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जम्मू कश्मीर प्रशासन की कार्रवाई – पाकिस्तान के इशारे पर सुरक्षाबलों पर झूठे आरोप लगाने वाले के दो डॉक्टर बर्खास्त; 14 साल पहले गढ़े थे झूठे सूबत

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पाकिस्तान के इशारे पर काम करने वाले दो डॉक्टरों को जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने सेवा से बर्खास्त कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दोनों डॉक्टरों पर पाकिस्तान के इशारे पर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट्स से छेड़छाड़ करने का आरोप है. उनकी करतूत के कारण वर्ष 2009 में कश्मीर संभाग में हिंसा भड़की थी और 42 दिन तक कश्मीर घाटी बंद रही थी. मामले की जांच के पश्चात, 29 मई 2009 के ‘शोपियां बलात्कार’ मामले में झूठे सबूत गढ़ने के आरोप में अब डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निघत शाहीन चिल्लू को पद से हटा दिया गया.

लगभग 14 साल पहले कश्मीर संभाग के शोपियां में 30 मई, 2009 को दो महिलाओं – आसिया और नीलोफर के शव मिले थे. शव मिलने के बाद आरोप लगाया गया कि सुरक्षा कर्मियों ने उनके साथ रेप किया और फिर उनकी हत्या कर दी. CBI ने इस मामले की जांच की और जांच के बाद जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में रिपोर्ट प्रस्तुत की. रिपोर्ट में सामने आया कि दोनों महिलाओं के साथ न तो बलात्कार हुआ था और न ही उनकी हत्या की गई, बल्कि उनकी मौत डूबने से हुई थी. जांच के दौरान यह सामने आया कि दोनों डॉक्टरों का मकसद सुरक्षाबलों पर बलात्कार और हत्या का झूठा आरोप लगाकर लोगों में असंतोष पैदा करना था. दोनों आरोपी डॉक्टरों ने पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के इशारे पर यह झूठी साजिश रची थी.

और अब प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए डॉ. बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निगहत शहीन सेवा से हटा दिया है. उन पर पाकिस्तान के साथ सक्रिय रूप से काम करने व साजिश रचने का आरोप है.

डॉ. निघत शाहीन चिल्लू, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं और वर्तमान में उप-जिला अस्पताल, सरकारी स्वास्थ्य विभाग, चाडुरा, बडगाम में तैनात हैं. वहीं डॉ. बिलाल अहमद दलाल एक चिकित्सा अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं और वर्तमान में एनटीपीएचसी में तैनात हैं.

शोपियां में हुई इस घटना के बाद कश्मीर घाटी 7 महीने तक सुलगती रही थी. जून से दिसंबर 2009 तक कुल 7 महीनों में हुर्रियत जैसे समूहों द्वारा 42 बार हड़ताल का आह्वान किया गया, जिसके परिणामस्वरूप घाटी में बड़े पैमाने पर दंगे हुए. घाटी के सभी जिलों से करीब 600 छोटी-बड़ी घटनाएं सामने आईं. दंगा, पथराव, आगजनी आदि के लिए विभिन्न पुलिस स्टेशनों में कुल 251 FIR दर्ज की गईं. इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान 07 नागरिकों की जान गई और 103 घायल हुए. इसके अतिरिक्त, 29 पुलिस कर्मियों और 06 अर्धसैनिक बलों के जवानों को चोटें आईं थीं.

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