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बच्चों के साथ होता था क्रूरतापूर्ण व्यवहार, बाल अधिकार संरक्षण आयोग की रिपोर्ट में खुलासा

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बच्चों को ले जा रहे लोगों के पास नहीं था अभिभावकों का सहमति पत्र

अयोध्या में संदिग्ध परिस्थिति में ले जाए जा रहे मुस्लिम समुदाय के 95 बच्चों को पुलिस ने पकड़ा था. इन बच्चों को मौलवी अपने साथ बिहार से सहारनपुर ले जा रहा था. सभी बच्चों की आयु चार से 12 वर्ष के बीच है. पूरे मामले की जांच रिपोर्ट में डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बच्चों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार की बात कही है. बच्चों को ले जा रहे लोगों के पास किसी बच्चे के अभिभावक का सहमति पत्र या मदरसे का अधिकृत पत्र नहीं मिला. इससे संदेह की स्थिति उत्पन्न हो गई है.

अब उत्तरप्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी और अयोध्या बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष सर्वेश अवस्थी की जांच में यह बात सामने आई है कि बच्चों की तस्करी की जा रही थी. यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र शर्मा को सौंपी गई है.

आयोग के अध्यक्ष ने मुख्य सचिव को बाल तस्करी करने वालों के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कराने और मदरसा दारुल उलूम रफीकिया तथा जामिया दर-ए-अरकम खैरा मुगल सहारनपुर की मान्यता की जांच करने के लिए पत्र लिखा है. मामले में यथोचित कार्रवाई की सूचना बाल अधिकार संरक्षण आयोग को भेजने को कहा है. बरामद बच्चों को लखनऊ के राजकीय बालगृह में रखा गया है.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, समिति के समक्ष पेश बच्चों ने बताया कि मदरसे में ईंटें ढुलवाई जाती और शौचालय साफ कराया जाता है. एक नाजिम की तरफ से उनसे आपत्तिजनक शपथपत्र पर हस्ताक्षर कराया जाता था. एक रोटी और आधी रोटी मिलने का विरोध करने पर पिटाई की जाती. अभिभावकों से शिकायत करने से रोका गया.

राजकीय बालगृह में बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य पहुंचीं तो 6 से 14 वर्ष आयु के बच्चे रो पड़े. किसी ने कहा कि मुझे मदरसे में नहीं पढ़ना, मुझे डॉक्टर बनना है. ये बच्चे बिहार के अररिया और पूर्णिया के रहने वाले हैं. बीते शुक्रवार को इन्हें मौलवी डबल डेकर बस से सहारनपुर के देवबंद ले जा रहे थे. इस दौरान मानव तस्करी की आशंका पर पुलिस ने बच्चों को बस से उतरवा कर बालगृह भिजवा दिया था. इस समय 93 बच्चे यहां रह रहे हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों को जिन दो मदरसे देवबंद के मदारूल उलूम रफीकिया और दारे अरकम में ले जाया जा रहा था, वो दोनों रजिस्टर्ड नहीं हैं. मदरसों के संचालक बच्चों को अनाथ बताकर फंडिंग लेते थे. ये अधिकांश बिहार के बच्चों को उनके घरवालों से तालीम देने के नाम पर लाते थे और फिर उन्हें छोटे से मदरसे में रखते थे.

इन बच्चों में कई भाई बहन हैं और वे सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करते थे. इस बीच मदारूल उलूम रफीकिया और दारे अरकम मरदसों के मौलवी उनके गांव पहुंचे और घरवालों को झांसे में लेकर साथ ले आए.

 

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