नई दिल्ली. राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की कक्षा 6 की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक Exploring Society: India and Beyond में हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता के लिए ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ शब्द का प्रयोग किया गया है. जब से पुस्तक आई है, तब से इसे लेकर विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है.
पाठ्यपुस्तक का मसौदा तैयार करने वाली समिति के प्रमुख मिशेल डेनिनो का कहना है कि हड़प्पा सभ्यता को सिंधु-सरस्वती कहना किसी राजनीति के चलते उठाया गया कदम नहीं है, न ही यह किसी धार्मिक दबाव के कारण उठाया गया है. यह तथ्य है और विद्वानों ने कई बार इसी नाम से संदर्भित भी किया है.
मिशेल डेनिनो ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि हड़प्पा सभ्यता के लिए सिंधु-सरस्वती या इंडस-सरस्वती जैसे शब्द न ही नए हैं और न ही किसी राजनीतिक एजेंडे के कारण प्रयोग किए गए हैं. कई पुरातत्ववेत्ताओं ने इस शब्द का प्रयोग किया है.
‘विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जोनाथन मार्क केनोयर, ब्रिटिश पुरातत्वविद् जेन मैकिन्टोश और भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रमुख अधिकारियों में से एक रेमंड ऑलचिन ने अपनी पुस्तकों में इन शब्दों का प्रयोग किया है. फ्रांसीसी पुरातत्वविद जीन-मैरी कैसल भी हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में सरस्वती नदी की बात करते हैं. अमेरिकी पुरातत्वविद ग्रेगरी पॉसेल ने अपनी पुस्तक ‘द इंडस एज’ में सरस्वती नदी को समर्पित कई अध्याय लिखे हैं.’
उन्होंने कहा कि यह शब्दावली स्थापित पुरातात्विक विद्वत्ता पर आधारित है, न कि किसी हालिया राजनीतिक प्रभाव पर. इसलिए, यह हिन्दुत्व की बात नहीं है. इसके अलावा, हमने सभी वैकल्पिक नाम शामिल किए हैं. मेरे लिए, यह तथ्यात्मक है.
उनके लिए यह सब तथ्यात्मक है और किसी भी प्रकार से किसी भी राजनीति का संकेत नहीं है. जुलाई 2024 में जब यह लोगों के संज्ञान में आया था कि हड़प्पा सभ्यता के लिए इन दो शब्दों का प्रयोग किया गया है तो इस पर विवाद होने लगा था.
हालांकि इससे पहले दिसंबर 2023 में David Frawley ने फर्स्ट पोस्ट में एक लेख लिखा था कि हड़प्पा सभ्यता नहीं, बल्कि यह वैदिक सरस्वती सभ्यता है. उन्होंने लिखा था कि – समय आ गया है कि अब भारत की प्राचीन सभ्यता को हड़प्पा कहकर न पुकारा जाए. हड़प्पा दरअसल एक कृत्रिम और अचानक से ही गढ़ा गया शब्द है, जिसे पाकिस्तान के हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के पुरातात्विक स्थल के नाम पर लिया गया है. जिसे देश के विभाजन से पहले बीसवीं सदी की शुरुआत (1921-22) में अविभाजित भारत में खोजा गया था.जोना
यह बात सत्य है कि हर सभ्यता का नाम पहले उसके स्थान के नाम पर ही होता है. अर्थात हड़प्पा में उत्खनन हुआ तो उसके नाम पर यह सभ्यता जानी जाएगी, परंतु यह उसकी मूल पहचान नहीं है. जिन्होंने इस सभ्यता का नाम हड़प्पा रखा था, वे इस नाम के सहारे आर्य और द्रविड़ संघर्ष वाली कहानी भी प्रचारित करते हैं. व्हीलर ने भी यही कहानी दोहराई थी कि आर्यों ने आकर मोहनजोदड़ो पर हमला किया था, जिसे इतिहासकारों द्वारा झूठा साबित किया जा चुका है.
उन्होंने हरियाणा के राखीगढ़ी स्थल पर हुए उत्खनन का उल्लेख करते हुए लिखा था कि हरियाणा में राखीगढ़ी, जो कुरुक्षेत्र के सरस्वती नदी क्षेत्र में स्थित है और जिसे वेदों का परंपरागत घर बताया जाता है, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से भी प्राचीन और बड़ी सभ्यता स्थापित हो चुकी है. चूंकि राखीगढ़ी हड़प्पा स्थलों से भी अधिक प्राचीन एवं बड़ी है तो यह उचित होगा कि भारत की प्राचीन सभ्यता को राखीगढ़ी के साथ जोड़कर देखा जाए न कि हड़प्पा के साथ.
यूके की Sally Mallam, जो द इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ हयूमन नॉलेज की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं, ने भी ह्यूमेनजर्नी नामक वेबसाइट पर इस सभ्यता को इंडस-सरस्वती सभ्यता अर्थात सिंधु-सरस्वती सभ्यता ही कहा है. उन्होंने इसमें लिखा है कि “इसे सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से जाना जाता है, इसका चरमोत्कर्ष लगभग तेरह शताब्दियों तक रहा और यह एशिया की प्रमुख नदियों में से एक सिंधु नदी और सरस्वती या घग्गर-हकरा नदी, जो कभी उत्तर-पश्चिम भारत और पूर्वी पाकिस्तान से होकर बहती थी, की घाटियों में फली-फूली.”
भारत में वामपंथी इतिहासकारों ने हमेशा ही सरस्वती सभ्यता के विचार का ही विरोध किया है. यह वही वर्ग है, जिसने बाबरी ढांचे के स्थान पर कभी मंदिर था, इसका भी तमाम तथ्यों और प्रमाण होने के बावजूद विरोध किया था.