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स्वाधीनता व राष्ट्रीय एकता का बुलंद स्वर – सुब्रह्मण्य भारती

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39 वर्ष का छोटा सा, किन्तु अनमोल जीवन पाकर भारतीय स्वातंत्र्य समर के महायोद्धा, एक प्रतिष्ठित कवि, सामाजिक तथा आध्यात्मिक सुधारक के रूप में अद्वितीय भूमिका निभाने वाले राष्ट्रकवि सुब्रह्मण्य भारती देश के सार्वकालिक गौरव हैं.

भारती का जन्म 11 दिसंबर, 1882 को तमिलनाडु के तूतिकोरन जिले के एटायापुरम में पिता चिन्नास्वामी अय्यर और माँ लक्ष्मी अम्मल के घर हुआ था. 5 वर्ष की आयु में ही मां के आंचल और वात्सल्य से वंचित बालक सुब्रह्मण्य को साहित्य, कविता और वाद-विवाद कौशल का मानो दैवीय वरदान मिल था. 7 वर्ष की आयु से कविता रचने वाले नन्हें बौद्धिक योद्धा ने 11 वर्ष की आयु में एटायापुरम के राजदरबार में हुई वाद विवाद प्रतियोगिता जीती.

दिव्य किशोर प्रतिभा के काव्य और वाक कौशल को देखकर राजा ने इन्हें “भारती” नाम दे दिया. तिरुनेलवेलि के हिन्दू स्कूल में नौवीं कक्षा तक आते-आते बड़े-बड़े शिक्षाविद और बुद्धिजीवी सुब्रह्मण्य भारती की कविता की ताकत को मान्यता दे चुके थे. 16 वर्ष की आयु में घर छोड़कर भारती वाराणसी गए, जहां उन्होंने संस्कृत और हिन्दी भाषा का गहन अध्ययन किया.

कुछ वर्ष बाद अपने गृहनगर पहुंचे तो पहले से ही प्रतिभा से परिचित और प्रभावित एटायापुरम के राज्य ने सुब्रह्मण्य भारती को अपना राजसी कवि बना दिया. कुछ दिन राज दरबार में रहने के बाद भारती मदुरै के सेतुपति हाईस्कूल में शिक्षक बन गए.

ब्रिटिश उपनिवेश से भारत को आजादी दिलाने और राष्ट्रीय एकता के भाव को सुदृढ़ करने के लिए कवि और शिक्षक भारती मद्रास में स्वदेशी मितरां पत्र से जुड़कर प्रभावी कार्य किया. प्रतिभा के बल पर सुब्रह्मण्य भारती की राष्ट्रीय पहचान बनी और 1906 में उन्हें कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में आमंत्रित किया गया, जहां दादाभाई नौरोजी, बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय सरीखे स्वाधीनता सेनानियों से मिलने का सुअवसर मिला.

इसी कालखंड में भारती स्वामी विवेकानंद और भगिनी निवेदिता से मिले, जिनकी प्रेरणा से उन्होंने न केवल भारत की आजादी के लिए लड़ने का निश्चय किया… बल्कि राष्ट्र को जागृत करने वाली कविता भी रची, भगिनी निवेदिता को वे अपना गुरु मानते थे.

स्वातंत्र्य समर में बाल भारतं और इंडिया नामक दो पत्रिकाएं शुरू कर भारती ने अपनी कविता और लेख के माध्यम से ही नहीं, बल्कि समय-समय पर यत्र-तत्र क्रांतिकारियों के भाषण आयोजित कर भी राष्ट्रीय भाव जागृत करने का काम किया.

सुब्रह्मण्य भारती के क्रांतिकारी अभियान को रोकते हुए ब्रिटिश प्रशासन ने उन्हें फ्रांस शासित पांडिचेरी में निर्वासित कर दिया, उनके प्रकाशनों पर रोक लगा दी. श्री अरविन्द की साधना स्थली पांडिचेरी में भारती ने स्वाधीनता जागरण के साथ सामाजिक और आध्यात्मिक सुधारों के लिए भी अभूतपूर्व कार्य किया.

सुब्रह्मण्य भारती ने पतंजलि योगसूत्र, और श्रीमदभगवद्गीता के अनुवाद सहित अन्य कृतियां प्रमुख हैं. 1918 में भारती जब अपनी एकांतवासिनी पत्नी को मिलने कुडालोर पहुंचे तो अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें 34 दिन जेल में बिताने पड़े. पत्र-पत्रिकाओं पर प्रतिबंध लग गया था, लेकिन इसके बाद भी देश के प्रति जुनून में कोई कमी नहीं आई, वे लिखते रहे, बोलते रहे और नौजवान प्रेरित होते रहे.

11 सितंबर, 1921 को मां भारती के अप्रतिम लाल स्वाधीनता सेनानी, राष्ट्रीय एकता के पक्षधर राष्ट्रीय कवि सुब्रह्मण्य भारती गौरवमय जीवन की महायात्रा पूर्ण कर परम गति को प्राप्त होकर अमर हो गए.

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