नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) संस्थान के पूर्व महानिदेशक ब्रज बासी लाल से उनके आवास पर भेंट की और उन्हें शॉल देकर सम्मानित किया. केंद्र सरकार ने उन्हें इस वर्ष पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया है.
उन्होंने ही तथ्यों सहित प्रमाणित किया था कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर विवादित ढांचे के नीचे मंदिर के अवशेष हैं. 1975-76 के बाद से प्रो. बीबी लाल ने रामायण से जुड़े अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, नंदीग्राम और चित्रकूट जैसे स्थलों की खुदाई कर अहम तथ्य दुनिया तक पहुंचाए हैं. उनके नाम पर 150 से अधिक शोध लेख दर्ज हैं. उनका जन्म झांसी में जनवरी 1921 में हुआ था. यह उनका जन्मशताब्दी वर्ष भी है. सरसंघचालक ने भेंट के दौरान विभिन्न विषयों पर चर्चा की.
हम महाराज मनु के समय आए जल प्रलय की घटना के बारे में सुनते और पढ़ते आए हैं, उसे लेकर बीबी लाल ने शोध के पश्चात बड़ा खुलासा किया था. बीबी लाल ने बताया था कि मनु के समय आए जल प्रलय की घटना कोई काल्पनिक या मिथक नहीं है. बल्कि ये सत्य घटना है.
उन्होंने अपने रिसर्च पेपर में दावा किया कि जल प्रलय को लेकर हम बचपन से लेकर आज तक जिस पौराणिक कथा को सुनते आए हैं, वह प्रमाणिक है न कि मात्र कोई सुनी सुनाई दंत कथा. उन्होंने हाल में जल प्रलय को लेकर रिसर्च पेपर भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित एक सेमिनार (मार्च 2017) में प्रस्तुत किया था. शोध पत्र में पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर मनु के समय आए जल प्रलय को सरस्वती नदी के गायब होने से संबंधित है.
रिसर्च पेपर में बताया था कि पुरातात्विक रूप से सरस्वती की भारी बाढ़ 2000-1,900 ईसा पूर्व के आसपास या फिर दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के पहले चरण में आई थी. मनु के जल प्रलय का भी ठीक यही वक्त था जो दूसरी सहस्राब्दि ईसा पूर्व के शुरू होने से पहले और ऋग्वेद के बाद का है.
बीबी लाल की पुस्तक राम, उनकी ऐतिहासिकता, मंदिर और सेतु साहित्य, पुरातत्व और अन्य विज्ञान को लेकर काफी चर्चित रही थी. उसमें उन्होंने अयोध्या के विवादित ढांचे के नीचे हिन्दू मंदिर का ढांचा होने की बात कही थी. इसे लेकर काफी चर्चा हुई थी और इस पुस्तक ने अयोध्या विवाद से जुड़ी बहस की दिशा ही बदल दी थी.
गौरतलब है कि कुछ समय पहले तक वामपंथी इतिहासकार सरस्वती नदी को भी मिथक मानते रहे हैं. लेकिन जब इसको खोज निकाला और वैज्ञानिक आधार पर उसकी पुष्टि हो गई तो अब जाकर दुनिया सरस्वती के अस्तित्व को स्वीकार करने लगी है.