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आशा ने बुलंद हौसलों से बनाई राह, मेडल जीतने की खबर मां को देने में लग गए दो दिन

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रांची. बुलंद हौसलों के साथ मार्ग अपने आप बन ही जाते हैं. ऐसा ही कुछ झारखंड की आशाकिरण ने कर दिखाया है. आशा ने 29 दिन में दो बड़ी चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीते. कुवैत सिटी में यूथ एशियन चैम्पियनशिप में 800 मी. रेस में आशा ने गोल्ड जीता. इससे पूर्व सितंबर में आशा ने भोपाल में नेशनल यूथ एथलेटिक्स में गोल्ड जीता था. आशा को सफळता के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. आशा झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्र गुमला की रहने वाली हैं. उनके घर में न तो बिजली की सुविधा है और न ही पीने के पानी की.

आशा को चैम्पियनशिप में मेडल जीतने की जानकारी मां को देने में दो दिन लग गए थे. आशा ने बताया, ‘जब बिजली ही नहीं है तो फोन कैसे होगा?’ रांची से करीब 100 किमी दूर नवैध के जनजाति गांव की रहने वाली आशा ने घर के बिजली कनेक्शन के लिए कई बार स्थानीय अधिकारियों से गुहार लगाईं, लेकिन कनेक्शन नहीं मिला.

उन्होंने कहा, ‘मां को मेडल के बारे में मेरे पड़ोसी से खबर मिली थी और उन्होंने अपने फोन से मां से बात कराई थी.’ मां बिजली कनेक्शन के लिए सालों से स्थानीय अधिकारियों के पीछे भाग रही हैं, लेकिन अब हार कर उम्मीद छोड़ चुकी हैं. 2019 में पिताजी के निधन के बाद से मां कोशिश कर रही हैं, लेकिन अधिकारी हमें अलग-अलग बहाने देते रहते हैं. पहले उन्होंने कहा था कि हमारे पास राशन कार्ड नहीं है और जब हमने आवेदन किया तो हमारे फॉर्म को खारिज कर दिया.

पीने के पानी के लिए भी इतनी ही लड़ाई लड़नी पड़ती है. जूनियर में तीन नेशनल गोल्ड जीत चुकीं आशा को घर जाने का वक्त मुश्किल से मिलता है. ‘जिस बस से हम घर जाते हैं, वह घर से लगभग तीन किमी की दूरी पर रुकती है. मैं गुमला में साप्ताहिक बाजार के दौरान घर जाने की कोशिश करती हूं, ताकि मैं ट्रक में चढ़कर घर पहुंच जाऊं.

शहर से घर तक जाना जोखिम भरा है, क्योंकि रास्ते में घना जंगल पड़ता है. उस जंगल में भालू और हाथी हैं.

आशा के कोच आशु भाटिया ने कहा, ‘वह बहुत प्रतिभाशाली लड़की है. मां ने उसे और उसके तीन भाई-बहनों को कठिन परिस्थितियों में पाला-पोसा है. वह खेल को लेकर काफी समर्पित हैं और कभी भी ट्रेनिंग नहीं छोड़ती है.’

इनपुट साभार – दैनिक भास्कर

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