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गौ सेवा गतिविधि का प्रयास – गोमय दीये से परिवारों की दीवाली प्रकाशमान करेंगे

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मुंबई (विसंकें). कोरोना संकट के कारण रोजगार छिन जाने से अनेक लोगों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है. उन्हें आर्थिक आधार मिले और वे स्वावलंबन की ओर बढ़ें, इस हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोकण प्रांत गौ सेवा गतिविधि के तहत प्रयास शरू किये गए हैं. गोमय से दीये बनाकर उनकी बिक्री की योजना तैयार की है. जिससे प्रभावित परिवारों को स्वरोजगार उपलब्ध करवाया जा सके. गौ सेवा गतिविधि द्वारा यह उपक्रम शुरू कर दिया गया है. २० परिवारों में गोमय के दीये बनाने का काम जारी है. गोमय दीयों की बिक्री से किसानों की दीवाली सुखदायी होगी.

दीवाली और दीयों का अनोखा नाता है. परंपरागत मिटटी के दीये, आकाशदीप प्रज्ज्वलित होकर दीवाली को स्मरणीय बनाते हैं. इस वर्ष दीवाली के अवसर पर गोमय दीयों का यह उपक्रम स्वयंसेवकों ने हाथ में लिया है. उपक्रम के तहत २० परिवारों द्वारा एक लाख से अधिक दीयों का निर्माण किया जा रहा है. लोगों की मांग के अनुसार दीयों के निर्माण का क्रम जारी रहेगा. छोटी-छोटी गौशालाएं भी इस उपक्रम में सहभागी हो रही हैं. अक्तूबर के पहले सप्ताह से यह दीये बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कोकण प्रांत के गौ सेवा प्रमुख हरीओम शर्मा ने बताया कि यह उपक्रम पर्यावरणस्नेही उत्पादों का निर्माण कर किसानों व अन्य परिवारों को अतिरिक्त आर्थिक लाभ दिलाने का एक प्रयास है. यह दीये गौ सेवा गतिविधि द्वारा ख़रीदे जाएंगे और स्थानीक प्रतिनिधि को बिक्री के लिए भेजे जाएंगे. प्रतिनिधि द्वारा वह दीये लोगों में बेचे जाएंगे. एक दीये का बिक्री मूल्य केवल साढ़े तीन रुपये रखा गया है. इन दीयों को लोगों की ओर से अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है.

दीये के उपयोग के बारे में शर्मा ने कहा कि, यह दीये सरसों का तेल और रुई की बाती से जलाने हैं. बाती के साथ साथ यह दीया भी थोड़ा-थोड़ा जल जाता है. पांच-छह दिनों के बाद अर्थात दीवाली समाप्त होने पर कपूर का उपयोग कर घर में ही यह दीये पूरी तरह से जला देने हैं. दीया जल कर नष्ट हो जाएगा और हवा भी शुद्ध हो जाएगी. हवा तो शुद्ध होती ही है. इसी के साथ दीये के कोई अवशेष भी नहीं बचते. जो प्रकृति से लिया, वह उसी में समा जाता है. और प्रदूषण की भी कोई चिंता नहीं.

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