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गोरखपुर में श्रीराम मंदिर आंदोलन की लौ जगाने वाले कार्यकर्ता

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गोरखपुर. श्रीराम मंदिर निर्माण कार्य का शुभारंभ कल (05 अगस्त) होने वाला है. इसे लेकर पूरे देश में उत्साह है, प्रत्येक व्यक्ति उत्साहित है. गोरक्षनगरी में भी दीप जलाकर स्वागत की तैयारियां चल रही हैं. लेकिन मंदिर निर्माण के लिए चले लंबे आंदोलन में अपनी जवानी लगा देने वाले बहुत से कारसेवक व आंदोलनकारी ऐसे हैं जो अब गोलोकवासी हो चुके हैं, उनकी मंदिर देखने की हसरत अधूरी ही रह गई.

क्षेत्र में मंदिर आंदोलन को धार देने वाले विश्व हिन्दू परिषद के नागेंद्र सिंह उर्फ दाढ़ी बाबा, विजय नारायण द्विवेदी, डॉ. चक्रपाणि शुक्ला, रामसूरत मल्ल सहित बहुत सारे ऐसे नाम हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन उनकी सक्रियता की चर्चा रामभक्त आज भी करते हैं.

रामभक्तों का निःशुल्क इलाज करते थे डॉ. चक्रपाणि

विश्व हिन्दू परिषद में सन् 1985 से 1992 तक महानगर अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने वाले पेशे से चिकित्सक डॉ. चक्रपाणि शुक्ला के राम मंदिर आंदोलन में योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. वे आंदोलन में सक्रिय रहते ही थे, कारसेवकों, रामभक्तों, विहिप और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का नि:शुल्क इलाज भी करते थे. उनका सरल व्यवहार ही था कि डॉक्टर होते हुए भी कार्यकर्ताओं में बहुत लोकप्रिय थे.

कारसेवकों में काफी लोकप्रिय थे दाढ़ी बाबा

सरस्वती विद्या मंदिर आर्यनगर उत्तरी के प्रधानाचार्य रहे स्व. नागेंद्र सिंह उर्फ दाढ़ी बाबा कारेसवेकों में काफी लोकप्रिय थे. सन् 1991 से 1997 तक विश्व हिन्दू परिषद गोरखपुर विभाग अध्यक्ष का दायित्व संभाला. यह, वह दौर था जिस वक्त पूरा देश मंदिर आंदोलन की राह पर था. उन दिनों दाढ़ी बाबा का विद्या मंदिर आंदोलन का प्रमुख केंद्र था. गतिविधियों में दाढ़ी बाबा ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. सरस्वती विद्या मंदिर में गोपनीय कार्यालय था, जहां बैठकें होती थीं. कारसेवकों के विश्राम की व्यवस्था, विहिप व बजरंग दल का सहयोग आजीवन करते रहे. दाढ़ी बाबा कहते थे, जीवन की एक ही इच्छा है कि श्रीराम मंदिर को देखूं और वहां उपासना करूं.

पहली संकल्प सभा

07 अक्तूबर, 1984 को अयोध्या के सरयू तट पर होने वाली पहली संकल्प सभा से ही मंदिर आंदोलन की कमान संभाली थी. विहिप प्रमुख अशोक सिंघल ने उन्हें संगठन के भीष्म की संज्ञा दी थी. चौरीचौरा के ब्रहमपुर निवासी विजय नारायण द्विवेदी ने 16 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में सामाजिक जीवन प्रारंभ किया. मंदिर निर्माण आंदोलन के समय विहिप गोरखपुर संभाग के संगठन मंत्री थे. प्रदेश में निकलने वाली तीन रथ यात्राओं में गोरखपुर संभाग में चलने वाली श्रीराम जानकी रथयात्रा के प्रमुख रहे. पिपराइच में दंगे के बाद जब रथ को जिला प्रशासन ने रोक दिया था, हिन्दुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा. देवरिया जिले में रथयात्रा के स्वागत में 27 किलोमीटर की लंबी लाइन लगी थी, जिसकी चर्चा उन दिनों बीबीसी न्यूज ने भी की थी.

चंदे की पहली रसीद खुद कटवाते थे रामसूरत मल्ल

महानगर के दीवान बाजार निवासी रामसूरत मल्ल सन् 1990 से 1998 तक विश्व हिन्दू परिषद गोरखपुर विभाग के कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली. खास बात यह थी कि रामभक्तों को प्रेरित करने के लिए सबसे पहले खुद पहल करते थे. कोषाध्यक्ष के रूप में जब भी मंदिर निर्माण आंदोलन की रसीद छपती थी, उनके हस्ताक्षर से रसीद जारी होती थी और सबसे पहली रसीद वह स्वयं कटवाते थे. वे ही नहीं उनकी धर्मपत्नी कृष्णा मल्ल भी राम मंदिर आंदोलन में पति से बचाकर रखे रुपये में से सहयोग करती थीं.

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