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आखिर कैसे देखते ही देखते सैकड़ों एकड़ सरकारी भूमि पर कब्जा हो जाता है?

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अब्दुल सड़क पर टहल रहा था, उसे खाली पड़ी जमीन पसंद आई. अब्दुल की आँखे टकराईं और जाग गयी तमन्ना की काश ये हमारी होती. लड़की होती तो अब्दुल लव जिहाद करता, न मानने पर शायद सड़क पर गोली मार देता, लेकिन ये थी जमीन. अब्दुल परेशान कि करे तो करे क्या? फिर अब्दुल का मेन्टोस आइडिया, अब्दुल ने पहले चार ईंटें रख दीं, अगली दोपहर तक उसने दो अगरबत्तियां जलाईं, अगरबत्ती बुझी भी नहीं थी कि चार मोमिन आए और हरी चादर चढ़ा कर चले गए और खाली पड़ी जमीन देखते देखते एक मजार बन गयी. अगली सुबह एक मौलवी भी बैठ गया, पहले लगी दुकानें, फिर आने लगी भीड़. अब भीड़ के जमा होने के लिए कोई जगह तो चाहिए? तो वहां बन गया शेड. शेड के आस पास खड़ी हुई दीवारें. अब भाई इतनी दूर से कौन आये चादर चढ़ाने? तो अब्दुल ने सोचा थोड़ी समाजसेवा की जाए. अब्दुल ने बगल में एक झोंपड़ी डाल दी, अगले दिन अब्दुल के चच्चा-चच्ची भी आ गए तो एक कमरा और सही. धीरे-धीरे आबादी बढ़ी और बढ़ गई जरुरतें. 5 रुपए किलो चावल तो अब्दुल खा ही रहा था सोचा आवास व्यवस्था भी कर ली  जाए. अब अब्दुल के एक आगे अब्दुल, अब्दुल के एक पीछे अब्दुल उसके साथ चच्चा-चच्ची. देखते देखते खाली पड़ी जमीन एक बस्ती में बदल गई.

यह किसी शहर विशेष की कहानी नहीं है और ना ही किसी इकलौते अब्दुल का यात्रा वृतांत है, बल्कि यह सर्वव्यापी समस्या बन चुकी है. हर शहर, जिले, राज्य में ऐसे ना जाने कितने अब्दुल घूमते-घामते खाली पड़ी जमीन पर मजार, मकबरा, दरगाह या मस्जिद खड़े कर देते है, फिर अगल बगल एक पूरी बस्ती खड़ी हो जाती है.

अब, इसे आप सच मानेंगे नहीं तो चलिए कुछ उदाहरण देते हैं –

ताजा मामला….भोपाल में ईरानी डेरे पर कार्रवाई करने पहुंची पुलिस की टीम पर महिलाओं ने हमला कर दिया, जिसमें कई पुलिसकर्मी चोटिल हुए थे. इसके बाद भोपाल प्रशासन एक्शन में आया और अतिक्रमण हटाने की शुरुआत हुई. लोकिन सवाल यह है कि आखिर प्रदेश की राजधानी के बींचो-बीच इतना बड़ा अतिक्रमण हुआ कैसे?

दशकों पूर्व ईरान से चला अब्दुल अपने एक परिवार के साथ यहां आया तो उसे यहां की जमीन पसंद आ गई, फिर क्या था? खड़ी हो गई एक मजार और फिर वही चच्चा-चच्ची. सैकड़ों अब्दुल धीरे-धीरे यहाँ आकर रहने लगे, और 12 हजार वर्ग फीट जमीन पर कब्जा हो गया. राजा भोज की पावन भूमि पर ‘जमीन जिहाद’ की साजिश (ईरानी डेरा) पर जिला प्रशासन, नगर निगम भोपाल ने कार्रवाई करना शुरू किया तो ‘अब्दुल के इस अड्डे’ से पुलिस पर भारी पथराव किया गया. भोपाल के चार थानों के एक सर्वे में यह कहा गया कि इस क्षेत्र में गोपनीय ठिकाने बनाए गए हैं, जहां अवैध हथियार भी हो सकते हैं.

इससे पहले भी भोपाल में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां किसी शासकीय या गैर मजरुआ जमीन पर किसी अब्दुल ने अवैध कब्जा कर लिया. केरवा डैम के समीप मजार बनाकर शासकीय भूमि पर किए जा रहे कब्जे का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. जिसमें एक युवक यह बताते हुए नजर आ रहा है कि किस प्रकार से केरवा डैम स्थित शासकीय भूमि पर चंद लोगों ने अतिक्रमण करके एक मजार का निर्माण कर दिया और धीरे-धीरे इसकी आड़ में वह खाली पड़ी शासकीय भूमि पर कब्जा करते जा रहे हैं. लोगों ‘जमीन जिहाद’ की साजिश को समझते हुए कार्रवाई की मांग की और एक्शन लेते हुए उसे हटा दिया गया.

उत्तरप्रदेश की पवित्र गिरिराज गोवर्धन पहाड़ियां और उसके परिक्रमा पथ को कब्जे में लेने के उद्देश्य से कुल सात मजार खड़े कर दिए गए थे. ‘लैंड जिहाद’ (जमीन जिहाद) की यह साजिश जब ‘राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण’ के संज्ञान में आई तो प्राधिकरण ने पूरे क्षेत्र को ‘नो-कंस्ट्रक्शन जोन’ घोषित किया. लेकिन अब्दुल की जमीन हड़पने वाला दुश्चक्र जारी रहा, लैंड जिहाद की साजिश चलती रही. बीते 12 नवंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर राज्य सरकार ने पवित्र गिरिराज गोवर्धन के परिक्रमा पथ के रास्ते में आने वाली अब्दुल के सातों मजारों को ध्वस्त कर दिया.

बिहार की राजधानी पटना में अब्दुल घूमते-घामते हाईकोर्ट में ही मजार बना देता है. ‘जमीन जिहाद’ का यह प्रारूप यहां कई वर्षों में इतना पैठ बना चुका था कि मजार के अगल-बगल बस्तियां भी बसा दी गई थी. पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद जब जिला प्रशासन अतिक्रमण हटाने पहुंचता है, तो सैकड़ों अब्दुल घेर लेते हैं, हंगामा करते हैं. संभावित विरोध को देखते हुए प्रशासनिक अधिकारी पूरी तैयारी कर वहां गए थे. वज्र वाहन के साथ ही दो दर्जन से अधिक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था, कार्रवाई हुई, कब्जा हटाया गया.

उत्तरप्रदेश में अब्दुल मौज-मौज में मजार बनाने में माहिर हो चुके हैं. अलीगढ़ के हरदुआगंज स्टेशन के फाटक के अल्ट्रा ट्रैक फैक्टरी के पास सरकारी जमीन पर किसी अब्दुल ने मजार बना कर जमीन कब्जा ली. जब इसकी जानकारी ‘बजरंग दल’ के कार्यकर्ताओं को हुई तो उन्होंने जवा थाने में जाकर अज्ञात के खिलाफ तहरीर दी व मजार को हटवाने की मांग की. इस संदर्भ में ‘बजरंग दल’ के कार्यकर्ताओं का कहना है, मजार की आड़ में कुछ दुकानदार सरकारी जगह पर अतिक्रमण कर कब्जा कर रहे हैं. स्थानीय युवक बताते हैं कि जहां ये मजार बनाई गई है, वहां पर अल्ट्राटेक सीमेंट फैक्ट्री है, जिसके आस-पास की सरकारी जगह पर अतिक्रमण कर अब्दुल ने पंक्‍चर की दुकानें बना रखी हैं. जवा थानाध्यक्ष अभय कुमार शर्मा ने बताया कि अवैध अतिक्रमण की जांच चल रही है.

जम्मू शहर और उसके कई जिलों में अब्दुल मजार से आगे निकलकर अब डेमोग्राफिक चेंज तक करने लगे हैं. हाल फिलहाल में यह एक बड़ी चिंता के तौर पर उभरा है. इस संबंध में ‘एकजुट जम्मू’ नामक एक संगठन ने जो खुलासे किए हैं वे बेहद चौंकाने वाले हैं. इस संबंध में संगठन ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उससे पता चलता है कि जम्मू में सुनियोजित तरीके से ‘जमीन जिहाद’ को अंजाम दिया गया. जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की छत्रछाया में इसे अंजाम दिया गया. दोनों नेताओं ने हिन्दू बहुसंख्यक क्षेत्रों में स्टेट स्पांसर्ड तरीके से लाकर बसाया. देखते ही देखते अपने ही इलाकों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गए. जम्मू-कश्मीर की सभी तथाकथित ‘सेकुलर’ मुस्लिम पार्टियां चाहे वह पीडीपी हो या नेशनल कॉन्फ्रेंस, उसने इस जिहाद को आगे बढ़ाने का काम किया.

रिपोर्ट के अनुसार जम्मू में 1990 के बाद 1,00,000 घरों का निर्माण हुआ. 50 लाख कनाल सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हुआ. एक कनाल 505.857 वर्गमीटर के बराबर होता है. 1994 में जम्मू शहर में केवल 3 मस्जिद थे, लेकिन देखते ही देखते वहां 100 से ज्यादा मस्जिद बना दिए गए.

चार ईंट जमीन पर रखकर मजार, मकबरा, दरगाह, का निर्माण. फिर आबादी का पलायन – ‘जमीन जिहाद’ से शुरू होने वाले इस भयानक दुश्चक्र को समझें. यह किसी एक शहर, जिला या किसी एक राज्य की समस्या नहीं रही, बल्कि यह नितांत समझा जाना चाहिए कि पूरा देश इस आंतरिक खतरे से घिरा हुआ है.

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