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दरिंदगी का खुलकर विरोध तो कीजिए…!

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प्रशांत पोळ

पिछले कुछ दिनों से एक वीडियो क्लिप बहुत वायरल हो रही है. एक युवा सरदार जी, दोनों हाथों में एक तख्ती उठाकर लोगों को दिखा रहे हैं, तख्ती पर लिखा है – मेरा भारत, मेरी जान….Say NO to Khalistan…!

स्थान, शायद दिल्ली के सीपी (कॅनाट प्लेस) का है. लोग इस तख्ती को देखकर, पढ़कर इस युवा सिक्ख बंधु से हाथ मिला रहे हैं, प्रशंसा कर रहे हैं. इन प्रशंसा करने वालों में अनेक सिक्ख बंधु भी हैं.

मुझे यह दृश्य अत्यंत आशादायक लगा, सकारात्मक लगा और प्रतीकात्मक भी. खालिस्तान यह विदेशों मे बैठे, विदेशी फंड से पले, कुछ सिक्खों की कल्पना है. इसका भारत के सिक्खों से कोई संबंध नही है. भारत के सिक्ख देशभक्त हैं. सिक्खों ने अपना बलिदान मात्र पंजाब के लिये कभी नहीं दिया है. वे देश के लिये जिये हैं और देश के लिये ही हुतात्मा हुए हैं.

यह वीडियो क्लिप मात्र सिक्खों के देश के प्रति समर्पण को ही नहीं दिखाती है. यह क्लिप, यह प्रदर्शित कर रही है कि भारत के सिक्ख, खालिस्तान का विरोध करते हैं और इसके लिये वे मुखर होकर सामने आ रहे हैं.

इस घटना के ठीक विपरीत, एक वीडियो कल से वायरल हुआ है. वीडियो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का है. ये विद्यार्थी जुलूस बनाकर, पॅलेस्टाईन (फिलिस्तीन) और हमास के समर्थन में नारे लगाते हुए जा रहे हैं. यह दृश्य विचलित करने वाला है. इसलिए कि ७ अक्टूबर से, हम सब, हमास द्वारा इस्रायल पर आक्रमण और वहां के नागरिकों के साथ दरिंदगी, वीभत्सता और क्रूरता के अनेक वीडियो देख रहे हैं. यह सारे वीडियो भयानक हैं. आज इक्कीसवीं शताब्दी में भी, इस्रायल और पॅलेस्टाईन जैसे प्रगत स्थानों पर, इस्रायल के स्त्री और पुरुष नागरिकों के साथ जिस प्रकार से पैशाचिक, क्रूरतापूर्ण दुर्व्यवहार किया गया है, उससे पशुत्व भी लज्जित हो उठा है. सारा विश्व इन घटनाओं का, इन बर्बरतापूर्ण अत्याचारों का विरोध कर रहा है, निषेध कर रहा है, भर्त्सना कर रहा है.

किंतु अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ये मुस्लिम छात्र, हमास की उस हैवानियत के समर्थन में रास्ते पर उतर आए हैं.

क्यों?

हमास, कट्टरपंथी, उग्रवादी आतंकी ‘मुस्लिम’ संगठन है इसलिये..?

विचलित करने वाली बात यही है. भारत का मुसलमान, हमास की इस दरिंदगी के विरोध में उतरना तो बहुत दूर, मानवता को लज्जित करने वाले उस बर्बरतापूर्ण आक्रमण का मानो मुखर होकर समर्थन कर रहा है. यह भयानक है. भारत के बीस करोड़ मुसलमानों की नीयत पर प्रश्नचिन्ह उठ रहा है.

केवल इस बार नहीं, हमेशा ही यह होता आया है. कुछ वर्ष पहले, मुंबई में ‘रजा अकादमी’ के गुंडों ने वीर जवान की मूर्ति तोड़ी, पुलिस की गाड़ियां तोड़ीं, भरे बाजार महिला पुलिस का शर्ट फाड़ा… किसी मुस्लिम ने विरोध किया हो, ऐसा सुनने / देखने में नहीं आया. फ्रांस में मुस्लिमों ने दंगे किये, बाजार लूटे, दुकानें तोड़ीं.. विरोध के स्वर नहीं निकले. उदयपुर में कन्हैयालाल की निशृंस हत्या हुई, ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगे.. किसी मुस्लिम ने विरोध किया, ऐसा देखने में नही आया. संभाजीनगर में औरंगजेब के महिमामंडन के नारे लगे.. किसी मुस्लिम ने विरोध नहीं किया.

ऐसा क्यों..? यहां के मुस्लिम जब तक औरंगजेब से अपना नाता जोड़ते रहेंगे, तब तक समस्या बनी रहेगी. भारत के नब्बे फीसदी मुसलमान, अकबर और औरंगजेब की औलादें नहीं हैं. वे इसी मिट्टी के हैं. इनके पुरखे, तलवार की डर से या धन के लोभ से अपना धरम बदलकर मुसलमान हो गए थे. फिर आज के, यहां के मुस्लिम, सोलहवीं/सत्रहवीं सदी के, आक्रांता मुसलमानों से अपने आप को क्यों जोड़ते हैं?

भारत के मुस्लिम समुदाय को अपनी स्थिती स्पष्ट करनी चाहिए. मानवता को कलंकित करने वाली घटनाओं का, यदि वे केवल ‘मुस्लिम’ होने के नाते समर्थन करते रहेंगे, तो बाकी समाज के साथ उनका ‘सम्मिलन’ कठिन है..!

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