पुणे.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि उन्नति के लिए उत्पन्न का साधन होना चाहिए, लेकिन जीवन का वही लक्ष्य नहीं हो सकता. समाज परिवर्तन जीवन का लक्ष्य होना चाहिए. दुर्भाग्य से आज की शिक्षा प्रणाली लक्ष्य विहीन हो चुकी है और साध्य को अधिक महत्व दिया जा रहा है. लक्ष्य विहीन शिक्षा प्रणाली राष्ट्र के लिए घातक है.
डॉ. वैद्य जी पुणे के तिलक मार्ग स्थित श्री गणेश सभागार में ‘विवेकानंद केंद्र, कन्याकुमारी के महाराष्ट्र प्रांत’ की ओर से आयोजित ‘अमृत मिलन’ समारोह में संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम में केंद्र के जीवनव्रती विश्वास लपालकर के अनुभवों पर आधारित ‘अरूण रंग’ पुस्तक का विमोचन किया गया. कार्यक्रम में अखिल भारतीय सह-प्रचार प्रमुख प्रदीप जोशी, विवेकानंद केंद्र के महासचिव भानुदास जी, विवेकानंद केंद्र मराठी प्रकाशन विभाग के सचिव सुधीर जोगलेकर, व अन्य उपस्थित रहे. अरूण रंग पुस्तक का शब्दांकन दिलीप महाजन ने किया है.
डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि जीवन के ध्येय और साध्य में अंतर है. “डॉक्टर अथवा इंजीनियर बनना शिक्षा का साध्य हो सकता है, लेकिन ध्येय नहीं. शिक्षा का ध्येय समाज परिवर्तन ही होना चाहिए. एक व्यक्ति के रूप में हमारा जीवन सफल होने की अपेक्षा सार्थक होना आवश्यक है. समाज में सामाजिक पूंजी बढ़ाते रहना यानी जीवन सार्थक होना है”.
विशअवास लपालकर ने कहा कि जगमगाते दीयों की रोशनी मेंअपना दीया जलाने की बजाय, जहां अंधकार है वहां कार्य करना चाहिए. इस भावना के साथ पूर्वांचल में जीवनव्रती के रूप में काम किया.
भानुदास जी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद का कार्य हर व्यक्ति तक पहुंचाने की आवश्यकता है क्योंकि आज के समाज में हर एक को उत्तिष्ठ जाग्रत का व्रत लेने की आवश्यकता है.
प्रदीप जोशी जी ने कहा कि जनजाति समाज हमारी अपेक्षा अधिक संगठित और सुसंस्कृत है. “पूर्वांचल को लेकर स्थानीय लोगों की अपेक्षा बाहरी लोगों ने ही अधिक अपप्रचार करते हुए झूठा नैरेटिव खड़ा किया है. अपने कानून, संस्कृति, नव तकनीक और भाषा समृद्धि का विचार करने वाला जनजाति समुदाय अधिक समृद्ध है. उनकी सकारात्मक और रचनाशील बातों को शेष भारतीयों तक पहुंचना चाहिए”.