अजमेर में 32 वर्ष पहले 100 से अधिक नाबालिग हिन्दू बच्चियों के साथ दरिंदगी करने वाले आरोपियों में से 6 को हाल ही में पोक्सो कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिनमें नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ़ टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सैयद जमीर हुसैन शामिल हैं.
जिसके पश्चात देश और दुनिया में चर्चित रहा यह घिनौना मामला एक बार फिर चर्चा के केन्द्र में आ गया. हिन्दुओं का कहना है कि देर से ही सही इन पापियों को सजा तो मिली, अब इनकी सांसें काल कोठरी में ही निकलनी चाहिए. न्याय में हुई देरी को लेकर भी लोगों में आक्रोश देखने को मिला. लोगों ने कहा कि ऐसे दरिंदों को बीच चौराहे पर फांसी दी जानी चाहिए.
लेकिन दुर्भाग्य यह कि कुछ लोग मासूम बच्चियों का जीवन नरक बनाने वालों के पक्ष में भी खड़े दिखे. इन्होंने सारी सीमाएं पार करते हुए यहां तक कह दिया कि मीडिया को आरोपियों के नाम और तस्वीरें नहीं छापनी चाहिए थीं. इन बुद्धिजीवियों ने समाचार पत्रों की हैडलाइन तक पर प्रश्न उठा दिए. इनका तर्क है कि इससे साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ता है, जबकि ये भूल गए कि अजमेर में स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को ब्लैकमेल कर कितनी वीभत्सता से उनका देह शोषण किया गया था.
समाचार पत्रों में इन आरोपियों के नाम और फोटो छपते ही ये बुद्धिजीवी तिलमिला उठे. कह रहे हैं, इतने पुराने, 1992 में हुए मामले को इतना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने का कोई औचित्य नहीं है. ये लोग ऐसी रिपोर्टिंग करके, आरोपियों की अजमेर दरगाह से जुड़ी आइडेंटिटी बताकर “समस्याएं” पैदा कर रहे हैं.
ऐसी ही एक चर्चा का वीडियो फ्रंटलाइन मैगज़ीन ने 26 अगस्त को जारी किया, जिसमें योगेंद्र यादव और सबा नकवी अजमेर सेक्स स्कैंडल पर बात कर रह रहे हैं. वीडियो में इनका दर्द साफ झलक रहा है.
वीडियो में सबा नकवी कहती हैं – उन्हें आश्चर्य है कि देश में रेप की इतनी घटनाएं हो रही हैं, अनुसूचित जाति की महिलाओं का लगातार शोषण हो रहा है, लेकिन मीडिया अजमेर सेक्स स्कैंडल को दिखाने में लगा है. आजकल के बड़े पत्रकार भी वर्तमान की खबरें दिखाने के स्थान पर इस मामले की याद दिला रहे हैं और यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि अपराधी मुस्लिम थे. इसके बाद योगेंद्र यादव घटना की कवरेज करने वाले पत्रकारों को कोसते हुए कहते हैं – एक दिन दुनिया की पुस्तकों में पढ़ाया जाएगा कि देख लो कैसे एक देश का मीडिया परेशानियों की जड़ बनता है. ऐसे मीडिया को इन समस्याओं के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
सबा नकवी – समाचारों में बार-बार ऐसे दिखाया गया कि मुस्लिम दोषी हैं, जबकि उस घटना का आज के समय से कोई लेना-देना नहीं है.
तभी योगेंद्र यादव – आखिर दैनिक मीडिया समाचार पत्र किस प्रकार से अजमेर रेप केस के आरोपियों का नाम सबको बता रहे हैं. उन्हें मिली सजा के समाचार फ्रंट पेज पर दिखा रहे हैं.
इस पर सबा नकवी – जरूर इसके लिए इंस्ट्रक्शन दिए गए होंगे कि अजमेर जाओ.
योगेंद्र यादव – चलो सही बात है कि इस मामले में रिपोर्टिंग हुई कि कोई मामला 30 वर्ष से अधिक खिंचता गया, लेकिन क्या इसे बैनर बनाकर दिखाना सही था कि उसमें आरोपियों के नाम और फोटो भी लगाए जाएं, वो भी मुख्य पृष्ठ पर और ऐसे समय में जब पूरा देश किसी और मुद्दे पर बात कर रहा है.
सबा नकवी – यह मुद्दा ऐसा है, जिस पर चिंता की जानी चाहिए. साथ ही कहा कि अब पत्रकार सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम करते हैं. उन्हें लगता है समाचार में मुस्लिम नाम डालकर वह पाठकों में और रुचि जगा देंगे. अनुसूचित जाति की महिलाओं के रेप में किसी को कोई रुचि नहीं है.
योगेंद्र यादव – बिहार, यूपी में आजकल घटना होती है तो कोई नहीं बोलता, जबकि इन घटनाओं का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन जब तक ये मुद्दे राजनीतिक नहीं बनते, तब तक इनकी चिंता कोई नहीं करता. ऐसी स्थिति में मैं चाहता हूं कि चीजों का राजनीतिकरण किया जाए. चाहे वो पर्यावरण का मुद्दा हो या किसी और चीज का. आगे वह बैलेंस बनाने के लिए चिर परिचित वामपंथी तरीका अपनाते हुए कहते हैं कि उनके हिसाब से बंगाल का मुद्दा भी उठाया जाना चाहिए, लेकिन फिर ऐसे मामलों में आवाज बिहार के लिए भी उठनी चाहिए.
यह तो सिर्फ एक वीडियो की कहानी है. इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया के कई प्लेटफॉर्म और चैनलों पर चल रही डिबेट में लिबरल गिरोह के सदस्य अपने-अपने तर्क दे रहे हैं. उनका कहना है कि अजमेर सेक्स स्कैंडल के आरोपियों की सजा पर मीडिया की ओर से इतना हो-हल्ला मचाया जा रहा है, जैसे यह मामला आज ही घटित हुआ हो. इन लिबरल का कहना है कि देश में प्रतिदिन बालिकाओं और महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे हैं, उन्हें तो इतना बढ़ा-चढ़कर नहीं दिखाया जा रहा. इस मामले को सिर्फ इसलिए इतना प्रचारित किया जा रहा है क्योंकि जिनको सजा हुई है, वे सभी आरोपी मुस्लिम हैं.
अब इन बुद्धिजीवियों को कौन समझाए कि अजमेर में हुई घटना कोई साधारण नहीं थी. यह शक्तिशाली लोगों की दबंगई व कुंठित मानसिकता का परिणाम थी. इन आरोपियों को आजीवन कारवास नहीं बल्कि फांसी की सजा होनी चाहिए थी.
उल्लेखनीय है, अजमेर सेक्स स्कैंडल का मास्टरमाइंड फारुक चिश्ती था. फारुक के साथ ही अपराध में शामिल अनवर और नफीस चिश्ती दरगाह के खादिम परिवार से हैं. उस समय फारुक चिश्ती अजमेर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष, नफीस चिश्ती अजमेर युवा कांग्रेस का उपाध्यक्ष और अनवर चिश्ती अजमेर कांग्रेस का सचिव था. नफीस चिश्ती क्रिकेट के सट्टे का कारोबार भी चलाता था. 9 वर्ष पहले पुलिस ने दरगाह क्षेत्र के पन्नीग्रान चौक में स्थित एक होटल की पांचवीं मंजिल पर नफीस चिश्ती सहित चार लोगों को क्रिकेट मैच पर सट्टे के सौदे बुक करते हुए गिरफ्तार किया था.
इस कार्रवाई में लगभग पांच करोड़ 20 लाख रुपये का क्रिकेट सट्टा पकड़ा गया था. तभी पता चला था कि सटोरिए नफीस के तार दुबई से भी जुड़े हैं.