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कला और साहित्य ही प्रत्येक संस्कृति की पहचान – नीतीश भारद्वाज

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पाथेय भवन में कलासाधकों के साथ प्रत्यक्ष कला संवाद

जयपुर. मालवीय नगर स्थित पाथेय भवन के महर्षि नारद सभागार में संस्कार भारती की ओर से आयोजित कला संवाद में संस्कार भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व मुख्य वक्ता नीतीश भारद्वाज ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हम गणतंत्र में हैं. यह हमें बोलने की आजादी देता है. यह गणतंत्र व्यवस्था भगवान श्री कृष्ण ने दी है. गणतंत्र व्यवस्था ही हमें अपने मन में चलने वाले विचारों को व्यक्त करने का अधिकार देती है.

नीतीश भारद्वाज ने बीआऱ चोपड़ा निर्मित टीवी सीरियल महाभारत में भगवान श्री कृष्ण की भूमिका निभाई थी. नीतीश भारद्वाज दो बार लोकसभा के सदस्य के रूप में भी चुने गए थे.

कलासाधकों के साथ प्रत्यक्ष संवाद में भारद्वाज ने कहा कि हम कलाकार सृजन करने की शक्ति लेकर पैदा होते हैं. कला और साहित्य हर संस्कृति का ऐसा रंग होता है जो उसको पहचान देता है. हमने एक पुरानी संस्कृति में जन्म लिया, जो आज भी जीवित है. भगवान राम ने मर्यादाओं की स्थापना की. वहीं श्री कृष्ण ने कहा, मैं ही मर्यादाओं का निर्माण करूंगा.

उन्होंने कहा कि हमारा वसुधैव कुटुंब का जो ध्येय है वो पूरे विश्व के लिए है. कला साधकों ने सवाल भी पूछे, जिनका उन्होंने जबाव भी दिया.

राजनीतिक व्यवस्था और उसमें सुधार पर एक सवाल के जबाव में भारद्वाज ने कहा कि आज भी राजनीति जातिगत समीकरणों में अटकी हुई है. भगवान श्री कृष्ण ने कहा है – मैं हर युग में आऊंगा. श्री कृष्ण हमें गणतंत्र व्यवस्था और वोट का अधिकार देकर गए हैं. लेकिन कृष्ण का आना जरूरी है क्या? इसका उपाय भगवद्गीता के सहारे भी किया जा सकता है. जब तक हम एकत्र नहीं होंगे, तब तक राजनेताओं को दोष देने से कुछ नहीं होगा. जातिगत व्यवस्था पर कहा कि शूद्र वह है जो सबकी सेवा करे. शूद्र शब्द कभी किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं है.

इस दौरान बॉलीवुड इंडस्ट्री पर भी तंज कसा. उन्होंने कहा, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री आज विवश हो गई है, अच्छी स्क्रिप्ट को लिखने व दिखाने के लिए. आज श्रोता और जनता ही तय करती है कि उसे क्या देखना है, कैसे देखना है? श्रोताओं को खुद की मर्जी से कुछ कंटेंट नहीं दिखाया जा सकता है.

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा कि जिसकी आवश्यकता नहीं हो वो बच्चों को नहीं दें, जैसे मोबाइल. आज बच्चे मोबाइल में अंतर्मुखी हो रहे हैं और सोशल कॉन्टेक्ट से दूर. बच्चों को रेडिमेट चीजें दिखाकर कमजोर किया जा रहा है.

तलवार बाजी कला हो सकती है, लेकिन गला काटना नहीं

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि गोपाल शर्मा ने कहा कि ज्ञान, मन और कर्म मिलकर कला बनाती हैं. क्या संगीत, नाटक, नृत्य ही कला है? बाल काटना, मालिश करना भी कला है. हर वर्ग का व्यक्ति कलाकार है. तलवारबाजी कला हो सकती है, लेकिन गला काटना कला नहीं हो सकती. कला को गलत संदर्भ में भी प्रयोग किया जा रहा है. आज नेता या व्यक्ति पर आरोप लगाने के लिए कह देते हैं कि यह कलाकारी कर रहा है. यह सही नहीं है. भारतीयों में लाखों साल पहले भी अलग-अलग कला थी. हरियाणा की एक गुफा में हजारों साल पुराने चित्र मिले हैं. इससे पता चलता है कि विश्व में कहीं हो या नहीं, लेकिन भारत में हजारों साल पहले भी चित्रकला मौजूद थी.

कार्यक्रम की अध्यक्षता मधु भट्ट तैलंग ने की. संयोजक बनवारीलाल चेजारा थे. आभार आत्माराम सिंहल ने किया.

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