विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय उपाध्यक्ष एवं श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चम्पत राय ने बताया कि अयोध्या में जिस दिन राममंदिर का निर्माण शुरू होगा, उसके 36 या 39 महीने के भीतर पूरा हो जाएगा. इसकी नींव की जमीन का आकलन 70 मीटर गहराई तक रडार तरंगों के जरिए किया गया है. इसमें आईआईटी दिल्ली, मुंबई, चैन्नई और इसरो सहित देश के दस नामी संस्थानों ने अपने हिसाब से आकलन किया.
मंदिर की इमारत ऐसी होगी, जिस पर न भूकंप का असर पड़े और न ही किसी प्रवाह का. कई सौ सालों तक इमारत मजबूत बनी रहे, इस पर आईआईटी चैन्नई काम कर रहा है. देश की सवा सौ करोड़ से अधिक आबादी में हर दूसरे व्यक्ति से सीधे संपर्क का लक्ष्य रखा गया है. इसमें लगभग चार लाख कार्यकर्ता जुटेंगे. रविवार को सिविल लाइंस स्थित होटल में पत्रकार वार्ता में बोल रहे थे.
अब मंदिर निर्माण अभियान से कानपुर प्रांत के 21 जिलों के 50 लाख परिवारों को जोड़ने का लक्ष्य है. देश के 5 लाख से अधिक गांवों तक अभियान को ले जाया जाएगा. राममंदिर पुनर्निर्माण में डोनेशन नहीं, बल्कि सहायोग राशि मांगी गई है. आह्वान किया है कि लोग शान-शौकत, शादी सालगिरह पर खर्च होने वाली राशि में कटौती करके मंदिर बनवाने में सहयोग करें.
10 रुपये से लेकर एक हजार या फिर इससे अधिक राशि देने वाले का नाम मंदिर में किसी जगह शिलापट पर नहीं होगा. यह सब सबके आराध्य राम के रजिस्टर में अंकित होगा. विपक्षियों के घर जाने के सवाल पर कहा कि राम सबके हैं. हर एक के घर जाएंगे.
चम्पत राय बताया कि सहयोग राशि कार्यकर्ता 48 घंटे से अधिक अपनी जेब में नहीं रख पाएंगे. इसके अलावा स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और पंजाब नेशनल बैंक में भी खाता खुलवा दिया गया है. आमजन पास की शाखाओं में पैसा जमा कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि राम मंदिर निर्माण में सहयोग के लिए विहिप कार्यकर्ता हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई के अलावा हर राजनीतिक दल के नेताओं के घरों में जाकर संपर्क करेंगे. देश की 55-60 करोड़ आबादी से संपर्क का लक्ष्य है. हर एक कार्यकर्ता से समयदान की अपील की गई है, तभी 15 जनवरी से 27 फरवरी तक महाभियान का लक्ष्य पूरा हो पाएगा.
श्रीराम जन्मभूमि में विराजमान रामलला के ऐतिहासिक मंदिर निर्माण के लिए वैज्ञानिक विधियों का पूरा-पूरा प्रयोग किया जा रहा है. यही कारण है कि जमीन की अंदरूनी स्थितियों का अध्ययन भारत सरकार के राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद के वैज्ञानिक कर रहे हैं. इस अध्ययन में भू-वैज्ञानिकगण आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल आधुनिकतम उपकरणों से कर रहे हैं. काउंसिल आफ साइंस एवं इंडस्ट्रियल रिसर्च के अन्तर्गत हैदराबाद की प्रयोगशाला से आए यह वैज्ञानिक आधुनिक विधियों से डाटा जनरेट कर उसका अध्ययन कर रहे हैं. यह अध्ययन कार्य रामजन्मभूमि परिसर के आंतरिक हिस्से से लेकर परिसर के बाहर भी किया जा रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि परिसर की जमीन के नीचे की स्थिति के मुकाबले पास के क्षेत्र की जमीन के नीचे की स्थिति एक समान है अथवा भिन्न, यह जानना भी जरूरी है.