करंट टॉपिक्स

बंगाल हिंसा – राजनीतिक हिंसा नहीं, समाज विघातक तत्वों का पूर्व नियोजित हमला

Spread the love

निपुण शर्मा

विस चुनाव की तैयारियों के साथ पश्चिमी बंगाल में आरंभ हुई हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही. यह हिंसा योजना पूर्वक की जा रही है. राष्ट्र और संस्कृति की सेवा के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को लक्षित किया जा रहा है. इसमें भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता सबसे ज्यादा निशाने पर हैं. पिछले तीन साल में दो सौ से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है. जबकि चुनाव परिणाम के बाद का आंकड़ा ही सोलह हो गया है. हमले और मारपीट की घटनाएं बहुत ज्यादा हैं. केन्द्र सरकार ने जाँच दल भेजा है, राज्यपाल सरकार व प्रशासन को चेता चुके हैं, फिर भी घटनाएं नहीं रुक रहीं. इसका कारण यह है कि ये घटनाएं राजनैतिक नहीं, अपितु राष्ट्र विरोधी उन तत्वों के संगठित हमले हैं जो भारत में भारत की पहचान को खत्म करने पर तुले हैं.

यह हमले साजिश हैं. जिसमें माओवादी, नक्सलवादी, रोहिग्याओं और बंगलादेशी घुसपैठियों को बसा कर भारत की सांस्कृतिक पहचान बदलने का योजना पूर्वक षडयंत्र किया जा रहा है. चिंता की बात यह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस हिंसा को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहीं, जितनी आज समय की जरूरत है. इसका कारण यह भी हो सकता है कि इन अराजक और हिंसक तत्वों ने तृणमूल कांग्रेस का मुखौटा लगा रखा है. यह मुखौटा इसलिए लगाया है कि लोग इसे राजनैतिक हिंसा समझें. हिंसा में निशाना भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता हैं. इस कारण अन्य राजनैतिक दल चुप्पी साधे हुए हैं अथवा इन हमलों को कमतर दिखाने की बातें करने लगे हैं.

चुनाव परिणाम के तुरंत बाद उन्मुक्त होकर अनियंत्रित तरीक़े से हुई यह राज्यव्यापी हिंसा न केवल निंदनीय है, बल्कि पूर्व नियोजित भी है. समाज-विघातक शक्तियों ने महिलाओं के साथ घृणास्पद बर्बर व्यवहार किया है. निर्दोष लोगों की क्रूरतापूर्ण हत्याएं कीं हैं. घरों को जलाया, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों-दुकानों को लूटा एवं हिंसा के फलस्वरूप अनुसूचित जाति-जनजाति समाज के बंधुओं सहित हज़ारों लोग अपने घरों से बेघर होकर प्राण-मान रक्षा के लिए सुरक्षित स्थानों पर शरण के लिए मजबूर हुए हैं. कूच-बिहार से लेकर सुंदरबन तक सर्वत्र जन सामान्य में भय का वातावरण बना हुआ है. इस हिंसा में वे तमाम तत्व शामिल हैं जो बंगलादेश से घुसपैठ करके भारत की सीमा में दाखिल हुए.

यदि हम पुरानी बात न करें तो भी पिछले लगभग दस वर्षों में करोड़ों बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या भारत में घुसे. इनकी मानसिकता साम्प्रदायिक है और ये भारतीय संस्कृति, स्वरूप और पहचान के विरुद्ध योजना पूर्वक काम कर रहे हैं. जिनकी अनदेखी पहले कांग्रेस सरकारों ने की, फिर वामपंथी और वर्तमान ममता सरकार तो मानो उनका पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत कर रही है. अपने चुनाव प्रचार में ममता बनर्जी के भाषणों से आई प्रतिध्वनि में लगभग ऐसी ही झलक थी. इन तमाम ताकतों को उस समय और बल मिला, जब अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिये कुछ ऐसे तत्वों को संरक्षण दिया जो आपराधिक, हिन्दू विरोधी मानसिकता के थे. ऐसी तमाम ताकतें ममता बनर्जी की राजनीतिक सत्ता प्राप्ति के लिए अति सक्रिय रहीं. उसी का प्रभाव बंगाल चुनाव प्रचार और परिणाम के बाद में भयंकर वीभत्स रूप में देखने को मिल रहा है. यह निश्चित है कि आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में यही बांग्लादेशी घुसपैठिये और क्रिमिनल मानसिकता की रोहिंग्या फौज पूरी शक्ति से ताण्डव करेगी और तमाम अल्पसंख्यक, सूडो-सेकुलर, तथाकथित लिबरल बुद्धिजीवियों के साथ मिलकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का प्रयास करेंगे.

बंगाल की इस हिंसा के पीछे राष्ट्र विरोधी तत्वों के षडयंत्र से इसलिए भी इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि यहां सबसे पहले भारत विभाजन की आवाज उठी थी. 1906 में मुस्लिम लीग का गठन बंगाल में हुआ और साम्प्रदायिक हिंसा के भीषण दंगे 1907 में हुए. 1924, 1926 की साम्प्रदायिक घटनाओं के बाद 1946 में मुस्लिम लीग के डायरेक्ट एक्शन का सबसे ज्यादा वीभत्स रूप बंगाल में ही देखने को मिला था.

ताजा हिंसा में उसी मानसिकता की झलक है. कहने के लिये ममता बनर्जी सत्ता में लौट आईं हैं, पर भाजपा की ताकत तीन सदस्यों से बढ़कर 77 हो जाना उनकी खीज का सबसे बड़ा कारण है. और शक्ति वृद्धि का आधार कार्यकर्ताओं का बल है, इसलिये वे इन्हें निशाना बना रहे हैं. भय का ऐसा वातावरण बनाना चाहते हैं, जिससे लोग भाजपा से न जुड़ें, संघ के साथ न आएं. इसलिए उन गांवों को जलाया जा रहा है, जहाँ भाजपा को बढ़त मिली. उन लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, जिन्होंने भाजपा के लिये काम किया या भाजपा के समर्थन में वोट जुटाए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *