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जनसंख्यकीय असंतुलन और भारतीयता का भविष्य – 2

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जयराम शुक्ल

स्वतंत्रता प्राप्ति के पाँच वर्ष पश्चात ही एकात्ममानव दर्शन के प्रणेता और अन्त्योदय के विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने चेताया था कि निकट भविष्य में भारत में रहने वाले मुसलमान खुलकर पाकिस्तान के प्रति अपने भाव व्यक्त करने लगेंगे, ऐसी स्थिति किसी भी सरकार के लिए असहज होगी.

आज कश्मीर तो कल दूसरे प्रांत भी…

जनसंख्यकीय आँकड़ों को यथार्थ के धरातल पर रखकर विश्लेषण करें तो सीमावर्ती प्रांतों की चिंतनीय स्थिति समझ में आती है. जम्मू-कश्मीर इन स्थितियों का सबसे भयावह माडल है. दशकों, सदियों से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक जिस विस्तृत भू-भाग का राजा हिन्दू रहा हो, वहां आज हिन्दू सबसे दीनहीन और अल्पसंख्यक है. स्वतंत्रता के बाद जो अपेक्षाएं, आकांक्षाएं थीं उस पर कुठाराघात  हुआ.

पाकपरस्त इस्लामिक आतंकवाद ने लंबे समय से हिन्दुओं के वंशनाश का अभियान चलाया. जो रह गए वे मारे गए, जो पुरखों की विरासत का मोह छोड़कर वहां से निकले, वे आज अपने ही देश में शरणार्थी हैं. 2011 के आँकड़ों के अनुसार जम्मू-कश्मीर की कुल जनसंख्या में 68 प्रतिशत मुसलमान हैं. यदि जम्मू से अलग सिर्फ कश्मीर घाटी की बात करें तो यहाँ यह आँकड़ा 95 प्रतिशत है. क्या आपको यह नहीं लगता कि यही आँकड़ा वहाँ भारत के विरोध का मूल कारण बना हुआ है.

धारा 370 हटाए जाने के बाद भी आतंकवाद की घटनाएं थमी नहीं हैं. यहां जब तक जनसंख्यकीय संतुलन नहीं बनेगा, तब तक समस्या का हल निकलने वाला नहीं. कश्मीर में वहां के मूलनिवासी पंडितों के पुनर्वास के साथ ऐसे यत्न करने होंगे कि हिन्दू-मुस्लिम के बीच कम से कम 50-50 प्रतिशत की बसाहट रहे. यहाँ के संसाधनों पर अन्य राज्यों की भाँति देश के प्रत्येक नागरिक का अधिकार होना चाहिए. केरल का नागरिक वहां बस सके और कश्मीर का रहवासी भी अपनी अभिलाषा के अनुरूप देश का कोई भू-भाग अपने गुजरबसर के लिए चुन सके.

असम में मुसलमानों की आबादी कुल की 35 प्रतिशत से ज्यादा है. माँ कामाक्षी की पुण्यभूमि पर झोपड़पट्टीनुमा घरों के ऊपर लहराते चाँद सितारों वाले हरे झंडे अपनी अलग कहानी कहते हैं. भारत के चुनावी लोकतंत्र में 35 प्रतिशत के वोट का आँकड़ा केन्द्र व राज्यों में सरकार बनाने के लिए पर्याप्त है. असम बांग्लादेशी घुसपैठियों से आबाद है. नेताओं की स्वार्थी राजनीति ने इन्हें अपना वोट बनाने के लिए मातृभूमि का सौदा कर लिया. कश्मीर के बाद दूसरा सबसे बड़ा सिरदर्द असम है. जो कश्मीरी कर रहे हैं वो कल असम के यही लोग करेंगे. वे पाकपरस्त हैं, तो ये बांग्लादेश परस्त बन जाएंगे. क्योंकि इनकी पंथीय एकता यही कहती है. इनके लिए विश्व का हर गैर मुसलमान आज भी काफिर है, कल भी रहेगा.

27 प्रतिशत की मुस्लिम आबादी वाले पश्चिम बंगाल ने इस विधानसभा चुनाव में अपना रंग दिखा दिया. चुनाव पूर्व और चुनाव बाद जिस तरह खून-खराबा, लूटपाट हुई वह दुर्दांत सुहरावर्दी के दौर की याद दिलाता है. यहां की राजनीति में मुसलमानों की जड़ें गहरी हैं. इन्हें पहले कांग्रेस ने पाल-पोसकर अपना वोट बैंक बनाया, फिर वामपंथी राजनीतिक दलों ने अपना राजनीतिक हथियार बनाया और आज ये त्रृणमूल कांग्रेस की आत्मा बन बैठे हैं. जिस तरह पाकिस्तानी आतंकवादियों की शरणस्थली कश्मीर है, ठीक वैसे ही बांग्लादेशी चरमपंथियों के लिए बांग्लादेश.

देश में आईएसआईएस के कनेक्शन का सबसे पहले यदि कहीं पता चला तो वह केरल है. यहां मुसलमानों की आबादी 27.7 प्रतिशत है. 16 से ज्यादा ऐसे जिले हैं, जहां यह आंकड़ा 50 से ऊपर बैठता है. संभवतः इसीलिए राहुल गाँधी वायनाड से चुनाव लड़ने पहुँचे और जीते भी. केरल में मिशनरीज़ और खाड़ी देशों का पेट्रो डॉलर अभी भी अपना रसूख दिखा रहा है. शंकराचार्य की पुण्यभूमि में कब उनके अनुयायी अल्पसंख्यक बनकर रह जाएं, कह नहीं सकते. मिशनरीज़ और मदरसों के लक्ष्य में वही क्षेत्र पहले रहता है जो कभी अपनी सनातनी संस्कृति के लिए जाना जाता रहा है. 1983 में केरल के ही एक शोधार्थी केसी जाचरिया के एक अध्ययन के अनुसार यहाँ एक मुस्लिम महिला का प्रजनन औसत 4.1 है, जबकि हिन्दू महिला का 2.9. यानि कि यहाँ प्रजनन दर में लगभग दुगने का अंतर है. यह दुगना आँकड़ा चक्रवृद्धि ब्याज की तरह बढ़ते हुए कब मूलधन से ऊपर आ जाए, कोई समाजशास्त्री ही इसका आँकलन कर सकता है.

देश की हिन्दी पट्टी बिहार और उत्तर प्रदेश को बाहुबलियों और सरकार के समानांतर माफियाराज चलाने वाले गिरोहों के बारे में जाना जाता है. यदि खोजें तो पाएंगे कि शीर्ष 10 में कौन लोग विराजमान है.. इसलिए ज्यादा बताने की आवश्यकता नहीं. उत्तरप्रदेश की कुल जनसंख्या में मुस्लिम मतावलंबियों का प्रतिशत भले ही 19.3 का हो, लेकिन संख्या की दृष्टि से साढ़े चार करोड़ से ज्यादा है. मुगल आक्रांताओं ने सबसे ज्यादा यहीं विध्वंस किया. मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाईं और शहरों के नाम बदलकर वहां इस्लाम की पट्टेदारी लिख दी. दुर्भाग्य देखिए जिस लुटेरे बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाया. उसी के नाम से बिहार में आज भी बख्तियारपुर है.

बिहार में मुस्लिमों की जनसंख्या 16 प्रतिशत है, पर पश्चिम बंगाल के रास्ते यहां आने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहंगिया मुसलमानों की गणना अभी दर्ज होना बाकी है. यहां वास्तविक जनसंख्या 20 प्रतिशत से ज्यादा बैठती है.

जनसंख्या में ऐसी वृद्धि एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है और इसे शरिया और मजहब के साथ जोड़ दिया गया है. इतिहास की ओर पलटकर देखें तो यह पंक्ति कितनी भयावहता के साथ सत्य का पर्दाफाश करती है कि – जहाँ हिन्दू घटा, वहां देश बँटा…

पड़ोसी देशों में हिन्दुओं की स्थिति

भारत से काटकर पाकिस्तान बनाए जाने के पीछे जनसंख्या बल ही था. अँग्रेजों ने जाति और पंथ के आधार पर जनगणना जारी कर फूट डालो और बाँटो की नीति पर अमल किया. पाकिस्तान की माँग का आधार ही मुस्लिम आबादी रही है. जब पंथ के आधार पर देश बाँटा गया तो कायदे से दोनों ओर की हिन्दू मुस्लिम आबादी का शत-प्रतिशत स्थानांतरण होना चाहिए था. लेकिन यहाँ भी एक दूरगामी रणनीति रची गई, जिसे तत्कालीन कांग्रेस की सरकार और उसके नेताओं ने सहारा दिया. बहरहाल, अगस्त 1947 में बँटवारे के समय साढ़े चार करोड़ मुस्लिम पाकिस्तान गए वहाँ से महज 55 लाख हिन्दू व सिक्ख भारत आए. जबकि साढ़े तीन करोड़ मुस्लिमों की आबादी भारत में ही रह गई. यह उस समय की कुल आबादी लगभग 37 करोड़ के मान से साढे़ आठ से नौ प्रतिशत की थी, जबकि 2011 की जनगणना के हिसाब से भारत में मुसलमानों की आबादी 14.2 प्रतिशत यानि 17 करोड़ 20 लाख के आसपास है. सन् 1947 से अब तक मुस्लिम जनसंख्या लगभग 6 प्रतिशत बढ़ गई.

अब पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति देखते हैं. बँटवारे के बाद 1951 की जनगणना में पश्चिमी पाकिस्तान (आज का पाकिस्तान) में 1.6 प्रतिशत हिन्दू बचे थे, जबकि पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हिन्दुओं की आबादी 22.02 प्रतिशत थी. पाकिस्तान में आज की स्थिति में वहाँ हिन्दुओं की जनसंख्या अब 1 प्रतिशत भी नहीं बची. जबकि बांग्लादेश में 2011 की जनगणना के हिसाब से महज 10.2 प्रतिशत हिन्दू ही बचे थे. यानि बांग्लादेश में हिन्दू जनसंख्या में 12 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. अब बामियान बुद्ध के देश अफगानिस्तान को लें, रिपोर्ट्स बताती हैं – 70 के दशक में यहां हिन्दू-सिक्खों की आबादी 7 लाख के करीब थी. 2016 के आँकड़ों के अनुसार 1350 हिन्दू बचे थे. इंटरनेट पर उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार 2020 में वहां सिर्फ 50 हिन्दू नागरिक बचे. अमेरिकी थिंकटैंक प्यू रिसर्च की एक रिपोर्ट बताती है कि अब वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब विश्वभर की कुल मुस्लिम आबादी की सबसे ज्यादा संख्या भारत में होगी.

तथ्य बताते हैं कि जिन पड़ोसी मुस्लिम मुल्कों में हिन्दू थे, उनकी संख्या लगातार शून्य की ओर बढ़ती जा रही है और इसके उलट भारत में मुस्लिम आबादी की बढ़ोतरी दिनदूना रात चौगुना होती जा रही है. यही चिंता का विषय है. पहले से ही आबादी का बोझ झेल रहे देश में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से पीड़ित-दमित हिन्दू तो आए ही.. इन देशों से बड़ी भारी संख्या में अवैध तरीके से मुस्लिम आबादी भी घुस आई. अब जब राष्ट्रीय नागरिक पंजिका की बात होती है या भारत की नागरिकता पाने के नए कानून के अमल की बात उठती है. तो शहर-शहर में शाहीनबाग सजा दिए जाते हैं. जनजीवन खतरे में डाल दिया जाता है. मजहबी वोट की राजनीति करने वाले नामधारी दल ताल ठोकते हुए सड़क पर आ जाते हैं. कथित बुद्धिजीवी भड़काते हैं कि सर्वे के लिए सरकारी लोग आएं तो सही नाम बताने की बजाय रंगा-बिल्ला बताइए.

अखंड भारत की बात..

1876 के पहले यानि सन 1857 की क्रांति के समय अफगानिस्तान, भूटान, श्रीलंका और बर्मा (म्यामांर) भारत के हिस्से थे. 1947 में पाकिस्तान के अलग होने के पहले 1937 में बर्मा, 1935 में श्रीलंका, 1906 में भूटान भारत से अलग हुए. जब हम अखंड भारत की बात करते हैं तो भारतमाता की यही तस्वीर सामने आती है. यदि हम वृहत्तर भारत साम्राज्य की बात करें, जहाँ सनातन धर्म और हिन्दू संस्कृति का फैलाव था तो उसमें मलेशिया, फिलीपींस, थाईलैण्ड, दक्षिणी वियतनाम, कंबोडिया और इंडोनेशिया भी शामिल थे. अब इनमें से आधे देशों में बौद्ध हैं, यद्यपि इनकी पुण्यभू आज भी भारत ही है और आधे में मुसलमान हैं, जहाँ कभी हिन्दू संस्कृति का वर्चस्व रहा है और उसके अवशेष आज भी वहां है.

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