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कारोबार के साथ समाज सेवा में भी अग्रणी थे महाशय धर्मपाल

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नई दिल्ली. मसालों की दुनिया के बेताज बादशाह महाशय धर्मपाल गुलाटी के निधन से एक बड़ी सामाजिक हस्ती भी दुनिया से चली गई, जो समाज के भले के लिए हर काम में आगे रहती थी.

दुनिया उनको मसाला किंग के रूप में जानती है, पर एक सच यह भी है कि समाज सेवा में भी अग्रणी रहते थे. आर्य समाज से जुड़े हुए थे. वे समाज की भलाई के काम में लगे रहते थे और अपना धन व समय भी लगाते थे. बाबा रामदेव के साथ भी सामाजिक आयोजनों में वह अक्सर दिख जाते थे. पाकिस्तान के सियालकोट से बंटवारे के बाद भारत आने वाले 98 साल के धर्मपाल गुलाटी अपने मसालों का विज्ञापन भी खुद ही करते थे.

वे समाज के हर वर्ग के लोगों से सहज मिलते थे. लगभग उसी तरह वह पत्रकारों से भी मिलते थे और अक्सर अपने संघर्ष की कहानी बताते थे. उन्हें काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था, जब वह सियालकोट से बंटवारे के बाद भारत आए थे. जब उन्होंने कारोबार शुरू किया तो उस समय उनकी जेब में 1500 रुपये थे. पाकिस्तान से भारत आने के बाद उन्होंने 650 रुपये में तांगा खरीदा था, जिसे वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से कुतुब रोड और करोल बाग से बाड़ा हिंदू राव के बीच चलाया करते थे.

पाकिस्तान में 1923 में पैदा हुए महाशय चुन्नीलाल और माता चानन देवी के पुत्र महाशय धर्मपाल गुलाटी ने 1933 में 5वीं कक्षा तक पढ़ाई की और उसके बाद पढ़ाई छोड़ दी. सन् 1937 में पिता का हाथ बंटाने लगे. इस बीच उन्होंने साबुन का कारोबार किया और नौकरी भी की. कपड़े और चावल का भी कारोबार किया, लेकिन कोई कारोबार नहीं टिका. उसके बाद वापस पारिवारिक मसालों के कारोबार में लौटे. बाद में दिल्ली में अजमल खां रोड, करोल बाग में एक दुकान खरीदी और अपने परिवार के मसाले का बिजनेस शुरू किया, जिसे महाशयां दी हट्टी (छोटी दुकान) के नाम से जाना जाता था.

परिवार के अनुसार उन्होंने अपनी दिनचर्या कभी नहीं छोड़ी. वह सुबह 4 बजे उठकर कसरत करते थे और सैर करने जाते थे. लगभग 2 हजार करोड़ रुपये का कारोबार करने वाले महाशय बेहद संयमित जीवन जीते थे. बहुत कम लोगों को पता है कि वह अपनी कंपनी के विज्ञापनों में कैसे और क्यों आए. दरअसल, एक विज्ञापन में दुल्हन के पिता की भूमिका निभाने वाले ऐक्टर मौके पर नहीं पहुंचे तो डायरेक्टर ने कहा कि वह पिता की भूमिका निभा दें. महाशय जी को भी लगा कि इससे कुछ पैसे बच जाएंगे, इसलिए वह तैयार हो गए. तबसे जीवन पर्यन्त वह एमडीएच के टीवी विज्ञापनों में हमेशा दिखते रहे. अपने कर्मचारियों के प्रति बेहद प्यार और लगाव रखने वाले महाशय जी को सरकार ने पद्मभूषण से सम्मानित किया था.

महाशय धर्मपाल के निधन पर उनके ससुराल में भी शोक

धर्मशाला. महाशय धर्मपाल के निधन से उनके ससुराल धर्मशाला में भी शोक की लहर है. उनकी पत्नी का पूर्व में ही देहात हो चुका है. धर्मपाल व लीलावती का विवाह सियालकोट, पाकिस्तान में ही हो गया था और दोनों परिवारों को बंटवारे के वक्त भारत आना पड़ा था. उनका ससुराल धर्मशाला में आकर रहने लगा था. स्वर्गीय नत्थू राम खरवंदा धर्मपाल गुलाटी के ससुर थे, वे धर्मशाला में रहते थे. स्वर्गीय ओम प्रकाश खरवंदा उनकी पत्नी के भाई हैं. धर्मशाला में स्व. ओम प्रकाश खरवंदा के बेटे सुमेश खरवंदा व उनकी पत्नी पूनम खरवंदा, दूसरे बेटे पंकज व उनकी पत्नी बीना परिवार सहित यहां रह रहे हैं. सुमेश खरवंदा व पंकज खरवंदा ने बताया कि वे सभी बुआई जी के देहांत से आहत हैं. आज अंत्येष्टि में नहीं पहुंच पाए. इसलिए अब चौथे में दिल्ली जाएंगे. उनके बुआई अक्सर यहां पर आते रहते थे. धर्मशाला उन्हें पसंद था. दो साल पहले ही उनके बेटे की शादी में स्व. महाशय धर्मपाल धर्मशाला आए थे. भारत विभाजन के बाद दोनों परिवार दिल्ली आ गए थे, जिसमें उनका परिवार धर्मशाला में बस गया था व बुआई जी का परिवार दिल्ली में.

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