नई दिल्ली. मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने को लेकर समय-समय पर मांग उठती रही है. संतों ने राज्य सरकारों ने मंदिरों को मुक्त करने की मांग भी उठाई. लेकिन, अब मंदिरों को मुक्त करने की मांग जोर पकड़ने लगी है. इसी वर्ष आयोजित बैठक में देशभर से 200 से अधिक प्रमुख संत व धार्मिक संगठनों के शीर्ष पदाधिकारी शामिल हुए थे. बैठक में संत समाज ने देश के प्रमुख मंदिरों के प्रबंधन का काम सरकारों द्वारा अपने हाथ में लिए जाने पर चिंता जताई थी. और बैठक में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए अभियान चलाने का संकल्प लिया गया था.
मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करवाने के लिए इशा फाउंडेशन ने तमिलनाडु में अभियान की शुरुआत की. अभियान से अब तक करोड़ों लोग जुड़ चुके हैं.
इशा फाउंडेशन के संस्थापक सदगुरु जग्गी वासुदेव ने कहा कि करीब एक महीने से कुछ ही अधिक समय में तमिलनाडु के मंदिरों को मुक्त करने के अभियान के तहत तीन करोड़ से अधिक लोगों ने राज्य के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखने की इच्छा जताई है.
सदगुरु ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी और विपक्ष के नेता एमके स्टालिन को दूसरा पत्र लिखते हुए कहा कि न सिर्फ राज्य के तीन करोड़ तमिलों ने ऐसी इच्छा जताई है, बल्कि बड़ी संख्या में देश के साधु-संतों ने भी अपनी यही मंशा व्यक्त की है. वह तमिल जनता से वादा करें कि उनके नेतृत्व में उनके सभी प्रिय मंदिर तमिल लोगों को सौंप दिए जाएंगे.
उन्होंने ट्वीट कर नेताओं से अपील की कि वह एक जिम्मेदार राजनेता की तरह मंदिरों को मुक्त करें और द्रविडों के गौरव के प्रतीक इन मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण समाप्त करें. तमिलनाडु के इतिहास में ऐसे फैसले लेने वाले नेताओं की कीर्ति बढ़ेगी.
तमिलनाडु चुनाव में भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की घोषणा की है. विहिप ने घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि मंदिरों का संचालन करना अथवा उनके धन या प्रबंध में हस्तक्षेप करना किसी सरकार का कार्य नहीं है. तमिलनाडु के अतिरिक्त केरल, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना जैसे अनेक राज्यों में भी हिन्दू समाज में इसके कारण रोष व्याप्त है. राज्य सरकारों द्वारा मंदिरों की संपत्ति के दुरूपयोग, अश्रद्धावान लोगों, भ्रष्ट नौकरशाहों तथा राजनेताओं द्वारा मंदिरों के प्रबंधन में घुसपैठ, अहिन्दू कार्यों के लिए भगवान के चढ़ावे का दुरुपयोग किसी से छिपा नहीं है. इसके कारण मंदिरों की पवित्रता तथा वहां के आध्यात्मिक वातावरण को दूषित करने के षडयन्त्र जग-जाहिर हैं. विहिप ने कहा कि मंदिरों के अधिग्रहण व कुप्रबंधन के चलते हिन्दू समाज को संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता व पूजा के अधिकार से दशकों से वंचित रखा गया. अब मंदिरों को मुक्ति को लेकर सभी राज्यों में कठोर कानून लाना ही होगा.