साल 2021 की शुरुआत हो चुकी है. बीते वर्ष में मानव जाति ने एक ऐसा भयावह रूप भी देखा है जो पूरे विश्व को ठहर कर सोचने को मजबूर करता है.
चीन और चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने जिस तरह के हथकंडे अपनाए, वह अब दुनिया के सामने आ चुके हैं. चीन का वैश्विक विरोध हो रहा है. भारत में भी चीन को लेकर इतनी नकारात्मकता बन चुकी है कि आम जनमानस में भी प्रत्येक वस्तु को लेकर सतर्कता है कि चीनी सामान से लेकर चीनी विचार का बहिष्कार किया जाए.
बीते 7 दशकों में चीन ने दुनिया में जो कुछ कमाया था, वह सब कुछ 2020 में समाप्त हो चुका है. पूरा विश्व अब चीन को संदेह के नजरिए से देखता है. लेकिन यह सब सिर्फ कोरोना वायरस (वैश्विक महामारी) की वजह से नहीं है, बल्कि ऐसे अनेक कारण हैं, जिनकी वजह से चीन आज पूरी दुनिया में बदनाम हो चुका.
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने वर्ष 2020 में तिब्बत क्षेत्र का जमकर दोहन किया. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ना सिर्फ तिब्बती क्षेत्र का, बल्कि तिब्बती नागरिकों का भी शोषण किया. चीन तिब्बत को स्वायत्त क्षेत्र कहता है, लेकिन असल में वह तिब्बत को एक उपनिवेश की भांति उपयोग करता है. तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों को चीन अपनी मुख्य भूमि के लिए उपयोग करता है और तिब्बती नागरिकों को उन्हीं संसाधनों को निकालने के लिए श्रमिकों के रूप में उपयोग में लेता है.
इसे तिब्बती नागरिकों को रोजगार देने के रूप में प्रस्तुत करता है, जबकि वहां तिब्बतियों को जबरन बनाए श्रम शिविरों में रखा जाता है. सिर्फ इतना ही नहीं तिब्बतियों को सांस्कृतिक तौर पर भी अधीन करने के हर तरह के हथकंडे चीन द्वारा अपनाए जा रहे हैं.
तिब्बत के खनिजों का शोषण चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था में खासा योगदान देता है. यहां से निकलने वाली कमाई अरबों डॉलर में मानी जाती है. तिब्बत में बड़ी संख्या में क्रोमियम, तांबा, के अलावा अन्य ऐसे खनिज मौजूद है जो सिर्फ इन्हीं क्षेत्रों में पाए जाते हैं. चीन सरकार इन क्षेत्रों में खनिज संसाधनों का दोहन लंबे समय से कर रही है. लेकिन संचार साधनों की पहुंच ना होने की वजह से दुनिया के सामने यह नहीं आ पाता. तिब्बत में चीनी सरकार तिब्बतियों के दमन या उनके खिलाफ कठोर फैसले लेने में कोई कमी नहीं करती. जो चीनी सरकार के फैसलों को नहीं मानता, उन्हें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा बनाए गए यातना शिविर में डाल दिया जाता है जहां उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी जाती है.
चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने कच्चे माल में लागत को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर स्थानीय आबादी को मजदूरों के रूप में उपयोग करना शुरू कर दिया है. स्थानीय गांवों और बस्तियों की पिछले कई दशकों से उपेक्षा की गई है और वहां की आबादी बंधुआ मजदूर की तरह जिंदगी व्यतीत कर रही है.
तिब्बत के गांव में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के भवनों का निर्माण किया जाता है और वहां के लोग उन भवनों में बेहद कम तनख्वाह में कार्य करते हैं. इन भवनों के माध्यम से चीनी कम्युनिस्ट सरकार तिब्बती नागरिकों पर निगरानी रखती है.
क्षेत्र के बौद्ध मठों में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षाओं पर भी चीनी सरकार ने रोक लगा रखी है. तिब्बती नागरिकों को चीनी माध्यम से ही शिक्षा लेने का अधिकार दिया गया है, दूसरी भाषा में भी तिब्बतियों को कोई अध्ययन नहीं कराया जाता. तिब्बती भाषा और संस्कृति को खत्म करने के लिए चीनी कम्युनिस्ट सरकार हर तरह के हथकंडे अपना रही है.
सांस्कृतिक वर्चस्व और धार्मिक पराधीनता का रास्ता चीनी सरकार की ओर से संचालित एजेंसी और कंपनियों की मदद करने के लिए अपनाया गया है. चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा स्थानीय तिब्बतियों का जमकर शोषण किया जाता है. उनकी जिंदगी दोयम दर्जे की बन चुकी है. चीनी कम्युनिस्ट सरकार लगातार उनके खिलाफ षड्यंत्र रच रही है.