हिजाब मामले में भी सोचने वाली बात है कि क्या बड़ों की अगुआई के बिना ये छोटी–छोटी बच्चियां इस तरह सड़क पर उतरकर हिजाब मामले को लेकर आंदोलन का रूप दे सकती हैं? ये बच्चियां, जिनकी आयु अभी पढ़ने–लिखने, भविष्य संवारने और अच्छा नागरिक बनने के अच्छे संस्कार सीखने की है, उन्हें हिजाब की आड़ में मजहबी कट्टरता और स्कूल के नियमों का विरोध करना सिखाया जा रहा है?
जयपुर में हिजाब के मामले ने बिना मतलब तूल पकड़ा. किसी को समझ नहीं आया कि जब स्कूल में एक तय ड्रेस कोड है, फिर हिजाब की जिद क्यों? चौंकाने वाली बात यह रही कि, इधर हिजाब के स्वर उठे ही थे और उधर बड़ी संख्या में मुस्लिम छात्राएं सड़क पर उतर आईं और ‘बाबा माफी मांगेगा’ के नारों के साथ विधायक बालमुकुंदाचार्य पर एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर अड़ गईं. घटनाक्रम देखकर लगा जैसे सब कुछ स्क्रिप्टेड था. ऐसा इसलिए भी लगा क्योंकि पूरे मामले में आंदोलन के कर्ताधर्ता के रूप में दो मुस्लिम विधायक अमीन कागजी और रफीक खान मुखर रूप से सामने आए. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ये जनप्रतिनिधि अपने ही समाज को गुमराह करने का काम कर रहे थे.
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि, जिस क्षेत्र की बच्चियों और लोगों को सड़कों पर उतारा गया, वह मुस्लिम बहुल रामगंज है, जो हमेशा से ही पुलिस और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है. यहां रहने वाला मुस्लिम समाज ना तो यातायात नियमों की पालना करता है और ना ही प्रशासन के आवश्यक दिशा निर्देशों को मानता है. सड़कों पर खुले रूप से मांस की दुकानें चलाना, राह चलती हिन्दू बहू–बेटियों से छेड़छाड़ करना आम बात है. कोरोना काल जैसे बुरे समय में भी इन लोगों की अराजकता और गुंडागर्दी डॉक्टरों और प्रशासन तक के लिए चुनौती बन गई थी. तब यहां मुसलमानों ने वैक्सीन लगाने वाले प्रतिनिधियों पर पत्थर बरसाए थे, उन पर थूका था, जिसकी देशभर में निंदा हुई थी.
हिजाब मामले में भी सोचने वाली बात है कि क्या बड़ों की अगुआई के बिना ये छोटी–छोटी बच्चियां इस तरह सड़क पर उतरकर हिजाब मामले को लेकर आंदोलन का रूप दे सकती हैं? ये बच्चियां, जिनकी आयु अभी पढ़ने–लिखने, भविष्य संवारने और अच्छा नागरिक बनने के अच्छे संस्कार सीखने की है, उन्हें हिजाब की आड़ में मजहबी कट्टरता और स्कूल के नियमों का विरोध करना सिखाया जा रहा है?
देश का संविधान समानता की बात करता है और शिक्षण संस्थान वो प्राथमिक इकाई है, जहां पर पढ़ने वाला बच्चा बिना किसी भेदभाव के समान रूप से शिक्षा लेता है. विद्यालयों में एक तय ड्रेस कोड होता है, जिसकी पालना करना सभी के लिए समान रूप से अनिवार्य होता है. अलग–अलग परिधान समानता को भंग करते हैं. सरकार को स्कूली नियमों की पालना करानी चाहिए ताकि भविष्य में हिजाब जैसे मामले मुद्दे बनकर यूं सड़कों पर न आ सकें.
हिजाब के साथ स्कूलों में नो एंट्री
जिस सरकारी स्कूल की ये मुस्लिम छात्राएं थीं, उसी स्कूल की हिन्दू छात्राओं का कहना था कि विद्यालय में अनुशासन आवश्यक है, यहां मजहबी कट्टरता का कोई स्थान नहीं होना चाहिए. शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने इस मामले में दो टूक कहा कि हिजाब पहनकर आने पर स्कूल में एंट्री नहीं मिलेगी. हम हिजाब विरोधी नहीं हैं. मुझे हिजाब से किसी तरह की आपत्ति नहीं है. हमारे देश में कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह की ड्रेस पहन सकता है, लेकिन स्कूलों में तय ड्रेस में ही छात्रों को प्रवेश दिया जाएगा. यदि कोई छात्र तय ड्रेस कोड में विद्यालय नहीं आता है तो उसके साथ–साथ शिक्षक के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी.
हिजाब को लेकर बात बढ़ी तो विश्व हिन्दू परिषद भी सामने आ गया और राजस्थान के स्कूलों में समान गणवेश का समर्थन किया. विश्व हिन्दू परिषद के क्षेत्र मंत्री सुरेश उपाध्याय ने कहा कि अनुशासन के लिए सभी शिक्षण संस्थानों में समान गणवेश अनिवार्य होना चाहिए. विद्यालयों में गणवेश का उद्देश्य है कि सभी छात्रों के मन में समता का भाव रहे. वेशभूषा के कारण सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक या अन्य किसी प्रकार का भेदभाव उत्पन्न न हो. स्कूल जाने वाली छोटी-छोटी छात्राएं इस प्रकार के आंदोलन को अंजाम देने में सक्षम नहीं हैं. देश के आपसी सौहार्द को बिगाड़ने के लिए अलगाववादी सोच रखने वाले कुछ लोग बच्चियों को मोहरा बनाकर सड़क पर प्रदर्शन करवा रहे हैं तथा प्रदेश में शांति भंग करने का षड्यंत्र कर रहे हैं. ऐसे लोगों पर राज्य सरकार तथा प्रशासन द्वारा कठोरतम कार्रवाई की जानी चाहिए.
कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि, “दुनिया के कई देशों में हिजाब पर प्रतिबंध है तो राजस्थान में भी हिजाब पर प्रतिबंध होना चाहिए”.
जब हिजाब पर बवाल मचा तो बालमुकुंद आचार्य ने भी उत्तर दिया, “मैंने विद्यालय की प्रिंसिपल से जानकारी ली थी, अपने यहां पर दो प्रकार की पोशाक का प्रावधान है क्या? तब प्रिंसिपल ने मुझे बताया कि ऐसा नहीं है. मैंने स्कूल में देखा कि दो वर्ष, तीन वर्ष, पांच वर्ष या आठवीं, दसवीं की बच्चियां या तो हिजाब में थीं या बुर्के में. विद्यालय में दो प्रकार का वातावरण नजर आ रहा था. तब मैंने जानकारी ली और पूछा कि जब इनका मजहब कहता है कि क्या पहनें, क्या न पहनें तो फिर हमारे बच्चे–बच्चियां जब कल को लहंगा चुन्नी या अलग–अलग ड्रेस में अलग–अलग रूप में आएंगे तब? जब स्कूल का ड्रेस कोड है, बच्चियों को भी आपत्ति नहीं है, तो उसे लागू करवाइए. बस उन्हें गाइड ही तो करना है स्कूल के नियमों के बारे में”.
‘जो हर बात में राजनीति करते हैं, वे मेरे पूरे भाषण और कार्यक्रम को निकलवाकर सुनें और देखें. मेरा प्रश्न वाजिब है, जब सरकारी स्कूल का अपना ड्रेस कोड है, अपने नियम हैं, फिर इससे हटकर वातावरण क्यों बना हुआ है? आखिर, स्कूल होता किसलिए है? नियम कायदे सिखाने के लिए ही ना?’
जयपुर के गंगापोल क्षेत्र के एक सरकारी स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम में स्थानीय विधायक बालमुकुंद आचार्य पहुंचे थे. इसके बाद छात्राओं ने आरोप लगाया कि विधायक ने हमारे हिजाब को लेकर टिप्पणी की और धार्मिक नारे लगवाए, जो हमें स्वीकार नहीं है. इसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया था.