भोपाल. भोपाल के बैरागढ़ थोक कपड़ा बाजार में तीन साल पहले तक चीन में बने कपड़े की भरमार थी. खासतौर पर चादरें, रजाई का कपड़ा, पर्दे एवं हैंडलूम कपड़े पर चीन का वर्चस्व था, लेकिन अब यह बीते दिनों की बात हो गई है. देशी कपड़ा बेचकर व्यापारी आत्मनिर्भर भारत अभियान को सफल बना रहे हैं. यहां से पूरे प्रदेश के थोक व फुटकर कारोबारी कपड़ा खरीदते हैं. बैरागढ़ के थोक कपड़ा बाजार में करीब 500 करोड़ रुपये से अधिक का सालाना टर्नओवर होता है.
व्यापारियों के अनुसार बाजार में चीनी कपड़े की बिक्री तीन साल में 90 फीसद तक कम हो गई है. एक अनुमान के अनुसार व्यापारियों ने पिछले एक साल में ही चीन को 100 करोड़ रुपये का झटका दिया है.
दरअसल, चीन में बना सामान सस्ता होने के कारण व्यापारी इसकी बिक्री करते रहे. ग्राहक भी सस्ता माल होने के कारण पहले यह नहीं देखते थे कि इसका उत्पादन कहां हुआ है और इसकी खरीद-फरोख्त का क्या परिणाम हो सकता है. लेकिन अब न केवल व्यापारी, बल्कि ग्राहक भी यह समझने लगे हैं कि भारत में बनी वस्तुएं खरीदकर ही हम देश को आत्मनिर्भर बना सकते हैं. भारत के प्रति चीन के नकारात्मक रवैये को देखते हुए लोग स्वप्रेरणा से भारत में निर्मित सामान खरीदने लगे हैं. इसका प्रभाव कपड़ा बाजार पर भी दिख रहा है. हालांकि, चीन से माल की आवक बंद नहीं हुई है पर इसकी खपत कम हो गई है.
थोक वस्त्र व्यवसाय संघ के अध्यक्ष कन्हैया लाल के अनुसार पहले चीन में निर्मित चादरों की बहुत मांग थी. चीनी कपड़ा दिखने में अच्छा, नर्म और सस्ता होता है. पर भारतीय कंपनियों ने इसका विकल्प ढूंढ निकाला. अब भारत में निर्मित कपड़ा ही बिक रहा है.
कन्हैया लाल बताते हैं कि दो साल पहले तक दिल्ली, पानीपत, लुधियाना और सूरत से हैंडलूम, कंबल, शॉल आदि चीन निर्मित कपड़े आते थे. इसका करीब 110-115 करोड़ का सालाना कारोबार होता था. धीरे-धीरे चीन का यह माल मंगवाना कम हुआ और अब महज 10 से 12 करोड़ का माल ही आ रहा है. 90 फीसद हैंडलूम के कपड़े अब भारत निर्मित ही मंगवा रहे हैं.
मुनाफा अधिक फिर भी नहीं बेचते
थोक कपड़ा व्यापारियों के अनुसार चीन से आने वाले कपड़े के दाम भारत में बने कपड़े के मुकाबले कम होते हैं. इसका लाभ ग्राहकों को कम होता है, लेकिन व्यापारियों को चीन के कपड़े पर अधिक मुनाफा होता है. इसके बावजूद व्यापारी अब चीन का कपड़ा बेचना नहीं चाहते. हैंडलूम की चीन में बनी सिंगल बेड की चादर 100 से 200 रुपये तक में मिलती है. भारतीय चादर के दाम 10 फीसद तक अधिक हैं, लेकिन अब व्यापारी और ग्राहक दोनों की पसंद भारतीय कपड़ा है.