23 दिसंबर, 1995 का वह कष्टमय दिन, जब एक मैरिज पैलेस में DAV स्कूल डबवाली के वार्षिक उत्सव के सांस्कृतिक कार्यक्रम का पंडाल अचानक भयंकर आग लगने से पूरा का पूरा पंडाल दावानल में परिवर्तित हो गया. देखते ही देखते चारों ओर चीख पुकार मच गई. लोग जान बचाने को इधर-उधर भाग रहे थे.
प्रशासन ने जिला उपयुक्त बिडलान को पंडाल से बाहर निकालने के लिए मुख्य मार्ग रोक दिया था तो दूसरी ओर आग का प्रभाव इतना अधिक था कि आग से झुलसने वालों के ढेर लग रहे थे. भारी संख्या में एकत्र आए लोगों में से पहले ही दिन मृतकों की संख्या 329 बताई गई थी, जो आगे बढ़कर 450 को पार कर गई थी. 150 से अधिक लोग घायल थे. जिनका वर्षों तक इलाज चला, लेकिन उनका शेष जीवन घोर अन्धकार व संघर्ष में बदल गया था.
सारे क्षेत्र में शोक-दुख वातावरण हो गया था. ऐसे अनेक परिवार थे, जिनके घरों में मृतकों की संख्या एक से अधिक थी. उनके दुखों की अनंत कहानियां हैं जो रोंगटे खड़े कर देती हैं.
उपरोक्त जगह पर आज अग्निकांड स्मारक है. जिसे राजकीय स्मारक घोषित करने की मांग लंबे अरसे से सरकार के पास लंबित है.
राहत सहायता में हाथ आगे आए
पूरा परिसर मृतकों व आग से झुलसे घायलों से सटा पड़ा था. हाहाकार, चीख पुकार में लोग पीड़ितों को बचाने के लिए आगे आए. जो जहां था, वहीं राहत कार्यों में लग गया था.
कार्यक्रम देखने गए प्रमोद ने बताया कि मंच के पीछे की ओर से दीवार कूदकर लोग जान बचाने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें निकालने में सहायता करते हुए वहां नीचे पड़ी लकड़ियों का ढेर समझकर जैसे ही उन्हें उठाया तो मैं उस दृश्य को सहन नहीं कर पाया. उन्हें देख बेहोश होकर गिर पड़ा क्योंकि जिसे लकड़ी समझा वह तो एक छोटे बच्चे का शव था.
स्थानीय मोहल्ला निवासी अर्जुन ने बताया कि आग से झुलसे घायलों को हाथों से पकड़कर उठा पाना संभव नहीं था. तभी वे घरों से चादरें इकट्ठा कर के लाए और शवों, घायलों को उठा पाए. डबवाली, सिरसा के सभी अस्पताल अग्नि पीड़ित घायलों से भरे पड़े थे. बड़ी संख्या में दूर दराज के अस्पतालों लुधियाना, चंडीगढ़ में भी लोगों को ले जाया जा रहा था.
जहां एक ओर मौत का तांडव देखा जा रहा था, वहीं सिरसा डबवाली के अस्पतालों में रक्त दाताओं की लंबी लाइनें लगी थी. टैक्सी यूनियनों ने मरीजों की सहायता के लिए निःशुल्क टैक्सी देने की घोषणा कर दी थी. केमिस्ट यूनियन ने दवाइयों की सहायता तो चाय ढाबे वालों ने निःशुल्क भोजन उपलब्ध करवाना प्रारंभ कर दिया था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी राहत व सूचना केंद्र स्थापित कर अपना सहयोग किया था. मृतकों के संस्कार के लिए स्थान कम पड़ने पर खेतों का उपयोग किया गया था.
अग्नि पीड़िता 9वीं कक्षा की बालिका के अनुसार, “मैं मंच पर माइक के सामने थी. तभी पंडाल के बाईं ओर से आग लगती देखी. मैं दाई ओर से दौड़कर बाहर निकली, लेकिन तेज गति से बढ़ती आग के कारण तब तक मेरा चेहरा पूरा झुलस चुका था.”
मुख्य द्वार से दौड़कर बाहर निकले रवि के अनुसार, “मैंने बाहर निकलकर जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो पूरा पंडाल तब तक आग के गोले में बदल चुका था.”
अग्नि पीड़ितों में अधिकतर लोगों के पांव जले हुए थे. जबकि जमीन पर नारियल से बना मोटा मैट बिछा हुआ था. जो काफी मोटा होता है और जल्दी से आग नहीं पकड़ता. केवल 5 मिनट में इतनी बड़ी संख्या में लोगों का मरना और घायल होना आश्चर्यजनक था. दिल्ली की टेंट एसोसिएशन ने एक परीक्षण के निष्कर्ष के माध्यम से इतनी मृत्यु पर आशंका व्यक्त की थी. सारी परिस्थितियां किसी षड्यंत्र की ओर संकेत कर रही थी. इसलिए जांच एजेंसियों ने विभिन्न एंगल से इसकी गहन जांच पड़ताल भी की. लेकिन अंततः बिजली के शॉर्ट सर्किट से आग लगने का निष्कर्ष निकाला गया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और राहत कार्य
मैं उन दिनों सिरसा जिला का जिला प्रचारक था. हिसार की बैठक से सिरसा लौटते समय इस भयंकर आग्नि कांड की जानकारी मिली. उन दिनों मोबाइल होते नहीं थे. जैसे कैसे बिजली बोर्ड की हॉटलाइन द्वारा डबवाली में प्रो. कैलाश भसीन जी से बातचीत करके सारे विषय की गंभीरता की जानकारी मिली. उन्होंने मुझे सिरसा अस्पताल की व्यवस्थाएं देखने के लिए कहा. तभी पता चला कि संघ के नगर कार्यवाह अशोक वडेरा लापता हैं.
ऐसी भीषण आपदाओं में संघ द्वारा चलाए जाने वाले राहत कार्यों का मेरा पहला अनुभव था. लेकिन आज भी उस समय की बातें स्मरण कर मैं संघ की कार्य पद्धति पर गौरवान्वित महसूस करता हूं. उन राहत कार्यों की योजना में जहां समाज के साथ आत्मीयता झलकती देखी, वहीं छोटी छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति और आने वाली चुनौतियों का किया गया पूर्व विचार भी सपष्ट दिखाई देता था.
- सबसे पहले बस अड्डे के पास मुख्य मार्ग पर एक सूचना केंद्र स्थापित किया गया.
- सर्वेक्षण टोलियां बनाई गईं जो प्रत्येक गली मोहल्ले के प्रत्येक घर में गई. पीड़ितों की पूरी जानकारी, सही संख्या आदि की रिपोर्ट बनाकर प्रशासन को सौंपी.
- घर-घर में मौत का सन्नाटा छाया हुआ था. न टेंट वालों के पास इतना सामान था, न बाहर से आने वाले उनके परिजनों के बैठने रहने की उतनी जगह. ऐसे में संघ कार्यकर्ताओं ने गली मोहल्ले में उन शोक संतप्त परिवारों के लिए बैठने व रस्म पगड़ी के सामूहिक कार्यक्रम करने के लिए प्रेरित किया, जिससे लोगों को राहत महसूस हुई.
- उधर मृतकों के शवों की पहचान और उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्थाओं में स्वयंसेवक लगे थे.
- इसी प्रकार हरिद्वार में अस्थि विसर्जन के लिए सामूहिक वाहनों की व्यवस्था भी खड़ी की गई.
- शोक और भय के वातावरण को सामान्य करने, समाज को मानसिक दुख से बाहर निकालने के लिए स्थान स्थान पर शांति यज्ञ आयोजित किए गए.
- आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में दानदाता भारी राशि लेकर सूचना केंद्र पर आ रहे थे. संघ टोली ने अपने पास धन जमा न करने का निर्णय लिया था. इसलिए आर्थिक कमजोर परिवारों की पहचान और उनकी आर्थिक आवश्यकता को ध्यान में रख पीड़ितों की सूचियां बनाई गई थी. दानदाताओं को सीधा उन परिवारों से मिलवाया जाता था.
अशोक वडेरा की आत्म आहुति
पत्रकार व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन नगर कार्यवाह अशोक वडेरा भी कार्यक्रम में उपस्थित थे. आग लगने से जैसे ही भगदड़ मची, लोगों ने उनको माइक द्वारा भीड़ को नियंत्रित करने का प्रयास करते हुए देखा. वे भी सुरक्षित स्थान की ओर दोड़ सकते थे, लेकिन उन्होंने लोगों के जीवन बचाने में सहयोग करने को प्राथमिकता दी. इस बीच वे भी बुरी तरह से आग की चपेट में आकर मृत्यु को प्राप्त हुए. उनका शरीर इतना झुलस गया था कि उनका शव घटना के तीसरे दिन पहचाना जा सका, वो भी उनके हाथों में पहनी हुई अंगूठी द्वारा.
साधारण परिवार में जन्मे अशोक वडेरा ने बाल्यकाल में ही शाखा जाना प्रारंभ कर दिया था. तीन वर्ष तक वे संघ के प्रचारक भी रहे. संघ व सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले अशोक जी का ये बलिदान सदा स्मरण रहेगा. उनकी स्मृति को स्थायी रखने के लिए स्थानीय नागरिकों ने मंडी डबवाली में एक सरस्वती विद्या मंदिर की स्थापना की है. इसकी नींव संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह हो.वे. शेषाद्रि ने रखी थी तथा भवन का उद्घाटन विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंहल ने किया था.
– अनिल कुमार, उत्तर क्षेत्र प्रचार प्रमुख