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राष्ट्रभक्ति का जयघोष – पूर्वोत्तर में भारतीय संस्कृति का जागरण

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सुधीर जोगळेकर

‘विजयादशमी’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना दिवस है. ९५ वर्ष पहले इसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना नागपुर में हुई थी और ‘हिन्दू संगठन’ यह एकमात्र लक्ष्य सामने रखकर राष्ट्रभक्ति का जयघोष शुरू हुआ!. इस दिशा में 50 वर्ष पूर्ण होने पर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि संघ ने प्राप्त की. यह उपलब्धि थी स्वामी विवेकनंद जी के भव्य स्रक की स्थापना, जिन्होंने हिंदुत्व का परचम विश्व के विद्वत मंच पर फहराया. शिकागो में आयोजित सर्वधर्मपरिषद में हिस्सा लेने हेतु, अमेरिका रवाना होने से पूर्व, स्वामी जी ने कन्याकुमारी में महासागर के त्रिवेणी संगम में स्थित शिलाखंड पर तप-साधना की थी. ‘उसी शिलाखंड पर स्वामी जी का एक भव्य स्मारक स्थापित हो’ यह विचार तात्कालीन सरसंघचालक पूजनीय गोळवलकर गुरूजी ने रखा था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह एकनाथजी रानडे, अपने ‘सरकार्यवाह’ पद से हाल ही में कार्यमुक्त हुए थे. वह जब पूर्व भारत में प्रचारक के रूप में कार्यरत थे, तब उनका संबंध रामकृष्ण मिशन से संबंधित लोगों से हुआ था; और उनमें से कुछ लोगों से तो उनके संबंध घनिष्ठ थे और गुरूजी को यह भी ज्ञात था कि स्वामी जी के साहित्य का अध्ययन कर एकनाथ जी ने “हिन्दू तेजा जाग रे” पुस्तक का भी लेखन संपन्न किया था. एकनाथ जी ने इस कार्य का दायित्व स्वीकार किया और राष्ट्रभक्ति के जयघोष का दूसरा अध्याय शुरू हुआ.

सन् १९६२ का भारत चीन युद्ध समाप्त ही हुआ था. भारत को युद्ध में अपमानजनक हार स्वीकार करनी पड़ी थी. “इंडियन डॉग्ज गो बॅक” के नारों से पूर्वोत्तर भारत के हर शहर की दिवारें रंगने लगी थीं. इसके साथ धर्मांतरण संबंधित गतिविधियां भी जुड़ी थीं. जिस पूर्वोत्तर भारत में युद्ध हुआ था, उस प्रदेश में धर्मांतरण कर उस भाग को भारत से अलग थलग करने का भयंकर षड्यंत्र ईसाई मिशनरियों ने रचा था. पूर्वोत्तर भारत वास्तव में भारत देश का अभिन्न अंग है, परंतु वहां जाने के लिए पासपोर्ट की आवश्यकता रहती थी.

उसी षड्यंत्र का एक हिस्सा दक्षिण भारत के सुदूर कन्याकुमारी में एक शिलाखंड पर खेला जा रहा था! जिस शिलाखंड पर एक पैर पर खड़े रहकर माता पार्वती ने भगवान शिव की आराधना की थी, जिस शिलाखंड पर उसके एक पग के पदचिन्ह दिखायी देते हैं, जिस शिलाखंड पर स्वामी जी ने तीन दिन, तीन रात्रि अखंड साधना की थी, जिनके कई प्रमाण उपलब्ध थे, उस शिलाखंड पर ईसाई मिशनरियों ने अपना दावा जताकर वहां क्रॉस गाड़ दिया था.

उन अपमानजनक प्रयासों का ठोस उत्तर देने हेतु एक आह्वान पर सारा भारत अपनी समूची शक्ति इकट्ठा कर एक हुआ और कुल ३२३ सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित समर्थन पत्र केंद्र सरकार को प्रस्तुत करते हुए, उस शिलाखंड पर स्वामीजी का भव्य स्मारक बनाने की अनुमति एकनाथ जी ने केंद्र सरकार से प्राप्त की थी.

‘यह स्मारक सभी भारतीयों के वित्तीय सहयोग से बनाया गया’, इस हेतु एकनाथ जी ने प्रत्येक भारतीय से एक, दो या पांच रूपये अंशदान प्राप्त करते हुए कुल रू. ८० लाख की लोकनिधि जमा की. इसके अलावा, देश की सभी राज्य सरकारों द्वारा कम से कम एक लाख रुपये का दान दिया गया था. इन दोनों के योगदान के फलस्वरूप यह स्मारक पूर्णत्व को प्राप्त हुआ था.

राष्ट्रभक्ति की यह अभिव्यक्ति न केवल अपने आप में अनूठी थी, बल्कि इसके द्वारा जो राष्ट्रीय पहचान प्रकट की गई थी, उसने हिंदुत्व को क्षति पहुंचाने का प्रयास करने वाली अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के मुँह पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया था! १९६३ में, स्वामी जी के जन्मशताब्दी के समय चल रहे प्रयासों का समापन १९७० में हुआ और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर वराहगिरी वेंकटगिरी के करकमलों द्वारा शिला स्मारक का लोकार्पण हुआ. उस लोकार्पण को २०२० में ५० वर्ष पूरे हो रहे हैं!.

विवेकानंद शिला स्मारक तो बन गया, किंतु स्वामी जी का स्वप्न साकार होना अभी शेष था. १८९२ में सारे देश की परिक्रमा करते समय किये तप:साधना के उपरांत, स्वामी जी को देश-काल-स्थिति का जो ज्ञान हुआ, “मनुष्य सेवा ही ईश्वर सेवा है” इसकी जो अनुभूति हुई, “मनुष्य निर्माण ही राष्ट्र निर्माण है” इस जीवन ध्येय की प्राप्ति हुई, उसको प्रत्यक्ष रूप में ढालने के लिये स्वामी जी के विचार से और “एक जीवन एक ध्येय” के लक्ष्य से प्रभावित होकर, देश के प्रति अपने जीवन को समर्पित करने वाले युवाओं का संगठन खड़ा कर मानवसेवा का प्रयास करने की आवश्यकता थी. ‘विवेकानंद केंद्र’ की स्थापना इसी उद्देश्य सी हुई थी. भगवे रंग के वस्त्र परिधान न करने वाले संन्यासी निर्माण कर उनके द्वारा “ईश” सेवा की एक बहुआयामी परियोजना शुरू करने की योजना तैयार हुई थी. यह घटना सन् १९७२ की थी. इस घटना को भी आने वाले दो वर्षों में ५० वर्ष पूरे हो रहे हैं! यह ऐतिहासिक सुवर्ण महोत्सवों का संगम, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शतकपूर्ति के दौरान ही संपन्न हो रहा है! सन् १९७४ में जीवनव्रतियों की पहली टुकड़ी पूर्वोत्तर भारत में गयी और बीते ४५ – ४६ वर्षों में, उन्होंने सेवाकार्य का एक महावृक्ष खड़ा किया है.

उसमें प्रमुख हिस्सा, ४० से भी अधिक वर्षों से कार्यरत विवेकानंद केंद्र विद्यालयों का है. इनमें से २५ विद्यालय अरूणाचल प्रदेश में और १५ विद्यालय असम में हैं. इसके अलावा अरूण ज्योति परियोजना के तहत लगभग १०० शिशु केंद्र कार्यरत हैं. कन्याओं के लिये दो कस्तुरबा गांधी आवासीय विद्यालय हैं. चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों के बच्चों के लिए लगभग ५२ आनंदालय हैं. मोबाईल वीडियो-लाइब्रेरी वैन, महाविद्यालयीन छात्रों के लिये अध्ययन केंद्र (स्टडी सर्कल्स) हैं, महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र हैं, कई दाई प्रशिक्षण केंद्र कार्यरत हैं, नुमालीगड़ में ३५ बेड्स का अस्पताल है. इसमें आसपास के गांवों में मोबाइल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की सुविधा है. ‘विवेकानंद केंद्र इन्स्टीट्यूट ऑफ कल्चर’ यह परियोजना विगत २५ वर्षों से अधिक समय से विभिन्न जातियों और जनजातियों की क्षेत्रीय संस्कृति, रीति-रिवाजों तथा परंपराओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए कार्यरत है.

विवेकानंद केंद्र के साथ ही, ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,’ ‘वनवासी कल्याण आश्रम’, सेवा भारती, विद्या भारती, ‘विश्व हिंदू परिषद’, के संयुक्त प्रयासों से पूर्वोत्तर भारत की संस्कृति के संरक्षण और पोषण के लिए प्रयास चल रहे हैं. किंतु लगभग ६० विवेकानंद केंद्र विद्यालयों (VKVs) द्वारा संचालित राष्ट्रीय शिक्षा महायज्ञ का सकारात्मक प्रतिबिंब समाज में उभरने लगा है. पाठशाला, संस्कार केंद्र, शिशु केंद्र, आंगनबाड़ी, वैद्यकीय चिकित्सा केंद्र, संस्कृति संरक्षण के लिए कई छोटी और बड़ी परियोजनाएं कार्यरत है.

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत अस्तित्व में आई केंद्र सरकारों में से किसी ने भी पूर्वोत्तर की तरफ गंभीरता से नहीं देखा. सरकारी खजाने में से निकला पैसा वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंचे बिना, बीच में ही कहीं गायब होता रहा और इन्हीं पैसों के बलबूते पर भारत विरोधी शक्तियो को बल मिलता रहा.

भारत सरकार द्वारा अपनाई “लुक ईस्ट” नीति आंशिक रूप से मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान थी, परंतु, उसे व्यावहारिक रूप देकर पूर्णरूप से लोकाभिमुख किया मोदी सरकार ने!. उन सभी आठ प्रांतों में क्षेत्रीय सरकारें मोदी समर्थक सरकारें हैं, अतएव, यह “लुक ईस्ट पॉलिसी”, पिछले कुछ वर्ष में  यथार्थ रूप से लोकाभिमुख हुई है.

विभिन्न कानूनों में संशोधन करके, सरकार ने न केवल विदेशी धन के प्रवाह के लिए सभी रास्ते बंद कर दिए, परंतु, राष्ट्र विरोधी ताकतों को भी जड़ से उखाड़ डाला!.  इस तरह राष्ट्रशक्ति का एक नया जागरण शुरू हुआ!. उसकी ओर देखने का यह एक अल्प प्रयास.

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