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वस्त्र और हमारा स्वास्थ्य

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वर्तमान में मनुष्य अपने जूतों व वस्त्रों पर सबसे अधिक खर्च कर रहा है. अच्छा दिखना चाहिए, पर्सनेलिटी बननी चाहिए, इसलिए मनुष्य ऐसा करता है. पर, क्या वास्तव में इनसे पर्सनलिटी बनती है? क्या वस्त्रों का यही कार्य है? क्या वस्त्रों का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है? क्या वस्त्रों का भी मन पर प्रभाव पड़ता है? क्या वस्त्रों का चयन मात्र अच्छा दिखने के दृष्टिकोण से करना ठीक है?

आपने कभी, इन प्रश्नों पर विचार किया…?

वास्तव में वस्त्र हमारे शरीर की बाह्य वातावरण (धूप, गर्मी, सर्दी आदि) से रक्षा करने के लिए बने हैं. जैसे जैसे सभ्यताओं का विकास हुआ, वैसे ही वस्त्र मानव जीवन का महत्वपूर्ण अंग बने. सभ्यताओं में संस्कृति के आधार पर कलाओं का विकास हुआ तो विभिन्न प्रकार की परंपराओं के अनुसार वेशभूषाएँ भी मानव जीवन में जुड़ी. परंतु मूल भाव वही रहा जो प्रारम्भ में था – मानव स्वास्थ्य रक्षा का. भारतीय परंपरा में क्षेत्र अनुसार वेशभूषा का निर्माण मानव स्वास्थ्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया गया. अच्छा दिखे ये भी ध्यान का विषय रहा होगा. परन्तु अच्छा दिखे और मानव स्वास्थ्य के प्रतिकूल हो, ऐसा भाव कभी नहीं रहा…

आधुनिक जीवन शैली का वस्त्रों पर प्रभाव

आज की आधुनिक जीवन शैली में वस्त्र मनुष्य के जीवन का महत्वपूर्ण भाग हो गए हैं. महंगा व ब्रांडेड वस्त्र पहनना, अच्छा दिखना और सबसे अलग दिखना, प्राथमिकता का विषय हो गया है. मानव स्वास्थ्य दूसरे स्थान पर आ गया है. अच्छा दिखना तो ठीक है, पर स्वास्थ्य को ताक पर रखकर नहीं, ये समझने की आवश्यकता है. अच्छा पहनना, परंतु घर का बजट बिगाड़कर बहुत महंगा व ब्रांडेड पहनना क्या उचित है? अथवा जैसे-तैसे महंगे वस्त्रों की व्यवस्था करना स्वस्थ जीवन के लिए अच्छा नहीं है.

वस्त्र और स्वास्थ्य

वस्त्रों का स्वास्थ्य पर सही व विपरीत प्रभाव पड़ता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपका चयन कैसा है, चयन करते समय स्टफ (फैब्रिक) कैसा है, रंग कैसा है, ऋतु के अनुकूल है या नहीं, सिलाई कैसी है, ये सब बातें स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं. उदाहरण के लिए गर्मी के मौसम में गहरे रंग के कपड़े ठंडक नहीं दे सकते. यदि कपड़े सांस नहीं लेते हैं तो त्वचा तक वायु नहीं पहुंचेगी और जब तक आप ऐसे वस्त्र पहनेंगे, तब तक असहजता रहेगी और बाद में भी उसका प्रभाव अनुभव होगा. शरीर के साथ सटे हुए वस्त्र भी स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं. आजकल ऐसे वस्त्रों का प्रचलन आम हो गया है. ये शरीर के तापमान को नियंत्रित नहीं होने देते, वायु को त्वचा तक पहुंचने नहीं देते और शरीर की गर्मी को बाहर नहीं आने देते. युवाओं में ऐसे वस्त्रों का अधिक उपयोग उनकी प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करता है.

छोटी आयु के बालकों को फैशन के नाम पर वस्त्र पहना दिए जाते हैं. उनके हाथ में निर्णय करना होता नहीं है और अभिभावकों की दृष्टि में तो अच्छे दिखते रहने चाहिए. पर, वे उतना समय मन से कष्ट में रहते हैं. एक घर में जाना हुआ. अतिथि आते हैं तो घर में सब अच्छा दिखना चाहिए, ये भाव रखकर सभी तैयारी करते हैं. घर में एक वर्ष से कम आयु का शिशु भी था. उसे भी अच्छे वस्त्र पहनाए हुए थे. वह बिस्तर पर लेटा हुआ था. शिशु अपने पैरों को हिलाने का प्रयास तो कर रहा था, परंतु जो निक्कर उसे पहनाई गई थी, उसके कारण पैर हिला नहीं पा रहा था. मेरे कहने पर उसकी माँ ने निक्कर निकाल कर लंगोट बांध दिया. इससे हिलने-डुलने में उसे सुविधा हुई. ऐसा होने पर उसके मुख पर अलग ही प्रसन्नता दिख रही थी. विवाह कार्यक्रमों में सम्मिलित होने के लिए शिशुओं को चमकदार व सिंथेटिक फैब्रिक से बने वस्त्र पहना दिए जाते हैं. शिशु बेचारा विवाह में आनन्द की बजाय ऐसे वस्त्रों से ही परेशान रहता है.

स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उचित रंग के वस्त्रों का चयन व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाता है. त्वचा का रंग कैसा है, मौसम कैसा है, कहां जाना है, उन सब बातों को ध्यान में रखते हुए कौन से रंग का वस्त्र पहनना है, ये चुनाव करना आवश्यक है. अब त्वचा का रंग भी गहरा है और गहरे रंग के वस्त्र पहने हुए हैं तो कैसा लगेगा!

भारतीय अवधारणा

भारतीय अवधारणा में खुले-हवादार वस्त्रों का प्रचलन रहा है. विशेषकर सूती व खादी के वस्त्रों का जो पर्याप्त सांस लेते हैं. शीतकाल के लिए ऊनी वस्त्रों का उपयोग होता रहा है. सूती, खादी व ऊनी वस्त्र ये प्रकृति के अनुकूल हैं. शरीर से सटे हुए वस्त्रों का प्रचलन भारतीय परंपरा का भाग नहीं रहा क्योंकि भारतीय परम्परा में मानव स्वास्थ्य प्रथम स्थान पर रहा है.

भारतीय अवधारणा व आधुनिक जीवन शैली का समन्वय वस्त्रों के सम्बन्ध में भी करना आवश्यक है. वस्त्रों के विषय में प्रचलित धारणा से बाहर निकल कर स्वास्थ्य और सौन्दर्य दोनों को उचित स्थान देना हितकर है.

रवि कुमार

(लेखक विद्या भारती दिल्ली प्रान्त के संगठन मंत्री है और विद्या भारती प्रचार विभाग की केन्द्रीय टोली के सदस्य है.)

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