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अमृत महोत्सव : 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का अद्भुत एवं अद्वितीय विस्मृत योद्धा – सूबेदार बलदेव तिवारी

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“राजा शंकर शाह, रघुनाथ के बलिदान का  प्रतिशोध”…..

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनेक योद्धा हुए, जिनका स्मरण देश आज भी करता है. लेकिन अनेक योद्धा विस्मृत कर दिए गए, गुमनामी में कहीं खो गए. जबलपुर के एक ऐसे विस्मृत महायोद्धा के बारे में बताएंगे, नाम है सूबेदार बलदेव तिवारी. जिनके नाम से ही अंग्रेज अफसर कांपते थे.

सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सेना के साथ उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ा था. जबलपुर की 52वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सूबेदार बलदेव तिवारी ने अद्भुत एवं अद्वितीय पराक्रम दिखाया था. सूबेदार बलदेव तिवारी ने न केवल राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान का प्रतिशोध लिया, बल्कि ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया था.

सूबेदार बलदेव तिवारी का जन्म 6 अगस्त, 1819 को हुआ था. 1840 में बलदेव तिवारी ब्रिटिश सेना में सिपाही के रूप में भर्ती हुए थे. शारीरिक कद काठी मजबूत थी और उनका निशाना अचूक था. ब्रिटिश सरकार के लिए कई युद्धों में भाग लेकर अपनी वीरता का लोहा मनवाया था. इसलिए सन् 1854 में उन्हें 52वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में सूबेदार का पद प्राप्त हुआ था. सन् 1856 से भारत में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम की तैयारियां जोरों पर थीं और जबलपुर उन दिनों राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नेतृत्व में मध्यभारत का केंद्र बिंदु था.

बात, सन् 1857 की है. जब जबलपुर में स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी. गढ़ा पुरवा में मंडला, सिवनी, नरसिंहपुर, सागर, दमोह सहित मध्यभारत के लगभग सभी जमींदार, मालगुजार के साथ 52 गढ़ों से सेनानी भी मिलने आने लगे थे.

सूबेदार बलदेव तिवारी और उनकी पलटन के साथ जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर लेफ्टिनेंट क्लार्क सदैव दुर्व्यवहार व अपमान करता था, जिससे सूबेदार बलदेव तिवारी और पलटन विक्षुब्ध रहती थी. इसलिए सूबेदार बलदेव तिवारी ने सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ने का मन बना लिया था. जिसके बाद जबलपुर कैंटोनमेंट क्षेत्र से 52वीं नेटिव इन्फेंट्री के सूबेदार बलदेव तिवारी के साथ कई सैनिक राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह से मिलने आते थे. राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध शक्तिशाली संगठन तैयार कर लिया था. सभी ने सर्वसम्मति से सूबेदार बलदेव तिवारी को संयुक्त सेना का प्रमुख चुन लिया. राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के साथ सूबेदार बलदेव तिवारी का झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे तथा कुंवर साहब से भी संपर्क था.

18 सितंबर, 1857 को राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान के बाद मध्यप्रांत के रजवाड़े परिवार एवं जमीदार और मालगुजारों ने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया. जबलपुर से 52वीं नेटिव इन्फेंट्री के सूबेदार बलदेव तिवारी ने 690 से अधिक सैनिकों को लेकर गढ़ा पुरवा को मुक्त कराकर पाटन के लिए कूच किया. 19 सितंबर, 1857 को बलदेव तिवारी अपनी 52वीं नेटिव इन्फेंट्री के साथ पाटन पहुंच गए और सरकार को अपदस्थ कर स्वतंत्रता का झंडा लहराया व लेफ्टिनेंट मेकग्रिगर को बंदी बना लिया गया. सूबेदार बलदेव तिवारी ने कर्नल जमीसन से जबलपुर में छूटे अपने 10 साथियों को भेजने की मांग की. कर्नल जमीसन ने सभी सैनिकों को इनाम और वेतन बढ़ाने का लालच दिया. साथ ही सूबेदार बलदेव तिवारी को आठ हजार रुपये देने का लालच दिया ताकि मेकग्रिगर को सकुशल वापस लाया जा सके, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ.

सूबेदार बलदेव तिवारी मेकग्रिगर को लेकर कटंगी पहुंचे और कटंगी को भी जीत लिया. यहां भी स्वतंत्रता का झंडा फहराया. कटंगी में लेफ्टिनेंट मेकग्रिगर ने पलटन में फूट डालने की कोशिश की. इसलिए सूबेदार बलदेव तिवारी ने उसका वध कर दिया. दो माह तक सूबेदार बलदेव तिवारी के नेतृत्व में पाटन और कटंगी में स्वायत्त सत्ता स्थापित रही. परंतु नवंबर में वॉटसन और जेनकिंस के नेतृत्व में भारी फौज कटंगी आ पहुंची. कई दिनों तक घमासान युद्ध के बाद 14 नवंबर, 1857 को सूबेदार बलदेव तिवारी और जेनकिंस के बीच आमने-सामने की लड़ाई हुई. जिसमें सूबेदार बलदेव तिवारी ने जेनकिंस का वध कर दिया. दोनों अंग्रेज अधिकारियों का वध कर सूबेदार बलदेव तिवारी ने राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान का प्रतिशोध भी ले लिया. युद्ध में सूबेदार बलदेव तिवारी को चार गोलियां लगी थीं और जंगल में चिकित्सकीय सुविधा असंभव थी, इसलिए उन्होंने अपनी बंदूक से प्राणोत्सर्ग किया.

सूबेदार बलदेव तिवारी सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दुर्दम्य सेनानायक थे, जिन्होंने जबलपुर कमिश्नरी में अंग्रेजों को हर मोर्चे पर मात दी थी. अंग्रेज अधिकारी उनका नाम सुनते ही भयाक्रांत हो जाते थे. ऐसे महान् योद्धा को इतिहास के पन्नों में समुचित जगह नहीं मिल पाई. जिस तरह महारथी मंगल पांडे के शौर्य को याद किया जाता है, उसी तरह महारथी बलदेव तिवारी का भी स्मरण करना चाहिए.

(महारथी बलदेव तिवारी की शौर्य गाथा के लिए प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों का उपयोग किया गया है. जिसमें जबलपुर जिला गजेटियर, जबलपुर – ज्योति (डॉ. हीरालाल : एक संकलन), जबलपुर अतीत दर्शन, म. प्र. में स्वाधीनता आंदोलन का इतिहास (प्रधान संपादक – पं. द्वारका प्रसाद मिश्र) आदि प्रमुख हैं.)

डॉ. आनंद सिंह राणा

श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत

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