रमेश शर्मा
अपने स्वत्व और स्वाभिमान रक्षा के लिये क्षत्राणियों के नेतृत्व में स्वयं को अग्नि में समर्पित कर देने का इतिहास केवल भारत में मिलता है. इनमें सबसे अधिक शौर्य और मार्मिक प्रसंग है – चित्तौड़ की रानी पद्मावती के जौहर का. जिसका उल्लेख प्रत्येक इतिहासकार ने किया है. इस इतिहास प्रसिद्ध जौहर पर सीरियल भी बने और फिल्में भी बनीं. राजस्थान की लोक गाथाओं में सर्वाधिक उल्लेख इसी जौहर का है.
जौहर का विवरण भारत की अधिकांश रियासतों के इतिहास में मिलता है. राजस्थान में कोई भी ऐसी रियासत नहीं जहाँ जौहर न हुआ हो. चित्तौड़ में सबसे पहला और सबसे बड़ा जौहर रानी पद्मावती का ही माना जाता है.
रानी पद्मावती सिंहल द्वीप की राजकुमारी थीं. उनका मूल नाम पद्मिनी था जो विवाह के बाद पद्मावती हुआ. सिंहलद्वीप अब श्रीलंका है. उनके पिता राजा चन्द्रसेन सिंहलद्वीप के शासक थे. उन्होंने अपनी बेटी पद्मिनी के विवाह के लिये स्वयंवर का आयोजन किया था. जिसमें भाग लेने चित्तौड़ के राजा रतन सिंह भी सिंहलद्वीप पहुँचे थे. वहाँ पद्मिनी से विवाह के इच्छुक राजाओं की बल, बुद्धि और कौशल की परीक्षा के लिये वन में आखेट की एक स्पर्धा आयोजित की गई थी. जो राजा रतन सिंह ने जीती और राजकुमारी पद्मिनी से उनका विवाह हुआ. राजकुमारी पद्मिनी महारानी पद्मावती बनकर चितौड़ आ गईं.
उनके रूप गुण और राजा रतनसिंह के कौशल की चर्चा दूर-दूर तक हुई. यह दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी तक भी पहुँची. दिल्ली सल्तनत के दो हमले चित्तौड़ पर हो चुके थे. पर सफलता नहीं मिली थी. बल्कि, गुजरात जाती दिल्ली सल्तनत की फौज से अपने क्षेत्र से होकर निकलने के लिये कर भी वसूला था. किन्तु गागरौन की सहायता के लिये चित्तौड़ की सेना गई थी, जिससे शक्ति में कुछ गिरावट आई और दिल्ली ने तोपखाने की वृद्धि कर अपनी शक्ति बढ़ा ली थी. स्थिति का आकलन करके दिल्ली की फौजों ने चित्तौड़ पर हमला बोला. लगभग एक माह तक घेरा पड़ा रहा. किन्तु सफलता नहीं मिली. अंततः अलाउद्दीन खिलजी ने एक कुटिल चाल चली. कुछ भेंट के साथ समझौता प्रस्ताव भेजा और आग्रह किया कि रानी पद्मावती का चेहरा एक बार देखकर लौट जाएगा. राजा ने प्रस्ताव मान लिया. सुल्तान अपने कुछ विश्वस्त सहयोगियों के साथ भोजन पर आया. उसने आइने में रानी को देखा और चलने लगा. राजा शिष्टाचार वश किले के द्वार तक छोड़ने आए. सुल्तान अलाउद्दीन बहुत कुटिल था, वह किले में भीतर जाते समय द्वार पर कुछ सुरक्षा सैनिक छोड़ गया था. उसके इरादों की किसी को भनक तक न थी. जैसे ही राजा द्वार पर आए उन पर हमला हुआ और बंदी बना लिये गए. अलाउद्दीन ने रानी को समर्पण करने का प्रस्ताव भेजा. रानी ने सभासदों से परामर्श किया. गोरा और बादल ने संघर्ष का बीड़ा उठाया. और राजा को मुक्त कराने की योजना बनी.
योजनानुसार सुल्तान को समाचार भेजा कि रानी अपनी सखी सहेलियों और सेविकाओं के साथ समर्पण करने आना चाहती हैं. रानी पद्मावती को प्राप्त करने को आतुर अलाउद्दीन ने सहमति दे दी. रानी की ओर से यह आग्रह भी किया गया कि वह अंतिम बार राजा से मिलना चाहतीं हैं, अत एव राजा के बंदी शिविर से होकर सुल्तान के दरबार में हाजिर होंगी. यह सहमति भी मिल गई. चित्तौड़ में दो सौ डोले तैयार हुए. कहीं कहीं डोलों की यह संख्या 800 भी लिखी है. कुछ में तो दिखावे के लिए महिलाएँ थीं. पर अधिकांश में लड़ाके नौजवान थे जो अपने राजा को कैद से छुड़ाने का संकल्प लेकर जा रहे थे. अंततः जैसे ही डोले शिविर के कैद खाने के समीप पहुँचे, सभी सैनिक से बाहर आए. और अचानक दुश्मन सैनिकों पर टूट पड़े. सैनिकों ने अपना बलिदान देकर राजा को मुक्त करवा लिया. राजा मुक्त होकर सुरक्षित किले में पहुँच गए. यह 22 अगस्त, 1303 का दिन था. राजा मुक्त होकर किले में आ तो गए. पर, किले में राशन और सैन्य शक्ति दोनों का संकट था. सेना के अधिकांश प्रमुख सरदार राजा को मुक्त कराने की छापामार लड़ाई में बलिदान हो गए थे. इससे बौखलाए अलाउद्दीन खिलजी का तोपखाना गरजने लगा. अंततः रानी द्वारा जौहर और राजा रतनसिंह द्वारा शाका करने का निर्णय हुआ. 25 अगस्त, 1303 से जौहर की तैयारी आरंभ हुई और रात को ज्वाला धधक उठी. किले के भीतर की सभी स्त्रियों ने अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर लिया. 26 अगस्त के सूर्योदय तक किले के भीतर सभी नारियाँ अग्नि में समा गईं, इनकी संख्या सोलह हजार बताई जाती है. 26 अगस्त को ही किले के द्वार खोल दिये गए. जितने सैनिक किले में थे, वे सब राजा रतनसिंह के नेतृत्व में केसरिया पगड़ी बाँधकर निकल पड़े. भीषण युद्ध हुआ. राजा रतनसिंह का बलिदान हो गया. राजा ने अपने स्वत्व और स्वाभिमान रक्षा के लिये अंतिम श्वास तक युद्ध किया, रानी पद्मावती ने स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया.
इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी किले में घुस सका. उसे चारों ओर जलती अग्नि और राख के ढेर ही मिले. अलाउद्दीन खिलजी के इस अभियान का वर्णन अमीर खुसरो की रचना ‘खजाईन-उल-फुतूह’ (तारीखे अलाई) में मिलता है. इस विवरण के अनुसार खिलजी की फौज ने एक ही दिन में लगभग 30,000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. अलाउद्दीन खिलजी ने अपने बेटे खिज्र खाँ को चित्तौड़ का शासक नियुक्त किया और चित्तौड़ नाम ‘खिज्राबाद’ कर दिया था.
रानी पद्मावती का जौहर स्थल आज भी चित्तौड़ में स्थित है. वहाँ लोग श्रद्धा से शीश झुकाते हैं तथा रानी को सती देवी मानकर अपनी इच्छा पूर्ति की प्रार्थना करते हैं.