नई दिल्ली. कम्युनिस्ट, लिबरल्स, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करने वाले दूसरे पक्ष को सुनने की हिम्मत नहीं रखते. यही कारण है कि दूसरे पक्ष को दबाने का हरसंभव प्रयास किया जाता है. अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा, सोनाली चितलकर, प्रेरणा मल्होत्रा द्वारा दिल्ली दंगों पर लिखी पुस्तक ‘Delhi Riots 2020 : The Untold Story’ को ब्लूम्सबरी इंडिया ने प्रकाशित करने से इंकार दिया है. हालांकि पूर्व में पुस्तक के प्रकाशन को लेकर बातचीत पूरी हो चुकी थी. अमेजन पर पुस्तक की प्री-बुकिंग भी शुरू हो गई थी, और पुस्तक को प्रकाशन से पहले ही अच्छा रिस्पांस मिल रहा था.
बुक पब्लिशिंग हाउस ब्लूम्सबरी ने ‘Delhi Riots 2020 : The Untold Story’ नामक पुस्तक को वामपंथियों, फ्रीडम ऑफ स्पीच ब्रिगेड के दबाव के कारण प्रकाशन से हाथ खींचें हैं. ब्लूम्सबरी की घोषणा के बाद अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने ट्वीट कर पूछा कि @BloomsburyIndia क्या हुआ? हमने आपको पुस्तक का प्रारूप भेजा, जिसे आपने स्वीकृत किया, कांट्रेक्ट साइन हुआ, उस समय तक कोई समस्या नहीं थी. जब वामपंथी-फासिस्ट ब्रिगेड ने ट्वीट किये तो @BloomsburyUK ने दबाव बनाया. तो अंतरराष्ट्रीय ब्रिगेड तय करेगी कि भारत के पाठक क्या पढ़ेंगे?
@BloomsburyIndia what happened?
-We sent draft of book which U approved
-We signed contract, exchanged emails
There was no problem.
-But when leftist-fascist lobby tweeted, @BloomsburyUK
pressurized u to withdraw
-Will international pressure decide what Indian readers will read? pic.twitter.com/dd91QDugjt— Monika Arora (@advmonikaarora) August 22, 2020
पब्लिशिंग हाउस का दोगला रवैया भी देखें, इसी पब्लिशिंग हाउस ने सीएए के विरोध को बढ़ावा देते हुए ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखित एक पुस्तक को पब्लिश और प्रोमोट किया था, जिसने दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपित ताहिर हुसैन को निर्दोष बताया था. ब्लूम्सबरी इंडिया ने ज़िया उस सलाम और उज़मा औसफ़ द्वारा लिखित पुस्तक “शाहीन बाग : फ्रॉम ए प्रोटेस्ट टू ए मूवमेंट” प्रकाशित की है. उस किताब में शाहीनबाग के पूरे घटनाक्रम का उल्लेख किया गया है. पुस्तक में पिछले साल नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ किए गए विरोध प्रदर्शन के बारे में बताया गया है.
ब्लूम्सबरी द्वारा प्रकाशन से इंकार करने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लेखिका अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने कहा, यदि एक प्रकाशक मना करता है, तो दस और आ जाएंगे. बोलने की आज़ादी के मसीहा इस किताब से डरे हुए हैं.
दुनिया की कोई भी शक्ति इस पुस्तक को आने से नहीं रोक सकती है और लोग इसे पढ़ना चाहते हैं. तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ठेकेदार डरते हैं कि पुस्तक यह उजागर करेगी कि दंगों के लिए प्रशिक्षण कैसे दिया गया था और दुष्प्रचार तंत्र इसमें शामिल था.
दिल्ली दंगों की जांच एनआईए द्वारा की जानी चाहिए. ये दंगे सुनियोजित थे. पुस्तक को आठ अध्यायों और पांच अनुलग्नकों में विभाजित किया गया है, जो दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जमीनी रिसर्च पर आधारित हैं.