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पर्यावरण अनुकूल परियोजनाओं को लागू किया जाना चाहिए..!

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सुरेश पंडित (कंपनी प्रबंधन सलाहकार)

मनुष्य के जन्म से पहले, पृथ्वी पर प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय समस्याएं नहीं थीं. ये सभी समस्याएं मनुष्य के कार्यों और निष्क्रियता के कारण निर्माण हुई हैं. समस्या का समाधान खोजने के लिए इस वर्ष का थीम है ‘इकोसिस्टम रिस्टोरेशन’. इकोसिस्टम को पुनर्जीवित करना यह हम सबकी जिम्मेदारी है और इसे किस तरह से लागू किया जा सकता है, इस ओर हम सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है. यदि पर्यावरण का इकोसिस्टम बिगड़ता है या अगर हम इसे अनदेखा करते हैं, तो प्रकृति तूफान, भूकंप और महामारी जैसे रूप धारण करके सब तबाह कर सकती है.

हमारे दैनिक जीवन में हो रहे हमारे कार्य या हमारी निष्क्रियता हमारे विचारों और भावनाओं के माध्यम से प्रकट होती है. जो हमें आसानी से दिखता है, हम उसके अनुसार कार्य करते हैं. पर पानी, ईंधन, बिजली, समय, धातु जैसी कई चीजें हमारी अनदेखी करने के कारण बर्बाद हो जाती हैं. इनके संवर्धन के लिए उचित सावधानियां बरतना भी जरूरी है. रिसाइक्लिंग और पुन: उपयोग विकल्पों पर अधिकतम जोर देने से इन्हें बर्बाद होने से बचाने में मदद मिल सकती है.

इस बारे में जलगांव के किसानों से न्यूनतम उपयोग – पुन: उपयोग – पुनर्प्रकिया के सिद्धांत का सबक हम ले सकते हैं. ये किसान केले का गुच्छा छीलते हैं, उन्हें सुखाकर पाउडर बनाते हैं और फिर केले को मुंबई और अन्य शहरों में ले जाकर उसका व्यापार करते हैं. छीलने और सुखाने से उत्पाद का वजन कम हो जाता है. इसी कारण माल ले जाने वाला ट्रक एक ही बार में ज्यादा से ज्यादा केले ले जा सकता है. इससे परिवहन लागत पर भी बचत होती है तथापि प्रदूषण भी कम होता है. यह सिद्धांत अन्य फसलों पर भी लागू किया जा सकता है.

भारत विश्व में कागज का सबसे बड़ा उत्पादक है. कृषि अपशिष्ट और पुनः उपयोग से इस्तेमाल होने वाले कागज की वजह से दुनिया भर में अनगिनत पेड़ों और जंगलों को बचाने में मदद मिली है. अयोध्या में यश पेपर के प्लास्टिक वेअर की जगह बड़े पैमाने पर डिस्पोजेबल पेपर पल्प वेयर ने ली है.

प्राचीन भारत में प्रकृति की पूजा और प्रकृति से प्रेरणा लेते हुए प्रकृति में निहित दिव्य बुद्धि की खोज की और उसका उपयोग किया. प्रकृति से जो उसने लिया, उसने उसे फिर से वापस कर दिया. इससे प्रकृति को कोई नुकसान नहीं हुआ. जैसे, मिट्टी के बर्तन बनाना. इन बर्तनों के उपयोग के बाद इसे फिर से मिट्टी में बदल दिया गया. पशु और कृषि अपशिष्ट पर पुनर्प्रक्रिया करके उससे खत बनाया जाता है. अयोध्या में साईदाता आश्रम जैसा बड़ा समुदाय है. 2021 में भी, वहां के लोग पैसे, बिजली या अन्य आधुनिक ‘लक्जरी वस्तुओं’ का उपयोग किए बिना समग्र जीवन जी रहे हैं. कोविड महामारी ने हमें कम से कम साधनों का प्रयोग करना सिखाया है. इस महामारी में लॉकडाउन से ट्रैफिक जाम और प्रदूषण में कमी आई है. कम प्रदूषण ने सहारनपुर के नागरिकों को 45 साल बाद प्रदूषण मुक्त हिमालय देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है.

भारत में घर बैठे रोजगार उपलब्ध कराने की कल्पना का अनुसरण कई वर्षों से किया जा रहा है. भारत के घरों में किसी कारखाने की तरह वस्त्र, बर्तन, फर्नीचर और अन्य वस्तुओं का उत्पादन होता था. प्रत्येक गांव अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए जाना जाता था. हजारों साल के व्यवसाय के बाद महाराष्ट्र का पैठण गांव आज भी अपनी अनूठी साड़ियों के लिए मशहूर है. कच्छ का हर गांव अपने अनूठे उत्पादों और डिजाइनों के लिए प्रसिद्ध है.

एक्सेल इंडस्ट्रीज के के.सी. श्रॉफ ने कच्छ जिला गोद लिया है. उन्होंने अपनी पत्नी के साथ कच्छ जिले के गावों में कारीगरों को कच्चे माल की आपूर्ति करने तथा दुनिया भर में अपने उत्पादों के विपणन के लिए ‘श्रुजन’ की स्थापना की. महिला सशक्तिकरण के माध्यम से ‘श्रुजन’ ने सैकड़ों गांवों में सामाजिक और आर्थिक क्रांति ला दी. ऐसी ही एक क्रांति उत्तर भारत में जयपुर रग्ज के नंद किशोर चौधरी द्वारा गांवों में हस्तनिर्मित रग्ज की कला को पुनर्जीवित करके की है. यह कंपनी गांव के घरों में आवश्यक मशीनरी और अन्य उपकरण स्थापित करती है और कच्चे माल का वितरण करती है. अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता के डिजाइनरों और विपणन कर्मचारी यहां तैयार होते हैं.

वर्तमान समय का आधुनिक मनुष्य चारों ओर से ऐसा सोचते हुए नहीं मिलता. अपने संशोधन के अतिउपयोग से इसका भविष्य में क्या परिणाम होगा, इस बारे में सोचा नहीं जाता. इसका उत्तम उदाहरण प्लास्टिक और परमाणु कचरा है.

हम जिस दुनिया में रहते हैं, उस दुनिया में पक्षी भी अपनी जिंदगी जीते हुए दिखाई देते हैं. उनके पास कोई सरकार, पुलिस, अस्पताल या रेडीमेड घर नहीं है. फिर भी उन्हें कोई शिकायत नहीं है. लेकिन अधिक सक्षम मस्तिष्क रहने वाला मनुष्य मात्र शिकायतें ही शिकायतें करते रहता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्य को और अधिक सफल होना है, प्रगति करनी है.

सफल होने के लिए, हमें जीवन के हरेक पहलू को जानना होगा, पहचानना होगा. अपने जन्म के समय हमें मुफ्त में मिलने वाले उपहारों के बारे में हमेशा जागरूक रहना चाहिए. हमारे पास सबसे आधुनिक, शक्तिशाली और बहुमुखी सुपर कंप्यूटर (मस्तिष्क), वीडियो कैमरा (आंखें), ऑडियो सिस्टम (कान) है. एक गंध रिकॉर्डर (नाक), एक स्वाद रिकॉर्डर (जीभ), एक तापमान रिकॉर्डर (त्वचा) है. प्रकृति द्वारा नहीं बनाई गई चीजें जिसे हम कृत्रिम कहते हैं, वह चीजें बनाने के लिए, नए कौशल सीखने के लिए हाथ मिले हैं.

सूर्यप्रकाश, पीने के लिए भरपूर पानी, ऑक्सीजन, फल, अनाज, दूध, अंडे, आश्रय बनाने के लिए लकड़ी आदि. सब कुछ प्रकृति की देन है. इसलिए प्रकृति के प्रति ऋणी रहना हमारा आजीवन कर्तव्य है. जिस कार्य में हम सक्षम हैं, उस कार्य के लिए हमें पहल करनी होगी. हमें एक सेवा प्रदाता या उत्पाद निर्माता होना चाहिए. हमें जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए. हमारी मेहनत का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता. इसलिए छोटी-छोटी बातों से शुरुआत करके और खुद को, समाज को तथा प्रकृति को भी बचाना चाहिए. यह हमारे ही हाथ में है.

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