धनतेरस पर भगवान धनवंतरी की पूजा की परंपरा है. भगवान धन्वंतरी आयुष्य के देवता हैं, जिससे धनतेरस का संदेश स्पष्ट हो जाता है. भारतीय समाज जीवन में एक पद या कहावत पुराने समय से चली आ रही है. “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में हो माया” वैसे तो पूरी दीपावाली, लक्ष्मी पूजा, धन- संपत्ति पूजन के लिए ही है, पर इसका शुभारंभ धनतेरस के दिन आरोग्य के दाता भगवान धन्वंतरि की पूजा से होता है. फिर कुबेर की पूजा रूप चौदस, लक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा और भाई दूज होती है.
कोरोना काल में हमने ये समझ भी लिया है. रोगी होने के बाद धन-संपत्ति कुछ काम नहीं आए. लोग धन दौलत लिए घूमते रहे अस्पतालों में उन्हें जगह नहीं मिली. यदि शरीर स्वस्थ है तो ही आप धन संपत्ति भौतिक सुख सुविधाओं का आनंद उठा सकते हैं. यदि शरीर अस्वस्थ है तो मन को भौतिक संपदाएं, आनंद उत्सव सब कुछ रसहीन लगता है. मन बेचैन बना रहता है, मन तभी सुखी रह सकता है, जब तन स्वस्थ हो. पर हम यह भी समझते हैं, शरीर भी तभी स्वस्थ रह सकता है, जब हमारा मन स्वस्थ हो. स्वस्थ मन और स्वस्थ शरीर एक सिक्के के दो पहलू हैं.
मन यदि चिंता ग्रस्त है, भय व शोक, आशंकाओं से भरा है तो उसका दुष्प्रभाव शरीर पर पड़ता ही है. हमारी जीवनशैली ऐसी हो कि मन को तनाव में ना डालें, क्योंकि शरीर श्रम को तो सहन कर लेता है, पर तनाव से नाना प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इसलिए भारतीय सनातन ज्ञान हमें बताता है कि धन कमाने में हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? किस प्रकार से धन कमाना चाहिए?
आज जिस जीवन शैली को हमने अपना लिया है, उससे धन कमाने की अंधी दौड़ प्रारंभ हो गई है. हमने अपनी जरूरतें बहुत बड़ा ली हैं. जिन वस्तुओं की हमें आवश्यकता नहीं है, दिखावा और एक दूसरे को दिखाने की स्पर्धा में उन्हें भी प्राप्त करने की आकांक्षा है. जिससे हमारा समय और सुकून दोनों छिन गए हैं. ऊपर से आकांक्षाओं के पूरा न होने से हीन भावना और प्राप्त कर लेने से मन में घमंड उत्पन्न हो रहा है जो मन की व्याधियां है. क्रोध और व्यग्रता ने धैर्य के लिए स्थान ही नहीं छोड़ा. और इन सब का प्रभाव काया (शरीर) झेल रही है.
ईश्वर ने जिस काया को हमें आध्यात्मिकता की तरफ ले जाने के लिए दिया है, जिससे हम शांति और मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं. उसे हमने रोगी बना लिया है. स्वस्थ जीवन शैली और आरोग्य हमारा लक्ष्य होना चाहिए. अपनी दिनचर्या को ऐसा बनाएं कि कुछ समय शरीर की देखभाल के लिए हो, कुछ मन की देखभाल के लिए और कुछ पेट की.
तीस चालीस मिनिट टहलने के लिए दिए जा सकते हैं. यदि घूमने के लिए जगह नहीं है तो घर में ही कदम ताल की जा सकती है, कुछ सूक्ष्म व्यायाम किए जा सकते हैं, मन और सांसों को संभालने के लिए प्राणायाम कर सकते हैं, ध्यान कर सकते हैं. शरीर पर खाने पीने की वस्तुओं का अत्यधिक दुष्प्रभाव पड़ रहा है. डब्बा बंद सामग्री यानी पैकेज्ड फूड की सुविधा ने जीवन को संकट में डाल दिया है. जिस प्रकार के रसायनों को प्रिजर्वेटिव्स के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, वह भयंकर है. तीनों सफेद जहर मैदा, शकर और नमक का उपयोग न्यूनतम करें. मोटे अनाजों के प्रयोग को बढ़ाएं, जैविक उत्पादों का उपयोग बढ़ाएं. जिससे जैविक खेती को बढ़ावा मिले और जहरीले भोजन से समाज बच सके. भयंकर रोग गांव – गांव तक पहुंच गए हैं. कुल मिलाकर धन की चाह हमें निर्धनता की ओर ले जा रही है. एक वक्त था अस्पताल और दवा की दुकानें इक्का-दुक्का थीं. अब गली-गली जिम खुले हैं, पग पग पर खाने के रेस्टोरेंट और दुकानें. दुष्परिणाम अस्पताल और दवा की दुकानें भीड़ से पटी पड़ी हैं.
धन कमाना अच्छा है, पर शरीर का ध्यान रखते हुए क्योंकि यही शरीर, धर्म का साधन है. ऋषि मंत्र और उपनिषद बताते हैं – “शरीर माध्यम, खलु धर्मसाधनम्” अर्थात शरीर ही सभी धर्मों को पूरा करने का साधन है. यानी शरीर को स्वस्थ बनाए रखना जरूरी है. इसी के होने से सभी का होना है. अतः शरीर को निरोगी रखना हमारा दायित्व है. अन्यथा हमारी स्थिति उस कौवे की तरह हो जाएगी जो नदी में तैरती हाथी की लाश पर भोजन के आनंद के लिए बैठ जाता है, कुछ दिन तक प्रतिपल आनन्द उठाता है, रोज मांस नोचता है, मीठा पानी पीता है और हाथी पर ही सो जाता है. एक दिन नदी अपने गंतव्य सागर में मिल जाती है और चारों तरफ पानी ही पानी वह भी खारा. अब कौवा उड़कर कहीं नहीं जा सकता और रोते-रोते देह त्याग देता है. अपने तात्कालिक सुखों के लिए कहीं हम भी तो अपने जीवन को दांव पर नहीं लगा रहे और रोगों के भंवर सागर की ओर तो नहीं जा रहे.
भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है. समुद्र मंथन के समय कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि जी हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे. अमृत हमारे जीवन में भी प्रकट हो, इसके लिए आवश्यक है कि हम अपनी दिनचर्या और जीवनशैली को ऐसा बनाएं कि हमें आयुष्य प्राप्त हो. हमारे जीवन में अमृत छलके, जिससे समाज में आरोग्य का प्रकाश फैले.
अखिलेश श्रीवास्तव