भोपाल. जनजातीय सुरक्षा मंच द्वारा भोपाल के भेल दशहरा मैदान में डीलिस्टिंग गर्जना रैली का आयोजन किया जा रहा है. इस संबंध में मंच के पदाधिकारियों ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता में जानकारी प्रदान की. जनजातीय सुरक्षा मंच के क्षेत्र संयोजक कालू सिंह जी मुजाल्दा और प्रांत संयोजक कैलाश जी निनामा ने कहा कि पिछले 70 वर्षों में जनजाति समाज से मतांतरित होने के बाद जनजातीय अधिकारों का लाभ उठाने वालों के विरुद्ध यह रैली है. मतांतरित होने के बाद ऐसे लोग जनजातीय बंधुओं के अधिकारों का लाभ न उठा पाएं, इस हेतु डीलिस्टिंग गर्जना रैली आयोजित की जा रही है. रैली में सहभागिता करने के लिए प्रदेश के 40 जिलों से जनजातीय बंधु आएंगे.
उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में क्रमश: अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अखिल भारतीय एवं राज्यवार आरक्षण एवं संरक्षण के लिए महामहिम राष्ट्रपति महोदय सूची जारी करते हैं, ऐसी सूचियां सन् 1950 में जारी हुई हैं. ये सूची जारी होने के आधार पर ही संविधान के अनुसार SC/ST वर्गों के लिए हितकारी प्रावधान, सरकारों द्वारा लागू किए जाते हैं.
एक ओर जहां, अनुसूचित जाति हेतु महामहिम राष्ट्रपति ने जब ये सूची जारी की तब, धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान को SC में सम्मिलित नहीं किया गया. वहीं दूसरी ओर अनुसूचित जनजातियों की सूची में उक्त दोनों धर्मांतरितों के लोग बाहर नहीं करके, ST में सम्मिलित रखे गए. मूल रूप से यह एक बड़ी विसंगति है, एवं संविधान के कल्याणकारी/ न्यायकारी उद्देश्य के विपरीत होकर, मूलत: बहुसंख्यक ST के लिए यह उचित नहीं है.
यह जान लेना आवश्यक है कि धर्मांतरण के उपरांत जनजाति सदस्य Indian Christian कहलाते हैं जो कि कानूनन अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं, इस प्रकार धर्मांतरित ईसाई व मुस्लिम दोहरी सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं.
इस संबंध में सन् 1968 में डॉ. कार्तिक बाबू उरांव, पूर्व सांसद ने संवैधानिक/कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन कर एक पुस्तिका 20 वर्ष की काली रात का लेखन भी किया. कार्तिक बाबू उरांव ने अपने अध्ययन में पाया कि 5% धर्मांतरित ईसाई अखिल भारतीय स्तर पर कुल ST की 62% से अधिक नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे हैं. साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर अनुपातिक था. इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ, जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 में धर्मांतरित लोगों को बाहर करने के लिए संसद कानून द्वारा राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश में संशोधन किया जाना जरूरी है.
ST की पात्रता के लिए विशिष्ट प्रकार की संस्कृति जरूरी है. यहां विशिष्ट प्रकार की संस्कृति का आशय पूजा पद्धति से ही संस्कृति है. यह भारतीय मत है एवं भारतीय आदि विश्वास, आदि संस्कृति व आदिवासी संस्कृति का सार है. इसी आधार पर भी संशोधन का दावा रहा है. यह प्रश्न विकास की प्रक्रिया में सबसे गरीब, दूरस्थ निवासी और बुनियादी समस्याओं से जूझती लगभग 12 जनजातियों का है.
सन् 2000 की जनगणना और 2009 की डॉ. जे. के. बजाज का अध्ययन भी इस गैर आनुपातिक लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर करते हैं. धर्मांतरित लोग अनुसूचित जनजातियों के अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं और दोहरा लाभ ले रहे हैं.
इस क्रम में 2006 में जनजाति सुरक्षा मंच का गठन किया गया और धर्मांतरित ईसाई एवं मुसलमान को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने के एक सूत्रीय मांग को आगे बढ़ाया गया. इन प्रयासों के तहत 2009 में महामहिम राष्ट्रपति महोदय को 28 लाख पोस्टकार्ड लिखे गए और सुरक्षा मंच द्वारा इस हेतु आग्रह – निवेदन भी किया गया.
2020 में 448 जिलों में जिला कलेक्टर एवं संभागीय आयुक्त के माध्यम से तथा विभिन्न राज्यों के राज्यपाल व मुख्यमंत्रियों से मिलकर, राष्ट्रपति महोदय को ज्ञापन द्वारा निवेदन किया गया. 2021 में डॉ. कार्तिक उरांव के जन्मदिवस, 29 अक्तूबर के अवसर पर विस्तृत चर्चा की गई. अब तक के प्रयासों पर विस्तृत चर्चा एवं मंथन के उपरांत, एक महाअभियान शुरू किया है, जो सड़क से संसद तक चल रहा है.
जनजाति सुरक्षा मंच ने उक्त विसंगति को सभी के समक्ष रखा है. इस क्रम में ग्राम संपर्क कर, देशभर में जिला सम्मेलनों का भी आयोजन किया जा रहा है. विगत दिनों दिल्ली में जनजाति सुरक्षा मंच के कार्यकर्ताओं ने सांसद संपर्क अभियान किया है, जिसमें 442 सांसदों से संपर्क कर De-listing का कानून बनाने का आग्रह किया है.
इस एक सूत्रीय कार्यक्रम को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच, सड़क से संसद तक एवं सरपंच से सांसद तक आंदोलन, संघर्ष एवं संपर्क का अभियान चला रहा है. जनजाति सुरक्षा मंच तब तक संघर्ष करेगा, जब तक कि धर्मांतरित ईसाई और मुसलमानों को ST की पात्रता और परिभाषा से बाहर नहीं निकाला जाता, और इस हेतु संसद द्वारा 1970 से लंबित कानून नहीं बना दिया जाता.