शिमला. वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देशवासियों पर थोपे गए ‘आपातकाल’ को स्कूल व कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए. विश्व संवाद केन्द्र शिमला और दीनदयाल उपाध्याय पीठ हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के संयुक्त तत्वाधान में आभासी माध्यम से आयोजित व्याख्यान में वरिष्ठ पत्रकार व पूर्व राज्यसभा सदस्य डॉ. महेश चंद्र शर्मा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक व उतरांचल उत्थान परिषद के संरक्षक प्रेम बुड़ाकोटी सहित अन्य लोकतंत्र प्रहरियों द्वारा रखा गया.
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. महेश चंद्र शर्मा ने कहा कि इंदिरा गांधी ने सत्ता प्राप्ति के लिए अपनी ही पार्टी को तोड़ डाला था. उस समय भ्रष्टाचार अपने चरम पर था और दलबदलुओं का बोलबाला था. फिर भी देश में जय प्रकाश नारायण ने आंदोलन जारी रखास, जिसकी बागडोर संघ के हाथों में रही. आपातकाल के विरोध में आंदोलन में 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से भी अधिक लोग जुड़े. परिणामस्वरूप सरकार हटी. लेकिन उसके बाद आंदोलन से उपजे कुछ नेता स्वार्थवश सत्ता को सम्भाल नहीं सके और इंदिरा एक बार फिर सत्ता में आ गई. बावजूद इसके आपातकाल आंदोलन भ्रष्टाचारी नेताओं और सरकारों के लिए जनआंदोलन का एक बड़ा सबक था. आपातकाल के इस इतिहास को स्कूली पाठ्यक्रमों में लाया जाए, जो केवल प्रचारात्मक नहीं बल्कि शोधात्मक हो.
प्रेम बुड़ाकोटी ने बताया कि आपातकाल में संघ पर प्रतिबंध लगने पर स्वयंसेवकों की दिनचर्या में अनिश्चितता पैदा हो गयी. उन दिनों संचार के साधनों की उपलब्धता नहीं थी. ऐसे में भी संघ की बैठकें हुई और आंदोलन सफल रहा. सफलता का कारण समाज का अभूतपूर्व सहयोग रहा जो हर स्थान में संघ के लोगों को मिला.
पूर्व राज्यसभा सांसद, लेखक व साहित्यकार गोपाल व्यास ने कहा कि आपातकाल के बाद के आंदोलन में तत्कालीन समाजवादी जगजीवन राम अकसर एक कविता दोहराया करते थे कि ‘ये जागीर नहीं इंदिरा की ये भारत देश हमारा है……’ उस समय प्रेस और न्यायालय पर भी पाबंदियां लगाई गई. उन्होंने कहा कि उस समय अपने को बड़ा समाजवादी कहलाने वालों की आज चुप्पी आश्चर्य में डालती है. उन्होंने किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि आज स्थानीय भाषा, हितों के नाम पर अराजकतावादी शक्तियां देश की एकात्मकता और अखंडता को चुनौती दे रही हैं.
व्याख्यान में गंगा समग्र के राष्ट्रीय संयोजक रमाशीष ने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना को ही बदला गया था. जिसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता. यह स्थिति ठीक होनी चाहिए. भविष्य में ऐसा कभी नहीं होना चाहिए. न्यायालय द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित करने के बाद कुर्सी जाती देख, संविधान की खामियों का फायदा उठाते हुए आपातकाल घोषित कर दिया, जिसमें लोगों के मौलिक अधिकार तक छीन लिए गए.
लोकतंत्र प्रहरी शिमला निवासी रोहिताश और सुभाष सूद ने अपने संस्मरणों को दौरान रखा. बताया कि किस तरह आपातकाल के बाद स्वयंसेवकों पर अत्याचार हुए. उन्हें हिरासत में रखा गया. संघ के लोगों को धमकाने का काम हुआ और संघ से जुड़े भवनों को बंद कर दिया गया. पूरे देश के समान ही शिमला में भय का वातावरण बन गया. फिर भी संघ का काम चलता रहा और लोकतंत्र बहाली के मुखर प्रयास किये गए. व्याख्यान के अंत में दीनदयाल उपाध्याय पीठ हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ. मनोज चतुर्वेदी ने सभी वक्ताओं और और लोकतंत्र पहरियों का आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी द्वारा किया गया.