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अटल रोहतांग सुरंग – देश को जल्द मिलेगा गर्व की अनुभूति का अवसर

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शिमला (विसंकें). अटल रोहतांग सुरंग (Atal Rohtang Tunnel) के रूप में देश को शीघ्र ही गर्व का एक अवसर मिलने जा रहा है. बहुप्रतीक्षित अटल सुरंग को प्रधानमंत्री अगले माह राष्ट्र को समर्पित कर सकते हैं. सर्वाधिक ऊंचाई पर और विश्व की आधुनिकतम यातायात सुरंगों में शामिल होने जा रही इस सुरंग की विशेषताओं के बारे में चर्चा करेंगे. हिमालय की पीर-पंजाल रेंज में 11 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर निर्मित यह विश्व की सबसे लंबी और अत्याधुनिक ट्रैफिक टनल होगी.

लेह-मनाली को जोड़ने वाली इस सुरंग का नाम पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृति में बीते वर्ष अटल रोहतांग सुरंग (अटल टनल) रखा गया था. सुरंग के ठीक ऊपर स्थित सेरी नदी के पानी के रिसाव के कारण 4000 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना के निर्माण में लगभग पांच वर्ष का विलंब हुआ. किंतु, अब यह देश के मुकुट की शोभा बनने जा रहा है.

8.8 किलोमीटर लंबी इस सुरंग का निर्माण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के जिम्मे था. अब सभी मौसमों में लाहुल और स्पीति घाटी के सुदूर क्षेत्रों में संपर्क बना रहेगा. सुरंग बाहर से जितनी मजबूत है, अंदर से उतनी ही सुरक्षित और सुविधाजनक भी है. अंदर निश्चित दूरी पर सीसीटीवी कैमरे, लाइट सेविंग सेंसर सिस्टम, प्रदूषण प्रबंधन के लिए सेंसर सिस्टम, ऑक्सीजन लेवल को स्थिर रखने के लिए दोनों छोर पर हाई-कैपेसिटी विंड टरबाइन सिस्टम स्थापित किए गए हैं. ऐसे ही अग्निशमन यंत्र और कम्युनिकेटर लगाए गए हैं. किसी दुर्घटना के घटित होने की स्थिति में इनसे सुरंग में वाहनों का प्रवेश बंद कर आग पर भी तुरंत काबू पाया जा सकेगा. आग या किसी अन्य कारण से सुरंग में बाधा उपस्थित हो जाने की स्थिति में मुख्य फ्लोर (सड़क) के नीचे एक वैकल्पिक सुरंग भी बनाई गई है, जो मुख्य सुरंग की तरह ही 8.8 किलोमीटर लंबी है. बचाव सुरंग तक पहुंचने के लिए मुख्य सुरंग में कई रास्ते बनाए गए हैं.

सुरंग का लाइट सिस्टम इस तरह से है कि वाहन के एक निश्चित दूरी पर आते ही लाइट स्वत: जलती चलेंगी और गुजरते ही बंद हो जाएंगी. सुरंग से बाहर निकलते ही नॉर्थ पोर्टल में बौद्ध शैली के स्वागत द्वार के बाद चंद्रा नदी पर बने पुल को पार करते ही सड़क पुराने मनाली-लेह मार्ग से जुड़ जाएगी. एक घंटे के सफर के बाद यात्री केलंग, जबकि करीब नौ से 10 घंटे में लेह पहुंच जाएंगे. सुरंग बनने से लाहुल व लद्दाख जाने के लिए रोहतांग दर्रा (पुराने मार्ग) जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी. इससे मनाली और लेह के बीच करीब 46 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी.

लाहुल घाटी बर्फबारी के कारण छह महीने शेष दुनिया से कटी रहती है. सुरंग बनने से घाटी का संपर्क देश से नहीं टूटेगा. अब वहां बिजली भी गुल नहीं होगी क्योंकि बिजली की लाइन भी सुरंग के अंदर से ही जा रही है. सुरंग र्सिदयों में भी खुली रहेगी, लेकिन इसे मनाली और केलंग से जोड़ने वाली सड़क को हिमस्खलन (एवलांच) से बचाना बाकी है. इसके लिए स्नो एंड एवलांच स्टडी एस्टेब्लिशमेंट द्वारा डिजाइन किए एवलांच प्रोटेक्शन स्ट्रक्चर तैयार किए जा रहे हैं. सुरंगनुमा स्ट्रक्चर के भीतर से वाहन हर मौसम में सुरक्षित गुजर पाएंगे, जबकि हिमखंड, बाढ़ और पत्थर इसके ऊपर से गुजर जाएंगे.

रोहतांग दर्रे के नीचे रणनीतिक महत्व की इस सुरंग को बनाए जाने का निर्णय 03 जून 2000 को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने लिया था. उन्होंने 2003 में इसका शिलान्यास किया था. हरियाली से शीत मरुस्थल तक इस सुरंग के दोनों प्रवेशद्वार देश के सबसे खूबसूरत इलाके धुंदी और लाहुल में खुलते हैं. मनाली के हरे- भरे इलाके से प्रवेश के बाद यात्री शीत मरुस्थल लाहुल में बिलकुल अलग नजारों वाले पहाड़ों के मध्य बाहर निकलेंगे.

अटल रोहतांग टनल परियोजना के बीआरओ के चीफ इंजीनियर केपी पुरसोथमन ने बताया कि अटल रोहतांग सुरंग (अटल टनल) का निर्माण पूर्णता की ओर है. अत्याधुनिक तकनीक से युक्त यह सुरंग हर तरह से बेजोड़ है.

 

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