नई दिल्ली. देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है. लेकिन मुस्लिम समुदाय इससे बेपरवाह होकर देश की राजधानी के केंद्र निजामुद्दीन में तबलीगी जमात की सभा का आयोजन करता है. इस इस्लामिक सभा में देश-विदेश से हजारों मुसलमान शामिल होते हैं. विदेशी जमातियों में आने वाले अधिकांश उन्हीं देशों से हैं, जहां कोरोना महामारी का प्रकोप बहुत अधिक हुआ है, जैसे चीन, ईरान, इंडोनेशिया, मलेशिया, सऊदी अरब, इंग्लैंड और अनेक अन्य मध्य एवं पश्चिम एशियाई देश. इनमें संक्रमित व्यक्तियों की संख्या अधिक हो सकती थी और वही हो रहा है. जांच के बाद इसके साक्ष्य भी आने लग गए हैं. एक अनुमान के अनुसार आयोजन में 2000 से अधिक लोग सम्मिलित हुए थे, जिसमें 300 लोगों को बुखार, खांसी, सांस लेने की समस्या और सर्दी-जुकाम होने की पुष्टि हो चुकी है. चिंता की बात यह है कि इनमें 250 से अधिक की संख्या विदेशी मजहबी प्रचारकों की थी, जो लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा रहे थे.
01 से 13 मार्च तक वहां पर 4000 से भी अधिक मुस्लिम शामिल हो चुके थे. इनमें 15 देशों के टूरिस्ट वीजा पर आए हुए विदेशी भी शामिल थे. इन मौलानाओं में विभिन्न देशों के 281 तबलीगी प्रचारक आए हुए थे. जबकि दिल्ली सरकार ने 12 मार्च को 5 से अधिक लोग इकट्ठा नहीं होने के आदेश जारी किए हुए थे. दिल्ली में 12 मार्च से धारा 144 लागू होने के बावजूद भी शाहीन बाग में संविधान की प्रतियां लहराने वाले अपने मरकाजी आयोजन में खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ा रहे थे. यह केवल यहीं तक नहीं रुके, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी पहुंच गए. 20 मार्च को विदेशी जमात के कोरोना संक्रमित पाते ही मरकज में हड़कंप मच गया. टूरिस्ट वीजा पर आए तबलीगी प्रचारक वीजा नियमों का जानबूझ कर उल्लंघन कर विभिन्न इस्लामिक गतिविधियों में लिप्त रहे.
पूर्वी एशिया के देशों में भी कोरोना महामारी फैलने का मुख्य कारण तबलीगी जमात की “इज्तिमा एशिया” को ही जाता है. दिल्ली में भी निजामुद्दीन इज्तिमा के 24 लोगों में कोरोना वायरस होने की पुष्टि हो चुकी है. कोरोना से यहां कितने लोग संक्रमित हुए होंगे, इसका अनुमान लगा पाना बहुत ही कठिन है. इज्तिमा में भाग लेने वालों में से 7 की हैदराबाद और 1 की श्रीनगर में संक्रमण से मृत्यु हो चुकी है. इससे स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है, क्योंकि यहां से आयोजन समाप्त होने के बाद जमाती देश के विभिन्न राज्यों में जा चुके हैं. यह भी देखा जा रहा कि मुस्लिम समुदाय का एक बहुत बड़ा वर्ग इस बंदी को मानने से इंकार करता चला आ रहा था और तरह-तरह की अनर्गल बातें करके मुस्लिम समाज को भ्रमित कर रहा था. इनके द्वारा सार्वजनिक स्थलों पर एकत्रित होने की अपील की जा रही थी, मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए मुसलमानों से जुटने के लिए कहा जा रहा था और सरकार और प्रशासन की बातों को दरकिनार के करने की नफरत बोई जा रही थी. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की मस्जिदों से लेकर बाजार तक सामान्य रूप से बंदी के बाद भी चलते रहे और कहीं-कहीं अभी भी चोरी-छिपे सरकार के आदेशों का उल्लंघन किया जा रहा है. यही सब कारण थे जिसके चलते कोरोना से संक्रमित मुस्लिम समाज के बड़े भाग में महामारी को फैलाने में सफल हो जाते हैं.