भारत का इतिहास भी अभारतीयों के भरोसे रहा है. इसका परिणाम यह हुआ कि हम आत्मविस्मृत अवस्था में जीने लगे. स्वतंत्रता के बाद हिन्दू गौरव के इतिहास का संकलन कार्य पुन: आरंभ हुआ. नए नए अनुसंधान प्रारम्भ हुए, जैसे-जैसे सत्य इतिहास का अनुसंधान आगे बढ़ने लगा, सत्य से साक्षात्कार होने लगा, त्यों-त्यों हमें अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी मिलने लगी. अब हिन्दू उस गौरव की पुनर्प्राप्ति के सभी मार्ग अपनाने की दिशा में भी बढ़ चला है. इसी का एक पड़ाव श्रीराम मंदिर निर्माण है.
मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारतवर्ष के 30 हजार धर्मस्थलों को ध्वस्त किया. श्रीराम जन्म स्थल पर बना बाबरी ढांचा इसका प्रमुख साक्ष्य रहा. ऐसे अनेक स्थल हैं. उसी तरह दूसरा बड़ा स्थान काशी-विश्वनाथ मंदिर है. इस मंदिर की छाती पर बनी आलमगिरी मस्जिद भी चीख-चीख कर सत्य का बखान कर रही है.
अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने का फैसला जब 9 नवंबर को आया, तब तथाकथित सेकुलर चेहरों की हवाइयां उड़ी हुई थीं. राम को झुठलाने के जिहादी-वामपंथी षड्यंत्र का इस दिन अंत हुआ था. आज राम को काल्पनिक बताने वाले स्वयं काल्पनिक हुए जा रहे हैं. इस दिन राष्ट्रीय विचार मानने वालों का, देश की संस्कृति के रक्षणार्थ जीने मरने वालों का, राष्ट्र के गौरव से स्वयं का एकाकार करने वालों का न्यायालय के प्रति विश्वास अधिक दृढ़ हुआ. किंतु सेकुलर कहे जाने वाले बुद्धिजीवी आज भी न्यायालय के फैसले की आलोचना कर रहे हैं.
ज्ञानवापी, भोजशाला हो या मथुरा कृष्ण जन्म स्थल, ढाई दिन का झोपड़ा हो या कोई भी बुलंद मस्जिद, वे हिन्दुओं के स्वाभिमान को ध्वस्त करने के लिए उनके आराध्यों के मंदिरों को भूमिसात कर बनाई इमारतें और ढांचे मात्र हैं. आज भी उनके साक्षात प्रमाण हिन्दू समाज को मुँह चिढ़ाते हैं और उनके ज़ख्मों पर नमक छिड़कते हैं. समय समय पर वामपंथी इतिहासकारों व उपन्यासकारों के माध्यम से अनेक झूठों को सच बनाकर परोसा गया. राष्ट्रीय विचार, राष्ट्रीय जीवन चिंतन के साथ षड्यंत्र किए गए और राम जन्मभूमि जैसे मामले को भी उलझाने के प्रयास हुए. पहले विदेशी आक्रांताओं ने और बाद में जिहादी-वामपंथी गठबंधन ने गौरव व प्रतीकों का मानमर्दन कर हिन्दुओं की चेतना को समाप्त करने के अनेक प्रयास किए. लेकिन अब हिन्दू मूर्छा से निकलकर चैतन्य हो रहा है. अपना खोया अतीत तलाश रहा है. जितना जितना सत्य से उसका साक्षात्कार हो रहा है, उतना उतना स्वाभिमान जाग रहा है. जागे हुए स्वाभिमान और गौरवभान के बल पर वह सब कुछ पुनर्प्राप्ति के यत्न प्रयत्न, जतन, प्रयास, करता जा रहा है. जाग्रत समाज अपना स्वत्व प्राप्त करेगा.