बांग्लादेश में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में हाईकोर्ट के वर्ष 2020 के निर्णय पर रोक लगा दी है, जिसमें “जोय बांग्ला” को राष्ट्रीय नारा घोषित किया गया था. बांग्लादेश में वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट के वकील बशीर अहमद ने याचिका दायर की थी कि “जोय बांग्ला” को राष्ट्रीय नारा घोषित किया जाए. याचिका की सुनवाई करने के बाद मार्च 2020 को हाईकोर्ट ने निर्णय दिया था कि “जोय बांग्ला” बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा रहेगा. साथ ही, सरकार इस नारे को सभी सरकारी कार्यक्रमों और अकादमिक संस्थानों की असेंबली में प्रयोग करवाना सुनिश्चित करेगी. अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने निर्णय पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाने का फैसला दिया.
डेली स्टार के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला इस आधार पर दिया है कि राष्ट्रीय नारा, सरकार की नीति निर्णय का मामला होता है और न्यायपालिका इसमें किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है.
इससे स्पष्ट होता है कि अंतरिम सरकार की नीति अब “बांग्ला” आधार पर नहीं है. बांग्लादेश का पाकिस्तान से अलग होना पूरी तरह से भाषाई अत्याचार पर आधारित था. शेख मुजीबुर्रहमान ने भी अपनी मुस्लिम पहचान को कायम रखते हुए बांग्ला भाषावासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी.
यह शेख मुजीबुर्रहमान की पहचान को मिटाने से कहीं बहुत बड़ा कदम है. उस आधार पर प्रहार किया गया है, जिसने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश की पहचान दी थी. शेख मुजीबुर्रहमान ने जब यह अनुभव किया था कि उर्दू बोलने वाला पश्चिमी पाकिस्तान अपने ही उस अंग की उपेक्षा कर रहा है, जो बांग्ला बोलता है, तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई. और भारत की सहायता से पश्चिमी पाकिस्तान से आजादी पाई थी.
बांग्ला की पहचान बंगाल या कहें बंग भूमि है. हाई कोर्ट के फैसले को मोहम्मद यूनुस की सरकार द्वारा चुनौती इस बात की साक्षी है कि 5 अगस्त को शेख हसीना को बाहर भगाना केवल सरकार का बदलाव नहीं था, बल्कि वह उस बंग भूमि की पहचान बदलने का षड्यन्त्र है जो बंग भूमि वहां पर रहने वाले उन लोगों को परेशान करती है जो बंगाल का और अपना इतिहास या तो अपनी नई मजहबी पहचान अपनाने के दिन से या फिर उस दिन से मानते हैं, जिस दिन ढाका में मुस्लिम लीग का गठन हुआ था.
बांग्लादेश में “जोय बांग्ला” के राष्ट्रीय नारे के खिलाफ याचिका कहीं न कहीं पश्चिमी पाकिस्तान से यही कहने की गुजारिश है कि अब पूर्वी पाकिस्तान की सरकार अपनी 1947 वाली पहचान चाहती है, न कि 1971 की, जो उसे बंग और फिर वंग और फिर महाभारत तक ले जाती है. यही नहीं, बांग्लादेश का सुप्रीम कोर्ट इससे पहले 1 दिसंबर को हाईकोर्ट के उस फैसले पर भी रोक लगा चुका है, जो 15 अगस्त को राष्ट्रीय शोक दिवस और सार्वजनिक छुट्टी का दिन बताता था.