैं.
इसी क्रम में मध्यप्रदेश में यात्रा के दौरान जनजातीय समाज को लेकर राहुल गांधी का बयान, ना सिर्फ उनकी समझ में कमी को प्रदर्शित करता है, बल्कि इस ओर भी इंगित करता है कि कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के सलाहकार विभाजनकारी नीति की राह पर चलकर राजनीति कर रहे हैं.
राहुल गांधी ने जिस तरह जनजाति समाज के लिए ‘वनवासी’ शब्द का विरोध किया, जनजातियों को ही हिन्दुस्तान का एकमात्र ‘मालिक’ बताया और वनवासी शब्द की तुलना पिछड़ेपन से की. इससे यह तो स्पष्ट है कि उनकी समझ ना ही वनवासी शब्द को लेकर है और ना ही आदिवासी शब्द को लेकर.
दरअसल, जिस वनवासी शब्द को राहुल गांधी पिछड़ा एवं जंगली बताने का प्रयास कर रहे हैं, उसी वनवासी (अरण्य) संस्कृति को भारत के विभिन्न धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में उच्च स्थान प्राप्त है. भगवान श्रीराम की कथा भी यथार्थ में वनवासियों के मुक्ति संघर्ष और विजय की अमर गाथा है.
श्रीराम कथा में तो इसके नायक ने स्वयं ही वनवासी का स्वरूप धारण किया था और साथ ही संपूर्ण वनवासी समाज को अपने समानान्तर खड़ा किया था. इसी रामकथा में भगवान हनुमान जी को लेकर बाबा तुलसीदास जी ने लिखा है कि हनुमान जी भगवान श्री राम के लिए भरत के समान प्रिय थे, अर्थात श्रीराम के लिए हनुमान जी जैसे वनवासी उनके भाई के समकक्ष थे.
जहां तक बात राहुल गांधी की रही है, यह बात समझ आती है कि ना उन्होंने कभी रामकथा सुनी है, ना पढ़ी है और ना ही कभी देखी है. राहुल गांधी की समझ का विस्तार केवल ईसाई समूह और वामपंथियों की सलाह तक ही सीमित दिखाई देती है.
चूंकि राहुल गांधी की माँ सोनिया गांधी एक इतालवी कैथोलिक ईसाई परिवार से ताल्लुक रखती हैं, एवं एक किताब पर बनी फ़िल्म में इस बात का उल्लेख है कि राहुल गांधी अपनी माँ से इतालवी भाषा में संवाद करते हैं, ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे अपनी मां की धार्मिक आस्था से भी जुड़े होंगे.
इसके अलावा राहुल गांधी की बहन प्रियंका वाड्रा का विवाह भी ईसाई परिवार में हुआ है, ऐसे में यह अनुमान लगाना बिल्कुल भी कठिन नहीं कि ईसाई धर्म से राहुल गांधी के कितने करीबी संबंध हैं.
इन परिस्थितियों में राहुल गांधी भारतीय इतिहास, वनवासी शब्द और जनजाति समाज के लिए किसी प्रकार की टिप्पणी कर रहे हैं तो इसके पीछे सीधे तौर पर उनके वे सलाहकार हो सकते हैं जो चर्च या वामपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं.
बीते 9 नवंबर को ही ईसाई चर्च के एक समूह ने राहुल गांधी से नांदेड़ में मुलाकात कर ईसाइयों के हित में कुछ फैसले लेने की मांग की थी. राहुल गांधी को भविष्य में प्रधानमंत्री बनने के बाद ईसाई बन चुके जनजातियों को लेकर भी चर्च के पक्ष में फैसले लेने के लिए एक डिमांड मेमोरेन्डम दिया गया था.
इन मांगों के बीच में ईसाई समूह ने यह भी कहा था कि भारत के चर्चों में राहुल गांधी की सफलता के लिए दुआएं मांगी जा रही हैं, साथ ही 2024 का चुनाव गेमचेंजर साबित होगा.
क्या इन मांगों के बाद ईसाई समूह के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करने के लिए राहुल गांधी ने ‘वनवासी’ शब्द का विरोध किया है? क्योंकि ऐसा पहले भी देखा गया है कि वामपंथी एवं ईसाई समूहों ने जनजातियों के लिए ‘वनवासी’ शब्द का प्रयोग करने का विरोध किया है.
इन सबके अलावा जिस तरह से राहुल गांधी ने आदिवासियों को भारत का असली मालिक कहा है, वह भी ईसाइयों के द्वारा गढ़ी गई एक कहानी है, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने शासन एवं अत्याचारों को सही ठहराने का प्रयास किया है.
हिन्दुओं को बाहरी बताकर एवं जनजातियों (आदिवासी नाम देकर) को हिन्दुओं से अलग बताकर ईसाई अंग्रेजों ने अपने शासन को भी सही ठहराया था. उनका कहना था कि जिस प्रकार अंग्रेज ईसाई बाहर से आकर भारत में राज कर रहे थे, ठीक उसी तरह हिन्दुओं ने भी बाहर से आकर यहां के मूलनिवासियों पर राज किया है.
हालांकि बाद में हुए तमाम डीएनए शोधों एवं अन्य वैज्ञानिक प्रमाणों में इस बात की पुष्टि हुई कि भारतीय उपमहाद्वीप के निवासी मूल रूप से यहीं के मूलनिवासी हैं. लेकिन राहुल गांधी ने जिस प्रकार से इस बात को आगे रखने का प्रयास किया है, वह किसी बड़ी साजिश का हिस्सा प्रतीत होता है.
राहुल गांधी ने जिस प्रकार से वनवासी, जनजाति और आदिवासी शब्दों को लेकर भ्रम की स्थितियां पैदा कर जनजाति समाज को बरगलाने का प्रयास किया है, उसके पीछे दो कारण हो सकते हैं.
पहला तो यह है कि राहुल गांधी को इस विषय की समझ नहीं और वह अपनी अपरिपक्वता में इस तरह के बयान दे रहे हैं. उनके राजनीतिक सलाहकार एवं सहयोगी उनसे इन बातों को बुलवा रहे हैं और राहुल गांधी इसे कांग्रेस पार्टी के लिए बेहतर चुनावी जुमला समझकर बोलते जा रहे हैं.
वहीं, दूसरा कारण हो सकता है चर्च के साथ किसी प्रकार का गठजोड़! दरअसल हाल ही में जिस प्रकार से अंतरराष्ट्रीय चर्च समूह से जुड़े एक गुट ने राहुल गांधी से मुलाकात कर उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री बताया, उनके लिए प्रार्थनाओं की बात की और अपनी मांगों को उनके सामने रखा, इससे यह भी स्पष्ट होता है कि राहुल गांधी और चर्च के बीच एक अदृश्य गठजोड़ तो है, जो अंदर ही अंदर राजनीतिक गोलबंदी का कार्य कर रहा है.
एक तरफ जहां चर्च उन्हें प्रधानमंत्री बनता देख रहा है, वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी चर्च के एजेंडे को हवा देते हुए दिखाई दे रहे हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो यह साफ-साफ दिखाई देता है कि चर्च, ईसाई समूह, इस्लामिक जिहादी गुट और वामपंथी समूह पूरे जी-जान से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने में तुला हुआ है ताकि उनकी सत्ता में ये समूह भारत में अपना राज स्थापित कर सके, और राहुल गांधी समयसमय पर उन्हें ऐसे संकेत देते रहते हैं, जिससे इस बात की पुष्टि हो कि वो उन समूहों के लिए प्रतिबद्ध हैं.
Courtesy – The Narrative