राजस्थान विधानसभा में पारित विवाह पंजीकरण संशोधन विधेयक चर्चा में है. विधेयक की धारा 8 पर विवाद है. इसमें कहा गया है कि शादी के वक्त लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल से कम है तो उनके माता-पिता या अभिभावकों को तीस दिन के अंदर इसकी सूचना पंजीकरण अधिकारी को देनी होगी. इसी संशोधन को लेकर विवाद है. भारत का कानून कहता है कि अगर 21 साल की उम्र से पहले लड़के और 18 साल की उम्र से पहले किसी किसी लड़की का विवाह होता है तो उसे बाल विवाह माना जाएगा, और भारत में बाल विवाह पर प्रतिबंध है. इस पर सजा का भी प्रावधान है.
अब सवाल उठता है कि जब देश में बाल विवाह पर प्रतिबंध है तो इसका रजिस्ट्रेशन क्यों? क्या राजस्थान सरकार का कदम बाल विवाह को बढ़ावा देने वाला नहीं होगा? राजस्थान में विपक्ष के साथ ही बाल और महिला अधिकारों से जुड़े संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं. यहां तक कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने भी आपत्ति जताई है.
आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने तो यहां तक कह दिया है कि जरूरत पड़ी तो वह सुप्रीम कोर्ट तक भी जाएंगे. एनसीपीसीआर ने इस संबंध में राजस्थान के राज्यपाल से भी बात की है. कानूनगो का कहना है कि इस कानून से बाल विवाह के साथ ही बाल अपराध को भी बढ़ावा मिलेगा. यहां विवाह नहीं, बल्कि अपराध का पंजीकरण करने की बात हो रही है. सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह बच्चों के अधिकारों का संरक्षण करे, लेकिन राजस्थान के विधि निर्माताओं ने इस तरह का कृत्य किया है जो संविधान के परे है. महात्मा गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ में लिखा था कि लड़कियों पर इससे बड़ा जुल्म नहीं हो सकता कि उनका विवाह अल्प आयु में कर दिया जाए. उनका खुद का बाल विवाह हुआ था और बाल विवाह का उनसे ज्यादा मुखर विरोध किसी ने नहीं किया होगा. उन्होंने कई बार यह बात स्वीकार की कि बा के साथ तमाम अन्यायों में एक अन्याय यह भी शामिल है कि उनका बाल विवाह हुआ.
क्या कहता है कानून
बाल विवाह निषेध अधिनियम किसी भी रूप में बाल विवाह को प्रतिबंधित करता है. राजस्थान में विवाह पंजीकरण के संशोधित विधेयक की धारा 8 न केवल कानून की दृष्टि से, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी ठीक नहीं है. यह प्राकृतिक न्याय के भी खिलाफ है.
बच्चों के साथ न करें राजनीति
सरकार बच्चों को राजनीति में न लाए. बच्चों के साथ छल करने का काम न करे. क्या सरकार अपराध के पंजीयन का काम करने जा रही है. जो भी इस तरह की शादी का संपादन कराएगा तो उसे दो साल की जेल होगी. यह गैर जमानती अपराध है. इस तरह का कानून बनाकर आप अपराध करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं. इस तरह के सारे मामले न्यायालय में आएंगे. आरोपी कोर्ट से कहेगा कि विवाह का पंजीकरण हुआ है तो अपराध कैसे होगा. सरकार ने इसे मान्यता दी है. इस तरह तो अपराधी बच जाएगा, न कि उसे सजा मिलेगी. राजस्थान सरकार तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है. वह एक वर्ग को खुश रखना चाहती है.
शर्म से झुक जाता है सिर
एनसीपीसीआर के अध्यक्ष ने कुछ केस स्टडी साझा की. उन्होंने बताया कि राजस्थान के चाइल्ड केयर सेंटर में नाबालिग बच्चियां अपने बच्चों के साथ रह रही हैं, यह देखकर हमारा सिर शर्म से झुक जाता है. हमें हर बच्चे को बाल अधिकार दिलाना है. बाल अपराध जड़ से खत्म होना चाहिए. एक बच्ची को त्रिपुरा से राजस्थान लाया गया. उसे राजस्थान में बेचा गया और उसका विवाह कराया गया. उसका गर्भपात हुआ. यह सारी बात आयोग के संज्ञान में तब आई जब उच्च न्यायालय ने नोटिस भेजा. उस बच्ची के अभिभावकों ने उसे साथ रखने से मना कर दिया. इस तरह के कृत्यों की कड़े शब्दों में निंदा की जाए तो भी कम है.
पॉक्सो कानून बच्चों के साथ शारीरिक संबंध को यौन हिंसा की श्रेणी में रखता है. 18 साल से पहले बच्चे शारीरिक संबंध नहीं बना सकते है. यह अपराध है. बाल विवाह का पंजीकरण करने से बच्चों के साथ दुष्कर्म होगा. राजस्थान के राज्यपाल को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के विचार से अवगत करा दिया गया है. आयोग यह काला कानून लागू नहीं होने देगा. जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे.
बाल विवाह के 750 से अधिक मामले रिपोर्ट हुए हैं. जमीनी स्तर पर तो इससे कहीं अधिक मामले होंगे. बाल विवाह के पंजीकरण का कानून जमीनी स्तर पर काम कर रहे अधिकारी का मनोबल तोड़ देगा. राजस्थान सरकार राजा राममोहन राय के प्रयासों, महात्मा गांधी के सपनों, ज्योतिबा फुले के संघर्ष को व्यर्थ करने का काम कर रही है.
राजस्थान सरकार का तर्क
राजस्थान सरकार का कहना है कि बाल विवाह के पंजीकरण से इस तरह के विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी गई है. यह सिर्फ पंजीकरण है. कार्रवाई के लिए अधिकारी स्वतंत्र हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि सभी तरह के विवाह का पंजीकरण होना चाहिए.