करंट टॉपिक्स

पुस्तक समीक्षा : भारतीय शिक्षा दर्शन की मार्गदर्शिका बनेगी – भारतीय शिक्षा दृष्टि

Getting your Trinity Audio player ready...
Spread the love

स्वाध्याय की दृष्टि से सुरुचि प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ‘भारतीय शिक्षा दृष्टि’ पुस्तक आजकल मेरे हाथ में है। यह पुस्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के देश भर में प्रवास के दौरान शिक्षा दृष्टि पर दिए मार्गदर्शनों का संचय है। पुस्तक का संपादन रवि कुमार जी ने किया है।

भारतीय शिक्षा जगत में अनेक वर्षों से जब भी विमर्श प्रारंभ होता है तो विमर्श के अथ से लेकर इति तक केवल मैकाले के नामजप के अतिरिक्त कुछ नहीं रह पाता। यह स्वभाविक हो सकता है क्योंकि अंग्रेजों ने अनेक वर्षों तक परिश्रमपूर्वक हमारी चित्ती को समाप्त करने की जिस योजना पर काम किया था, उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण अस्त्र शिक्षा ही था। किंतु स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी क्या हम सांप निकलने के बाद लकीर पीटते रहेंगे? शिक्षा क्षेत्र की शुचिता और मर्यादा को पुनः भारतीय वैचारिक अधिष्ठान पर लाकर स्थापित करना, इसके लिए किसी को दोष देते रहना या समस्या का उल्लेख करते रहना पर्याप्त नहीं होगा। समाधान की दिशा में प्रयोगात्मक कार्यविधि की आवश्यकता अनुभूत होती है।

मैं इस पुस्तक को प्रायोगिक रूप से भारतीय शिक्षा को अपने मूल वैचारिक अधिष्ठान पर लौटाने के यज्ञ की एक महत्वपूर्ण आहुति मानता हूँ।

पुस्तक के प्रारंभ में सरसंघचालक जी के वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2020 तक के विजयादशमी उत्सव के उद्बोधनों का संकलन किया गया है। यह सभी विषय भी मूलतः कहीं ना कहीं भारतीय समाज जीवन और शिक्षा से स्वयं को जोड़ते हैं। इस अध्याय के पश्चात भारतीय शिक्षा को भारतीय मनीषा से जोड़ने के लिए आवश्यक तत्वों के आधार पर मार्गदर्शनों का विषयपरक विभाजन किया गया है। सर्वप्रथम धर्म और शिक्षा विषय को लेकर उनके साक्षात्कार और राजकोट के गुरुकुल में दिए उद्बोधन को उद्धृत किया गया है। चूंकि विषय की पूर्व-पाठिका इन दो अध्याय में बनी ही, इसलिए तुरंत दो आलेख गुरुकुल शिक्षा पद्धति को आधार बनाकर लिए गए हैं। दूसरा आलेख श्रृंगेरी के समीप हरिहरपुर में प्रबोधित किया गया है, वह गुरुकुल शिक्षा पद्धति की हमारी प्राचीन परंपरा के समग्र अवदान को रेखांकित करने में सक्षम आलेख है। स्वाभाविक रूप से समय-समय पर हमारे मनीषियों द्वारा दिए गए मार्गदर्शन के आधार पर एक उर्वरा-भूमि तैयार करने का काम लंबे समय से विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान करता आ रहा है।  संगठन के कार्यकर्ताओं को भी समय-समय पर श्रद्धेय सरसंघचालक जी का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा है। इन आयोजनों में उनके द्वारा दिए मार्गदर्शन सत्रों को लिपिबद्ध करते हुए रवि कुमार जी ने 6 आलेख संपादित किए हैं। इन सबकी विषय वस्तु में कहीं ना कहीं शिक्षा, शिक्षण, शिक्षण पद्धति और भारतीय शिक्षा पद्धति के कारकों को बार-बार रेखांकित किया गया है, जो मानसिक गुलामी काल में विस्मृत कर दिए गए।

निश्चित तौर पर विद्या भारती के कार्य की चर्चा करते ही विद्या भारती की सबसे बड़ी पूंजी अर्थात उसके पूर्व छात्र स्मरण में आते हैं। संपूर्ण भारतवर्ष में समाज-जीवन में घुल-मिल गए विद्या भारती के इन पूर्व छात्रों को भी सरसंघचालक जी ने जयपुर और हैदराबाद में मार्गदर्शित किया था। उन दोनों उद्बोधनों को पढ़ना मुझे लगता है केवल विद्या भारती के पूर्व छात्रों के लिए ही नहीं, अपितु समाज में अपनी भूमिका का कुशलता से निर्वाह कर रहे समस्त भारतीय समाज के लिए अनिवार्य है। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात हमारा अपने शिक्षण संस्थानों के प्रति दायित्व समाप्त नहीं होता, यह दिशा इन आलेखों में बड़ी कुशलता से उकेरी गयी है।

संघ के मूल वैचारिक दर्शन से अनुप्राणित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एक महत्वपूर्ण उपक्रम रहा है। विशेषकर पाठ्यक्रमों को उनकी खोई हुई गरिमा लौटाने के लिए प्रारंभ हुए शिक्षा बचाओ आंदोलन से लेकर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास तक की उसकी यात्रा में मोहन भागवत जी ने पांच महत्वपूर्ण सत्रों में मनोभाव व्यक्त किए थे। इन मनोभावों का यह सुंदर संच पृष्ठ 117 से पृष्ठ 150 तक संग्रहित है। इसके अतिरिक्त देश भर में निजी क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षा संस्थानों और शिक्षाविदों के वैचारिक कुम्भ के आयोजनों में भी समय-समय पर मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा है। ऐसे आयोजनों में दिए उनके उद्बोधनों को पांच आलेखों के माध्यम से संग्रहित किया है, इनमें कुछ आलेख पुस्तक विमोचन के समय अभिव्यक्त किए गए हैं तो कुछ आलेख भिन्न-भिन्न शासकीय संस्थाओं द्वारा स्वाध्याय और लेखन प्रशासन से जोड़कर आयोजित किए गए हैं।

निश्चित तौर पर उपरोक्त उल्लेखित सभी आलेखों को पढ़ने के पश्चात हमारे मन में यह जिज्ञासा प्रकट होती है कि आखिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मूल भारतीय विचार शिक्षा को किस पथ पर अग्रसरित करना चाहता है? हमारी इन जिज्ञासाओं का समाधान अंतिम खंड में होना प्रारंभ होता है। अंतिम तीन आलेख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा अपनी साधारण सभा में पारित उन प्रस्तावों के उल्लेख से होता है, जिनमें शिक्षा नीति और भारतीय शिक्षा दर्शन को लेकर अपना भविष्य दृष्टा चिंतन भारतीय समाज के समक्ष रखा है।

भारतीय शिक्षा दृष्टि को ध्यान में रखकर अपनी भूमिका तय करने वाले समाज जीवन के ऐसे कार्यकर्ता जो भारतीय शिक्षा दर्शन के आधार पर आने वाली पीढियां को गढ़ना चाहते हैं, उनके लिए भी यह एक प्रकार की ‘गाइड बुक’ बनकर उभरेगी। सरसंघचालक जी के विचारों का यह नवनीत एक स्थान पर एकत्र करके हम सबके हाथों में सौंपना स्वयं में एक सारस्वत अनुष्ठान से कम नहीं था। पुस्तक के प्रकाशन हेतु सुरुचि प्रकाशन को भी बधाई देता हूँ कि उन्होंने पुस्तक की डिजाइनिंग से लेकर शब्दांकन और शब्द शुद्धि (प्रूफरीडिंग) तक बहुत ही गंभीरता से कार्य किया है। शिक्षा आधारित ग्रंथों की श्रेणी में यह पुष्प निश्चित तौर पर 108 मनकों की माला में सुमेरु की तरह स्थापित होगा, इसमें कोई संशय नहीं।

डॉ. विकास दवे

(लेखक साहित्यकार और मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक हैं।)

पुस्तक का नाम : भारतीय शिक्षा दृष्टि – डॉ. मोहन भागवत

संपादक : रवि कुमार

प्रकाशक : सुरुचि प्रकाशन, केशव कुंज झंडेवाला, नई दिल्ली-110055

प्रथम संस्करण : अक्तूबर 2024

मूल्य : 235 रुपये

पृष्ठ संख्या : 204

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *