– सूर्य प्रकाश सेमवाल
कांग्रेस का देश की स्वतंत्रता में योगदान रहा है, लेकिन वर्तमान में यह भी सच है कि केवल सत्ता में बने रहने की आतुरता, सुयोग्य और सक्षम नेताओं को दरकिनार कर एक परिवार विशेष की चाटुकारिता की विवशता और भारत के सांस्कृतिक वैभव व हिंदुत्व के लिए बाधा खड़ी करने की भरसक कोशिश कांग्रेस के डीएनए में है. सत्ता से बाहर और देश की जनता द्वारा पूरी तरह नकार दिए जाने के बाद नीति, नीयत और नेता के संकट से जूझ रही कांग्रेस गांधी परिवार के त्रिकोण में उलझ कर रह गयी है. स्थिति इतनी विकट है कि वर्तमान में दो पूर्व अध्यक्षों – मां सोनिया और भाई राहुल के साथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा भी सरकार विरोधी आक्रामक नीति अपनाने के चक्कर में विरोध की हड़बड़ी में केवल फजीहत ही करवा रही हैं.
जनता और ज़मीन से केवल चुनावों के समय जुड़ने का नाटक करने वाली प्रियंका सोशल मीडिया अथवा चैनलों के माध्यम से ही उत्तर प्रदेश की राजनीति करती हैं. इसलिए मौके बेमौके बिना जांच पड़ताल और तथ्य खंगाले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के विरुद्ध राशन पानी लेकर खड़ी मिलती हैं. कोरोना संकटकाल में केवल यूपी के प्रवासियों के लिए 1,000 बसें भेजने की नौटंकी के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सियासत चमकाने के मकसद से आगरा में कोरोना से होने वाली मौतों पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को घेरने का प्लान बनाया, लेकिन वो इस जाल में खुद ही फंस गईं और उनके झूठ को लेकर सोशल मीडिया पर जबरदस्त भद्द पिटी.
सरकार पर आरोपों की श्रृंखला में प्रियंका वाड्रा ने 22 जून को आगरा में 48 घंटों के भीतर 28 कोरोना मरीजों की मौत का दावा करते हुए ट्वीट किया – आगरा में 48 घंटे में भर्ती हुए 28 कोरोना मरीजों की मृत्यु हो गई. यूपी सरकार के लिए कितनी शर्म की बात है कि इसी मॉडल का झूठा प्रचार करके सच दबाने की कोशिश की गई. सरकार की नो टेस्ट=नो कोरोना पॉलिसी पर सवाल उठे थे, लेकिन सरकार ने उसका कोई जवाब नहीं दिया.
इतने बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में हर स्तर पर कोरोना से लड़ने के लिए दुरुस्त व्यवस्था, इस पर नियन्त्रण का सफल प्रयत्न और कोरोना मौतों के कम होने की सच्चाई सबके सामने है. इस भ्रामक और मनगढ़ंत मौत के आंकड़े पर आगरा के जिलाधिकारी प्रभु एन. सिंह ने 23 जून की सुबह प्रियंका को नोटिस भेज दिया. इसमें प्रियंका को कहा गया कि वो इस दावे का खंडन करें, क्योंकि यह गलत है. असल में प्रियंका ने किसी अखबार की खबर के आधार पर यह कटाक्ष किया था, जबकि खबर भ्रामक थी. वास्तव में आगरा में मार्च से लेकर अब तक कोरोना से कुल 79 मौत हुई हैं. डीएम ने नोटिस में प्रियंका को लिखा कि कोरोना से जूझ रही टीम का मनोबल गिराने की कोशिश की गई है. लेकिन गांधी परिवार को इस आपदा में भी राजनीति करनी है, खंडन तो दूर प्रियंका ने फिर पलटवार करते हुए आगरा के डीएम के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ को भी घेरते हुए तर्क दिया “आगरा में कोरोना से मृत्युदर दिल्ली व मुंबई से भी अधिक है. यहाँ कोरोना से मरीजों की मृत्य दर 6.8% है. यहाँ कोरोना से जान गंवाने वाले 79 मरीजों में से कुल 35% यानि 28 लोगों की मौत अस्पताल में भर्ती होने के 48 घण्टे के अंदर हुई है. आगरा मॉडल’ का झूठ फैलाकर इन विषम परिस्थितियों में मुख्यमंत्री 48 घंटे के भीतर जनता को इसका स्पष्टीकरण दें और कोविड मरीजों की स्थिति और संख्या में की जा रही हेराफेरी पर जवाब दें.”
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प्रियंका वाड्रा के ट्वीट पर आगरा के डीएम पीएन सिंह ने जवाब लिखा कि ट्वीट के साथ संलग्न जिस अखबार में अब तक हुए कुल कोरोना पॉजीटिव मरीजों की मृत्यु के संबंध में डेथ ऑडिट का हवाला दिया है. पिछले 109 दिन में आगरा में अब तक कुल 1136 केस और 79 मौत कोरोना से जुड़ी हैं. पिछले 48 घंटों में भर्ती 28 मरीजों की मौत की खबर पूरी तरह असत्यं है.
असल में प्रियंका वाड्रा असत्य, मनगढ़ंत और फेक प्रोपोगेन्डा फैलाने में महारत हासिल कर चुकी हैं.
इसी प्रकार लॉकडाउन में “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में दलितों को राशन नहीं” नाम से रिपोर्टर सुप्रिया शर्मा ने सुनियोजित तरीके से फेक न्यूज चलाई, जिसमें दावा किया गया कि प्रधानमन्त्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में उनके द्वारा गोद लिए आदर्श गाँव में एक दलित घरेलू महिला मालादेवी और उसका परिवार भूखे रहे, राशनकार्ड न होने के कारण उनको सरकारी खाद्यान्न नहीं मिल पाया…. बाद में इस रिपोर्टमें गलत तथ्य और मनमानी व्याख्या का आरोप लगाते हुए मालादेवी ने 13 जून, 2020 को रामनगर थाने में सुप्रिया शर्मा और स्क्रॉल.इन वेबसाइट के एडिटर इन चीफ को आरोपी बनाते हुए एफआईआर दर्ज की. माला देवी ने बताया कि “वो घरेलू कामगार नहीं है, बल्कि वाराणसी में ठेके पर सफाईकर्मी के तौर पर काम करती हैं. लॉकडाउन के दौरान उन्हें राशन को लेकर किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं हुई है. स्क्रॉल द्वारा पब्लिश की गयी स्टोरी में लिखी बातें गलत हैं. माला देवी ने बताया कि मेरे और मेरे बच्चों के भूखे रहने की गलत स्टोरी चलाकर हमारी गरीबी का मजाक उड़ाया गया है.
जब रिपोर्टर सुप्रिया शर्मा के विरुद्ध फेक न्यूज़ चलाने और महामारी के दौरान भ्रम फ़ैलाने पर प्राथमिकी दर्ज हुई तो प्रियंका फिर मैदान में कूद पडीं क्योंकि इन फर्जी खबरों के सहारे ही तो उनको भी सरकार को घेरने का बहाना मिलता है. प्रियंका ने रिपोर्टर के बचाव में फिर ट्वीट किया – “यूपी सरकार एफआईआर करके सच्चाई पर पर्दा नहीं डाल सकती. जमीन पर इस आपदा के दौरान घोर अव्यवस्थाएं हैं. सच्चाई दिखाने से इनमें सुधार संभव है, लेकिन यूपी सरकार पत्रकारों पर, पूर्व अधिकारियों पर, विपक्ष पर सच्चाई सामने लाने के लिए FIR करवा दे रही है. शर्मनाक”…
इस प्रकार फेक न्यूज़ और प्रोपेगेंडा फैलाने वालों के बचाव में प्रियंका सबसे आगे होती हैं…गलत, झूठे और तथ्यहीन समाचारों के लिए प्रियंका पहले भी झिड़की खाती रही हैं. नवम्बर 2019 में प्रियंका ने कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक फेक वीडियो बढ़ाकर शोर मचाया कि यूपी में दलितों का उत्पीड़न हो रहा है और दबंगों ने इनका जीना मुश्किल कर रखा है. बाद में मैनपुरी के पुलिस अधीक्षक ने प्रियंका को लताड़ लगाई कि समाज को भड़काने के लिए फेक वीडियो प्रसारित करना ठीक नहीं, उन्होंने प्रमाण के साथ बताया कि इस वीडियो में जो लड़ रहे थे वो धान की फसल कटाई का विवाद था और लड़ने वाले दोनों पक्ष दलित समाज से नहीं, बल्कि राजपूत परिवार से हैं.
कहने का मतलब यह है कि प्रियंका वाड्रा जितने उत्साह से हमले की सामग्री लेकर आती हैं, उतनी जोर से किरकिरी होती है..पत्रकारों के हितों की बात करने वाली प्रियंका के निजी सचिव द्वारा एक पत्रकार के साथ अगस्त 2019 में बदसलूकी की गयी तो प्रियंका ने चुप्पी साध ली थी. ये दोहरे मानदंड और राजनीति चमकाने के लिए अनापशनाप प्रोपेगेंडा और आक्रामकता यह शायद गांधी परिवार के डीएनए में ही है. फिर प्रियंका वाड्रा इससे मुक्त भला कैसे रह सकती हैं..इसलिए जिन कवियों ने पहले इनकी सत्ता के विरुद्ध आवाज उठायी, उन्हीं की कविता को बिना संदर्भ और तथ्य जाने दोनों भाई बहन ट्वीट यों ही नहीं करते –
राजा बोला रात है, रानी बोली रात है
मंत्री बोला रात है, संतरी बोला रात है
यह सुबह सुबह की बात है