करंट टॉपिक्स

स्वतंत्रता सेनानी – राव तुलाराम

Spread the love

राव तुलाराम प्रथम स्वतन्त्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विदेशी सहायता का अभियान चलाया था. 1857 के सेनानियों में राव तुलाराम का योगदान अतुलनीय है. अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजाने के बाद जब अंग्रेजी सेना ने रेवाड़ी में रामपुरा के किले पर कब्जा कर लिया तो राव  तुलाराम राजस्थान में बीकानेर, जोधपुर, कोटा, मारवाड़ के राजाओं के पास मदद मांगने गए. परंतु राजस्थान के राजा अंग्रेजों के साथ सन्धि से बंधें थे, इसलिए मदद नहीं कर पाए. परंतु राव तुलाराम ने राजस्थान के राजाओं से रूस के जार के नाम पत्र लिए, जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ मदद मांगी गई थी. वहां से तुलाराम काल्पी पहुंचे जो लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, फिरोजशाह मेहता जैसे क्रांतिकारियों का गढ़ था. राव तुलाराम वहां से सेना लेकर रेवाड़ी की तरफ आए भी थे, परंतु उस समय नसीबपुर के युद्ध के बाद यहां की जनता में भय पैदा कर दिया गया था. कर्नल रेडमण्ड सेना लेकर रेवाड़ी की तरफ बढ़े. राव तुलाराम जनता का साथ ना मिलता देख वापस चले गए.

काल्पी में क्रांतिकारियों ने तय किया कि विदेशी मदद ली जाए. इसके लिए राव तुलाराम को चुना गया. साथ में सफीदों के नवाब निजामत अली को उनके सहायक के रूप में चुना गया, जो बाद में राव तुलाराम का सामान लूट कर भाग गया था.

बम्बई के रास्ते राव तुलाराम बुसायर पहुंचे. वहां से सिराज गए और वहां के राजकुमार से मिले. वहां से इसफान होते हुए तेहरान पहुँचे. वहां के गवर्नर से भी मिले, परंतु अब तक कोई ठोस सहायता का आश्वासन नहीं मिला. वहाँ से अनेक देशों के राजनयिक केंद्र रसत पहुंचे. 05 दिसंबर 1860 को रसत में रूस के राजदूत से भी मिले और अपने पत्र के साथ जोधपुर, बीकानेर और जयपुर के राजाओं के रूस के जार के नाम दिये गए पत्र भी सौंपा दिये. रूस के जनरल से भी उनकी मुलाकात हुई और सेंट पीटर्सबर्ग जाने की और जार से मिलने की इच्छा जताई. अनुकूल मौसम के इंतजार में वहां रुके हुए थे, इसी दौरान ब्रिटिश राजदूत को तुलाराम का पता चल गया और राव तुलाराम ने रसत छोड़ने में ही भलाई समझी.

अफगानिस्तान में वे दोस्त मोहम्मद से भी मिले. दोस्त मोहम्मद ने सैन्य सहायता के लिये लाचारी व्यक्त की. वहीं दोस्त मोहम्मद की सेना में अनेक भारतीय अहीर, राजपूत क्रांतिकारियों को सेना में देखा. वहीं वे नाना साहब के मंत्री सैयद मोहम्मद इसहाक से भी मिले. दोस्त मोहम्मद की एक युद्ध मे मौत हो गई. राव तुलाराम भी काबुल आ गए, जहां 23 सितम्बर, 1863 को बीमारी से उनकी मौत हो गई.

इस तरह राव तुलाराम विदेशी सहायता के लिये अनेक देशों में गए, परंतु उस समय परिस्थितियां ब्रिटिशों के पक्ष में थीं. भारतीय इतिहास में अंग्रेजों के खिलाफ विदेशी सहायता के प्रयास करने वाले पहले भारतीय क्रांतिकारी थे – राव तुलाराम.

Leave a Reply

Your email address will not be published.