भोपाल (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने कहा कि शिवगंगा में शिव भी हैं, गंगा भी है और संयोग से महेश भी है. भगीरथ शब्द से आशय एक ऐसे प्रयत्न से है, जिसमें कुछ असीम है, जिसमें सफलता प्राप्त करना है. सगर से जो प्रयत्न प्रारम्भ हुआ, वह भगीरथ के समय सफल हुआ. सरकार्यवाह गिरीश प्रभुणे द्वारा लिखित पुस्तक “नवभगीरथ” के विमोचन कार्यक्रम में संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि जल का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता, जल का मूल्य जीवन है. उसी प्रकार गांव, वनस्पति, जैविक कृषि का कोई मूल्य नहीं है. उसका मूल्य हो भी तो परिश्रम हो सकता है और यह परिश्रम महेश शर्मा जी ने किया है. झाबुआ में परिवर्तन लाने के लिए जो प्रयास किया जा रहा है, उसकी सफलता के विषय में चिंता नहीं वरन् उसकी सफलता के विषय में विश्वास रख कार्य करने की आवश्यकता है. गांवों के विकास से ही राष्ट्र का विकास संभव है. महेश शर्मा जी ने झाबुआ में जो है, उसे ही वहां के नागरिकों को दिखाने का प्रयास किया है. गिरीश प्रभुणे जी ने उस भगीरथी प्रयास का कृतिरूप में दर्शन कराने का प्रयास किया है.
सरकार्यवाह जी ने कहा कि गिरीश जी ने इसे मराठी में लिखा और मोहन जी बांडे ने इसका हिंदी अनुवाद किया और मराठी संस्करण से पूर्व हिंदी अनुवाद का आना सौभाग्य की ही बात है. जिससे पुस्तक को पढ़ना सभी के लिए सुलभ होगा.
गिरीश प्रभुणे ने कहा कि पुस्तक लिखने में मुझे काफी कठिनाई हुई. लगा हम जिन पर लिख रहे हैं, उन्हें दुनिया में वंचित, पीड़ित कहते हैं. किंतु जब उनके पास गए तो पता चला कि वे तो आधुनिक हैं. उपनिषद कालीन व्यवस्था उनके पास है, किंतु वैचारिक आक्रमण ने उनके गौरव को ध्वस्त कर दिया. महेश जी ने उसी गौरव का पुनर्जागरण किया. उन्होंने वनवासी समाज को ऋतु, जल, नक्षत्र के विषय में बताया और वे गौरव जागरण के नवभगीरथ बन गए.