शिमला. पंडित दीनदयाल उपाध्याय पीठ हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय तथा विश्व संवाद केन्द्र शिमला (हिमाचल प्रदेश प्रांत) के संयुक्त तत्वाधान में ‘आपातकाल की विभीषिका’ विषय पर ऑनलाईन व्याख्यान आयोजित किया गया. जिसमें लोकतंत्र प्रहरी, लेखक तथा बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य हरेन्द्र कुमार ने कहा कि पटना में विपक्षी दल कांग्रेस के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर सरकार द्वारा की गई बर्बरता के कारण मुख्यमंत्री की बर्खास्तगी की मांग कर रहे थे. आपातकाल में समस्त लोकतांत्रिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे. पटना में जिस स्थान पर पटना में रेल की पटरियां नहीं थी, उसे उखाड़ने का आरोप लगाया गया. जो व्यक्ति चल नहीं सकता था, उस पर मीसा/डी.आई.आर. लगाया गया. आपातकाल में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने युवराज पुत्र संजय गांधी को वे समस्त अधिकार दे दिए थे, जो एक मंत्री, सांसद तथा विधायक को नहीं था. किसी सदन का सदस्य न होने के बावजूद संजय गांधी सबकुछ थे. यह भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय था. पटना ने ‘लोकवाणी’ नामक गुप्त समाचार-पत्र द्वारा जनता को आवाज देने का प्रयास किया.
लेखक लक्ष्मीनारायण भाला ने कहा कि मैंने आपातकाल में ‘अनिमेष गुप्त’ नाम से कार्य किया. मेरा कार्य क्षेत्र पूर्वोत्तर था. आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों तथा प्रचारकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया. उनकों नंगा करके दौड़ाना, शरीर में कीट-पतंगों को डाल देना, बुरी-बुरी गलियां देना आम बात थी. इस आन्दोलन में 85 प्रतिशत से अधिक संख्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विचार परिवार के सदस्यों की थी. तब जाकर भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुई.
हरजीत सिंह मोगा ने कहा कि एक चुनी हुई सरकार ने सत्ता सुख के लिए लोकतंत्र का गला घोंट दिया था.
अखिल भारतीय साहित्य परिषद, हिमाचल प्रदेश प्रांत की अध्यक्षा डॉ. रीता सिंह ने कहा कि मैंने पटना में आपातकाल के विकृत रूप को देखा है. आपातकाल में काव्य चेतना पर भी सरकार ने प्रहार किया था. यह उस कांग्रेस सरकार द्वारा किया गया जो अपने को लोकतंत्र का पुरोधा मानती है.
कार्यक्रम का संचालन एवं स्वागत पंडित दीनदयाल उपाध्याय पीठ के अध्यक्ष प्रो. मनोज चतुर्वेदी ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के पूर्व प्रति-कुलपति एवं विश्व संवाद केंद्र के संरक्षक प्रो. एन.के. शारदा ने किया.